आधुनिक जीवन की स्पर्धा में हम भागते जा रहे हैं। इस भाग दौड़ में हम अपने उद्देश्य को भूल गए। हमारे जीवन का उद्देश्य ख़ुशी है। कहते हैं, ख़ुशी से बड़ी खुराक नहीं चिंता जैसा मर्ज नहीं। जीवन में प्रगति करना आवश्यक है, जिसके लिए हमें कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। लेकिन जीवन में दो बातें हमें ख़ुशी से दूर ले जाती हैं। एक इच्छा दूसरी ईर्ष्या। इच्छाओं का अंत नहीं है। एक के बाद एक पैदा होती रहती हैं। हम उनको पूरा करने में ही सारा जीवन बिता देते हैं और ख़ुशी का वास्तविक आनंद नहीं उठा पाते। ये इच्छाएं भौतिक वस्तुओं की ओर आकर्षित करती हैं। जो कि हमारे आराम के साधन हैं। भौतिक साधनों से आराम तो मिल सकता है परन्तु ख़ुशी नहीं होती। हम अपने आप को प्रसन्नचित अनुभव नहीं कर सकते। कहते हैं "इच्छा मात्रम अविद्या"। कभी सोचते गाड़ी ले लूँ, तब ख़ुशी मिले खूब धन एकत्र कर लूँ तब मिले, अच्छा घर हो तब मिले, नौकरी में प्रमोशन हो या बिज़नेस अच्छा चले तब ख़ुशी मिले। लेकिन यह सब इच्छाएं हैं जो एक पूरी होने के बाद दूसरी जन्म लेती हैं और पूरी न होने पर दुःख व अशांति पैदा करती हैं।
अब इससे अधिक महत्त्वपूर्ण है ईर्ष्या। आज हम अपने से ज्यादा दूसरों को देखते हैं। हमारी खुशियां भी दूसरों पर निर्भर हैं। कुछ सामान्य उदहारण - मानो आप कोई महत्त्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं और अचानक आपके घर क़ी बिजली चली जाती है, तो आप परेशान हो जाते दुःखी हो जाते। आप सबसे पहले देखते हैं, बगल वाले घर की गयी कि नहीं। अगर उनके घर क़ी भी गयी तो आप संतुष्ट हो गए। आपका दुःख दूर हो गया शिकायत भी नहीं करेंगे। इसी प्रकार आप नयी गाड़ी खरीद कर लाये, अच्छी गाड़ी, ऊँचा मॉडल आप खुश हैं। एक दो दिन बाद आप उसी गाड़ी से घूम रहे हैं और पास से उसी कंपनी के ऊँचे मॉडल क़ी गाड़ी आपके पास से निकल गई। अब आप क़ी ख़ुशी गयी, सोचने लगे मैं ये वाली ले लेता। इसी प्रकार आप जानते हैं कि आपका बेटा पढ़ाई में कमजोर है, फिर भी परीक्षा के बाद रिजल्ट लेकर वो आप के पास आता है और अपने परीक्षा के अंक बताता है, उसके अंक आपके अपेक्षा से कहीं अधिक होते हैं तो आप बहुत खुश होते हैं। कुछ देर बाद आप और बच्चों के अंको के बारे में अथवा उच्चतम अंक पूछते हैं तो वो आपके बच्चे के अंक से बहुत ज्यादा होते अब आपकी ख़ुशी गायब। विचार करें आपकी ख़ुशी किसमे थी। आपके बच्चे के अच्छे अंको में या दूसरों के बच्चों के कम अंको में। इसी प्रकार यदि आपका बेटा पढाई में बहुत तेज है आप जानते है वो बहुत अच्छे अंको से पास होगा या टॉप करेगा परन्तु परिणाम आने पर उसके अंक अच्छे नहीं होते तो आप दुःखी हो जाते हैं। फिर आप और बच्चों के अंक पूछते हैं जिस पर वो अपने अंक ही उच्चतम बताता है तो आप फिर बहुत खुश हो जाते हैं। यह उदाहरण इस बात को सत्यार्थ करता है कि आपको अपने बच्चे की पढाई या अंको से ख़ुश या दुःखी नहीं हैं, वरन दूसरों के बच्चों की तुलना में आपकी ख़ुशी निर्भर करती है। इस प्रकार परचिन्तन भी आपके अन्दर नाकारात्मक ऊर्जा पैदा करता है। अपने से ज्यादा औरों पर ध्यान देते हुए अंदर-अंदर दुखी होना यह ईर्ष्या है। अगर पड़ोस में सम्पन्नता आये तो आप तुरंत कहेंगे कहीं से दो नंबर का पैसा आ गया होगा। अगर दूसरे के बच्चे ने प्रतियोगी परीक्षा उत्तीर्ण कर अच्छी नौकरी प्राप्त कर ली तो आप कहेंगे जुगाड़ लग गया या पैसा खिलाया होगा। यही नकारात्मकता आपको दुखी करती है। प्रत्येक व्यक्ति हर कार्य एवं निर्णय सोच समझ कर लेता है और अपने अनुसार सर्वश्रेष्ठ निर्णय ही लेता है। परन्तु जब वह निर्णय हमारे विचारों के अनुकूल नहीं होता तो हम बिना सोचे समझे उसे गलत सिद्ध करने का प्रयास प्रारंभ कर देते हैं। किसी भी बात, मामले या प्रकरण पर लिए गए निर्णय से ज्यादा महत्पूर्ण है कि वो निर्णय किस समय और किन परिस्थितियों में लिया गया। सर्वदा दूसरों की उपलब्धियों पर नकारात्मक विचार रखना बुद्धिमानी नहीं होती।
परचिन्तन हमारी ख़ुशी में बहुत घातक होता है। हम सदैव दूसरे में बुराई देखते हैं। हर व्यक्ति में अच्छाई बुराई दोनों होती हैं, निर्भर इस पर करता हैं कि हम उसकी अच्छाइयों को देखते हैं या बुराइयों को। अगर अच्छाइयां देखेंगे तो अच्छाई दिखेगी बुराई देखेंगे तो सदैव बुराई दिखेगी। इसी प्रकार बुराई देखते-देखते हमारी आदत ही सब में बुराई देखने की हो जाएगी फिर वही बुराई देखना हमारे संस्कार बन जायेंगे। तब ख़ुशी कैसे हासिल होगी। हम जब दूसरों को देखते हैं,उनकी गतिविधियों,कार्यों इत्यादि पर विचार करते तो एकदम न्यायधीश के तरह तुरंत निर्णय दे देते हैं। वो गलत हैं। वहीं जब हमको कोई हमारी कमियां दिखता हैं तो हम वकील बन उस पर जिरह करने लगते हैं। तो हमारी जीवन की खुशियां दूसरों के प्रति ईर्ष्या व व्यर्थ चिंतन में व्यतीत होने लगती है।
वास्तव में आज हमने अपनी ख़ुशी का रिमोट दूसरों के हाथों में दे रखा हैं। जब रिमोट ही दूसरे के पास हैं तो उसके ही संचालित करने पर हम खुश और दुखी होंगे। यदि हम अपनी इन नकारात्मक सोच को बदलना चाहते हैं। तो हमें प्रत्येक व्यक्ति के कार्यों को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखना चाहिए। हमारी सकारात्मक सोच हमें सदैव संतुष्ट और प्रसन्नचित रहने में हमारी मदद करेगी। तब हमारी ख़ुशी का रिमोट हमारे हांथों में होगा न कि दूसरों के हांथों में।
********
Comments