top of page

खोमचे वाला

डॉ. कृष्णकांत श्रीवास्तव

एक आदमी था, जो कॉन्वेंट स्कूल में पीरियड और छुट्टी की घंटा बजाता था। टन..टन..टन..टन..टन..। एक दिन स्कूल के नए प्रिंसिपल की नज़र उसपर गयी, तो उससे पूछ बैठे उसके बारे में, मतलब कितना पढ़े हो आदि।
उन्हें जान कर हैरत हुई कि उनके इस प्रतिष्ठित स्कूल का घंटा बजाने वाले कर्मचारी अनपढ़ है। उन्होंने कहा कि ये नही हो सकता और प्रिंसिपल ने उस घंटा बजाने वाले को निकाल दिया।
अब वो बेचारा क्या करे, कुछ काम नही, फाके की नौबत, तो किसी ने सलाह दी कि फलाने रास्ते पर समोसा बेचो। कुछ तो कमाई होगी
उसने समोसे बेचना शुरू किया। ईश्वर कृपा रही और कुछ मेहनत, दुकान चल निकली।
खोमचे से गुमटी हुआ, गुमटी से दुकान, फिर बाजार की सबसे फेमस दुकान।
धंधा आगे बढा तो बच्चों कों इस काम में लगा कर और भी धंधे आजमाए। आगे चलकर वो शहर का जाना माना सेठ बन गया। कई प्रतिष्ठान हो गए।
एक बार एक पत्रकार आया उनका इंटरव्यू लेने। बाकी बातों को पूछने के बाद उसने पूछा कि आप कहाँ तक पढ़े हैं। उसे भी जानकर हैरत हुई कि इतना बडा सेठ तो अनपढ़ है। पत्रकार ने कहा कि आप नही पढ़े लिखे हैं फिर भी इतना बड़ा ब्यापार किए, इतने सफल है।
मैं सोच रहा हूँ कि अगर आप पढ़े होते तो क्या कर रहे होते। सेठ ने कहा - स्कूल में घंटा बजा रहा होता।
दोस्तों कर्म और परिश्रम से ही धनवान बना जा सकता है।

*****

5 views0 comments

Recent Posts

See All

Комментарии


bottom of page