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ग़म गुसार

उषा श्रीवास्तव


किए हैं दफ़्न कई राज़ अब बताऊं क्या
कफ़न ये ओढ़ने से पहले मुस्कुराऊं क्या।
खटक रही हूं नज़र में अगर ज़ियादा मैं
तेरे गुनाह भी इक बार मैं गिनाऊं क्या।
चमक रहा है नगीने सा‌ जो अंगूठी में
उसी के दिल की वसीयत पे हक़ जताऊं क्या।
मैं ग़म गुसार बनूँ है कहाँ मेरी किस्मत
सुकूं मिले तो ग़ज़ल गीत मैं सुनाऊं क्या।
उसे तलब है कि सजदे करूं सियासत में
मैं गर्दिशों में झुकूं सर कलम कराऊं क्या।

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