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गरीब हैं, बेईमान नहीं

विभा गुप्ता

"सुनो, अपना पर्स ज़रा संभाल कर रखा करो, घर में बाई भी हैं। गरीबों के ईमान का क्या भरोसा। मिसेज़ शर्मा बता रहीं थी कि उसकी बाई ने चार।" मानसी अपने पति निखिल से कह ही रही थी कि कमरे में पोंछा करने के लिए आती छबीली ने सुना तो उसका खून खौल उठा। तेज़ स्वर में चीखी, "मैडम जी, हम गरीब हैं, बेईमान नहीं। ज़रा अपने गिरेबान में भी झाँकिये।"
पिछले तीन महीनों से छबीली मानसी के यहाँ साफ़-सफ़ाई का काम कर रही थी। उसका पति रिक्शा चलाता था जिसमें तीन जनों का गुज़ारा बड़े मजे से हो जाता था। छबीली देखने में सुंदर थी और होशियार भी। राह चलते अगर कोई उसे कुछ कह दे तो वह लड़ पड़ती थी। तब उसका पति उसे समझाता, "सुन छबीली, हम गरीब लोग हैं, चार बातों को सुनकर अनसुना कर देना चाहिए। ऐसे सबसे उलझने से तो...।"
"तो क्या! गरीब हैं, इसीलिये कोई भी कुछ कह देगा। गलत बात का विरोध तो हम करेंगे ही।" पत्नी के तेवर देखकर उसका पति मुस्कुरा देता था।
छह महीने पहले एक कार वाले से उसके पति की टक्कर हो गई थी। अधिक खून बह जाने के कारण डॉक्टर उसे बचा नहीं पाये। वह तो बदहवास-सी हो गई थी। उसे कुछ होश नहीं था। अपने चार साल के बेटे ननकू को सीने से लगाये रोती रहती थी। घर का सामान जब खत्म होने लगा तब वह होश में आई और उसने काम करने के लिये घर से बाहर कदम निकाला। उसकी गोद में बच्चा देखकर शुरु में तो सब उसके शरीर पर ही नज़र डालते थें पर वह डरी नहीं। दो जगह काम करने लगी। कुछ दिनों बाद मानसी के यहाँ भी उसे काम मिल गया।
मानसी के घर में उसका बाईस वर्ष का भाई भी रहकर पढ़ाई करता था। उसे भय था कि कहीं छबीली मेरे भाई पर डोरे न डाल दे, इसीलिये गाहे-बेगाहे उसके काम में गल्तियाँ निकालकर या उसके बेटे को दुत्कार कर उसपर अपना दबदबा बनाये रखने का प्रयास करती थी। बेवजह की डाँट से छबीली आहत होती लेकिन फिर खून का घूँट पीकर रह जाती। पर आज तो मानसी ने उसकी ईमानदारी पर प्रहार कर दिया तो वह चुप न रह सकी और आपे से बाहर हो गई।
फिर तो मानसी का भी खून खौल उठा, "मुझसे ज़बान चलाती है।" उसका हाथ उठ गया तो छबीली ने उसका पकड़ लिया और पोंछा का कपड़ा पटकते हुए बोली, "संभालिये अपना काम।" पर्स से फ़ोन निकालकर दो फोटो मानसी के वाट्सअप पर शेयर करके बेटे को लेकर बाहर निकल गयी।
फोटो देखकर मानसी चकित रह गई, उसका भाई उसके हैंडबैग से पैसे निकाल रहा है। दूसरी फोटो में बहनोई की जेब से चोरी।"
"छबीली, सुन तो।" छबीली कहाँ सुनती, मन में बोली- मुझे छेड़ोगे तो मैं नोंच लूँगी।

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