सुरेश चंद्र वर्मा
एक व्यक्ति जिनकी उम्र लगभग 60 रही होगी, रिक्शे से अपनी पत्नी को बैठा कर कुछ बेचने का सामान ले के कहीं जा रहे थे। गर्मी भी खूब थी और उम्र ज़्यादा होने के कारण रिक्शा धीरे धीरे चला रहे थे। रास्ते में भीड़ थी मुझे जल्दी जाना था। मै पीछे से कई बार हॉर्न बजा रहा था। मुझे बहुत ग़ुस्सा आ रहा था रिक्शे वाले पर। बड़ी मुश्किल से आगे आया। जैसे आगे आया सोचा इनको बोलता हूँ रिक्शा साइड में चलाये। लेकिन जब इनकी उम्र देखी तो खुद के किए पर शर्मिंदा था।
गाड़ी रोक कर गाड़ी में पड़ी पानी की बोतल उनको पकड़ाते हुए माफ़ी माँगा। बदले में खूब आशीर्वाद मिला। अब मुझे कोई जल्दी नही थी। सोचा पता करता हूँ कि इस उम्र में इन्हें इतनी मेहनत क्यों करनी पड़ रही है। तो पता लगा कि बेटा नशा करता है। इनको पूछता नही है। कमाई का कोई श्रोत नही है। इसलिए जीवन यापन के लिए खिलौने बेचते है। पत्नी बीमार रहती है। जो कमाते है इलाज में लग जाता है। बताते हुए उनकी भी आँख नम थी और मेरी भी कुछ थोड़े पैसे देने का प्रायस किया, पर लिया नही। बोला बाबू हो सके तो पत्नी को किसी अच्छे डाक्टर को दिखा दो। वादा कर के चला आया हूँ अपना नम्बर दे के। कल उनकी पत्नी को अच्छे डाक्टर को दिखा देंगे।
आप की हैसियत बड़ी गाड़ी में घूमने से नही, लोगों को इज्जत देने से बढ़ेगी। और इस तरह के बहुत रिक्शा चालक जो गर्मी में अपना पूरा परिवार लेके सड़क पर जीवित रहने की लड़ाई लड़ते हैं ये बस आप के सम्मान के भूखे होते हैं। इन्हें बार-बार हॉर्न बजा कर, दुःख मत दीजिए। इन्हें इस गर्मी में आप से ज़्यादा जल्दी है, मंज़िल पर पहुँचने की। आप AC कार में बैठे हैं तब भी इतनी जल्दी है। तो इन्हें कितनी होगी। ऐसे लोग जहाँ भी मिले थोड़ा समय निकालिए और इनसे बात करिए। थोड़ा मदद का प्रयास करिए। अपने लिए मेहनत और भागदौड़ तो तब तक चलेगी जब तक आप अंतिम सैंया पर लेट ना जाए। इस लिए जीवित होने का प्रमाण दीजिए। केवल खुद के लिए जीना आप को मृतक होने का प्रमाण पत्र देती है।
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