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गुरु-शिष्य का प्रेम

मुकेश ‘नादान’

एक दिन श्रीरामकृष्ण व्याकुल भाव से मंदिर के प्रंगण में घूम रहे थे और माँ काली से विनती कर रहे थे, “माँ! मैं उसे देखे बिना नहीं रह सकता।” वास्तव में वे नरेंद्र से बहुत प्रेम करते थे। जब भी नरेंद्र उनसे मिलने जाते थे, श्रीरामकृष्ण उनसे पहले भजन सुनते और फिर उन्हें खूब खिलाते-पिलाते। जब काफी दिनों तक नरेंद्र उनसे मिलने नहीं आते थे, तब वे स्वयं शहर जाकर उनसे भेंट करते थे। उन्होंने सुरेंद्रनाथ के घर नरेंद्र से हुई प्रथम भेंट में ही यह परख लिया था कि नरेंद्र एक सत्यनिष्ठ और दृढ़चरित्र युवक है। उसमें लोकनायक बनने की सभी योग्यताएँ हैं।
रामकृष्ण किसी को अपना शिष्य बनाने से पूर्व उसे जाँच-परख लेते थे। उनकी अभिलाषा थी कि नरेंद्र युग-कार्य करे। नरेंद्र दृढ़ संस्कारवाला असाधारण युवक था। उनके बाहरी आचरण से रामकृष्ण के शिष्य उन्हें उदडी, हठी, दंभी तथा अनाचारी समझते थे।
एक दिन की बात है-केशबचंद्र सेन, विजयकृष्ण गोस्वामी आदि ब्रह्मसमाज के कुछ प्रसिद्ध नेता रामकृष्ण के पास बैठे थे। नरेंद्र भी वहाँ पर मौजूद थे। कुछ देर बातचीत करने के बाद ब्रह्मसमाज के नेतागण चले गए। तब रामकृष्ण ने अपने शिष्यों से कहा, “मैंने भाव में देखा, केशव ने जिस एक शक्ति के बल पर प्रतिष्ठा प्राप्त की है, नरेंद्र में वैसी अठारह शक्तियाँ हैं। कृष्णा और विजय के मन में ज्ञानद्वीप जल रहे हैं। नरेंद्र में ज्ञान-सूर्य प्रकाशमान है।"
अपनी प्रशंसा सुनकर भी नरेंद्र खुश नहीं हुए और प्रतिवाद करते हुए बोले, “यह आप क्या कह रहे हैं! कहाँ विश्वविख्यात केशव सेन और कहाँ स्कूल का एक नगण्य लड़का नरेंद्र! लोग सुनेंगे तो आपको पागल कहेंगे।” इस पर रामकृष्ण ने हँसते हुए शांत स्वर में कहा, “मैं क्या कर सकता हूँ। माँ ने दिखा दिया, इसलिए कहता हूँ।"
“कैसे मानूँ माँ ने कहा है? मुझे तो लगता है कि आपके मस्तिष्क का खयाल है। पाश्चात्य विज्ञान तथा दर्शन ने इस बात को प्रमाणित कर दिया है कि कान, नाक, आँख आदि इंद्रियाँ कई बार हमें भृमित कर देती हैं। कदम-कदम पर हमें धोखा देती हैं। आपको मुझसे प्रेम है। इसी कारण प्रत्येक में आप मुझे बड़ा देखना चाहते हैं, इसलिए आपको ऐसे दर्शन होते हैं।"
नरेंद्र प्रत्येक बात को तर्क की कसौटी पर परखकर ही विश्वास करते थे। नरेंद्र की कट बातों से भी रामकृष्ण कभी स्पष्ट नहीं होते थे, बल्कि इसके विपरीत नरेंद्र के प्रति उनका प्रेम गहराता जा रहा था।
'रामकृष्ण अद्वैत सिद्धांत, अर्थात्‌ ब्रह्म की एकता-सूचक शिक्षा देते थे। नरेंद्र उस पर कभी ध्यान नहीं देते थे, बल्कि कई बार उनका मजाक उड़ाते हुए कहते थे, “क्या यह संभव है? कटोरा, लोटा इत्यादि ईश्वर हैं, जो भी दिखाई देता है, वह ईश्वर है।”
नरेंद्र की ऐसी आलोचनाएँ रामकृष्ण के शिष्यों से सहन नहीं होती थीं, लेकिन नरेंद्र की तीब्र आलोचना तथा उसके आवेगमय तर्क श्री रामकृष्ण को आनंदित कर देते थे। हालाँकि गुरु-शिष्यों के मध्य वैचारिक मतभेद था, फिर भी दोनों में दिनोदिन घनिष्ठता बढ़ती ही जा रही थी।

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