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गुल्लो पान वाली

Updated: Mar 15, 2023

(वक्त क्या न कराए)

डॉ. जहान सिंह जहान

गुल्लो, गुल्लो अरी गुल्लो कहां गई। छोटी बेगम झल्लाकर बोली नाशपिटी कहां मर गई, तभी हवेली के ‘मरदान-खाने’ से आवाज आई! जी छोटी बेगम साहिबा, गुल्लो इधर है, मैं अभी हाजिर हुई। बेगैरत औरत वहां क्या कर रही है, बेगम चिल्लाई। बेगम साहिबा मैं बडे नवाब साहब के बाजुओं को तेल पिला रही हूं।
छोटी बेगम तुनक कर बोली लाहौलविला, बड़ी बदतमीज हो गई हो, कहती हुई आंगन में पड़ी आराम कुर्सी पर पसर गई। मिर्जा साहब की हवेली शान-बान और मेहमानदारी के लिए दूर-दूर तक जानी जाती थी। गुलबानो खूबसूरती तीखे नाक-नक्स, रंगीन मिजाज की खाई-पी तमीजदार लड़की थी। नबावों के बीच पली-बड़ी और छोटी बेगम के मुंह लगी थी।
वैसे तो गुलबानो हवेली में ‘पान-सामा’ थी, लेकिन जरूरत पड़ने पर हर काम करने का हुनर रखती थी। उसको जनान खाने जाने और मरदान खाने में बे-रोक टोक आने-जाने की इजाजत थी। मिर्जा साहब पान के बेहद शौकीन थे। पचासों किस्म के पान, उनके मसाले, सोने के वर्क, केसर, जाफरान, अफीम की पुट, विदेशी सुपारी, अफ्रीकी कत्था, अरब की खुशबूयें, तम्बाकू और कई तरह के रस, छालें, हकीमों की बनाई जोशीली दवायें पेश करने को सैकड़ों रक्काबियाँ, पान दान एक पूरा पान-नाम हुआ करता था। गुल्लो बाई ही मिर्जा नवाब और उनके मेहमानों को पान पेश करती थी और इस हुनर में माहिर हो चुकी थी। कैसे पल्लू डालना, कितना गिराना, आंखों में काजल, चाल में धीमापन, बिना देखे पीछे वापस जाने की अदा बखूबी आती थी। हर शाम का यही सिलसिला था और हर एक की एक ही हसरत होती थी कि वह गुल्लो बाई के हाथ का पान खाये।
ईस्ट इंडिया कंपनी का हिंदुस्तान आना और फिर अंग्रेजी हुकूमत की कारगुजारियों, नवाबों तालुकेदारों, जमीदारों, राजाओं के लिए परेशानी का सबब बन गई थी। धीरे-धीरे एक-एक करके मिर्जा साहब की शान-शौकत, धन-दौलत और उनका इकबाल गिरने लगा, घर से बेघर होने लगे। उनकी जायदादें हड़प ली गई और फिर वजीफाओं पर दिन गुजरने लगे। मिर्जा साहब की भी माली हालत खस्ता हो चली थी और फिर एक दिन ऐसा आया कि मिर्जा साहब अपनी बची-खुची पूंजी और बेगमों को लेकर विलायत चले गये। गुल्लो बाई पर तो जैसे पहाड़ टूट पड़ा हो, अपने शौहर, तीन बच्चे और एक बक्सा लेकर उसने हवेली छोड़ दी। दो रातें उसने रफीक तांगे वाले के यहां गुजारी। कोई काम न मिला तो भूख प्यास ने गुल्लो बाई के कदम गलत रास्ते की तरफ मुड़ गए, फिर उनका वहां से वापस लौटना नामुमकिन हो गया। गुल्लो बाई की खूबसूरती, अदाओं की चर्चा उसे एक नामचीन रक्कासा की कोठी तक ले गई। जाहिरा बेगम ने गुल्लो बाई को अपने पास बुला लिया, उसे औरतों का पुराना तजुर्बा था। गुल्लो को सर पर छत और पेट में रोटी का सहारा मिल गया। एक शाम वह जाहिरा बेगम के पास बैठी थी, जाहिरा कुछ परेशान इधर-उधर खिड़की से झांक रही थी। गुल्लो ने बड़ी अदब और तमीज से कहा कि बेगम साहिबा गुस्ताखी माफ हो आप परेशान सी देख रही हैं। हां गुल्लो वो मेरा पान-साज नहीं आया और शाम की महफिल सजने वाली है। छोटा मुंह बड़ी बात बेगम साहिबा क्या मैं पान पेश कर सकती हूं। गुल्लो तू करेगी, अगर कोई गुस्ताखी हो गई। तौबा-तौबा हाय अल्लाह तो क्या होगा। बेगम साहिबा पहले आप मेरा बनाया हुआ पान नोस फरमायें, पसंद ना आए तो इस लड़की का सर और आपकी जूती। जा पान लगाकर ला, अल्लाह का करम गुल्लो को मुंह मांगी मुराद मिल गई। वो रात और गुल्लो किस्मत का रास्ता।
जाहिरा बेगम की शाम की महफिल जितनी मौज-मस्ती के लिए, उतनी ही गुल्लो बाई के पान के लिए मशहूर हो चुकी थी। गुल्लो, जाहिरा बेगम की खासदार बन चुकी थी और सब जरूरी काम भी संभाले लगी थी। एक अंग्रेज तहसीलदार को गुल्लो से इश्क हो गया और उसने चौक में एक दुकान उसके नाम कर दी।
अब गुल्लो बाई खिलाड़ी बन चुकी थी, उसमें हुनर था कि हुस्न की दौलत किस पर कब और कितनी लुटानी है। गुल्लो बाई का नाम और पान ही शहर के रईसों की पहली पसंद बन चुका था। चौक पर उसकी दुकान ही गुल्लो तक पहुंचाने का सीधा रास्ता बन चुकी थी। गुल्लो के पान में ग्राहकों को मर्दाना जोश में इजाफा होने का एहसास होने लगा। अलग-अलग पान की अलग-अलग कीमत। अंग्रेजी हुकूमत में 10-10 रुपये तक पान बेचा। गुल्लो अब उमर दार होती जा रही थी। गुल्लो के कम और पान के आशिक ज्यादा हो गए थे। गुल्लो अब फिकरमंद रहने लगी थी। मेरे जाने के बाद मेरे पान का कारोबार कौन संभालेगा। बड़े लड़के मियां सादाब को इस कारोबार में कोई खास रुचि नहीं थी। वह पान भी नहीं खाता था। गुल्लो ने एक दो बार सादाब को कोठी की लड़कियों के साथ बतियाते देखा था। मियां सादाब की कद काठी तो बड़ी थी, लेकिन उसमें जो उत्साह होना चाहिए वह नहीं था। गुल्लो बाई थोड़ी फिकर करने लगी थी।
काश! सादाब पान खा लेता! मियां सादाब का निकाह हुआ और आज पहली रात थी। नेग की रस्म खत्म हुई। सादाब पहले मिलन के लिए खास-तौर से तैयार कमरे में जाने से पहले अम्मी को सलाम करने आया। गुल्लो बाई ने मुबारकबाद देते हुए एक पान का डिब्बा पेश किया। सादाब बोला मम्मी जान मैं पान कहां खाता हूं। गुल्लो बाई ने सर पर हाथ फेरते हुए बड़े खुलूस और एहतराम के साथ कहा बेटा पान खा लेना। यही पान बता देगा कि मेरे पान का कारोबार आगे कौन करेगा। सादाब की पहली रात बेहद कामयाब रही। सुबह मम्मीजान को आदाब पेश करते हुए सादाब बोला आपका पान और पान की दुकान तब तक जिंदा रहेगी जब तक मैं, गुल्लो ने सादाब को गले लगा लिया और रोने लगी। मियां सादाब ने सलाम करते हुए कहा मैं शागिर्द और आप उस्ताद। गुल्लो बाई का पान, कामयाब शादी का नाम बन गया। दुकान पर नई तख़्ती लग गई – “गुल्लो बाई का पान शाम की शान”।
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