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घमंडी राजा

डॉ कृष्ण कांत श्रीवास्तव
बहुत समय पहले की बात है। किसी राज्य में एक राजा राज करता था। वह बहुत ही घमंडी था। लोगों को कुछ भी नहीं समझता था। लोगों पर अत्याचार करता था और परेशान करता था। वह जबरदस्ती कर वसूलता था। एक दिन उस राजा ने सभी से कर वसूलने के लिए अपने सेनापति को भेजा।
जब सेनापति अपने साथ कुछ सिपाहियों को लेकर कर वसूलने के लिए जा रहे थे। तो रास्ते में उन्हें एक आदमी मिला। सेनापति ने उस आदमी से कहा कि तुमने बहुत समय से अपना कर नहीं दिया है। सेनापति की बात सुनकर आदमी ने कहा कि मेरे पास अभी कर चुकाने लायक धन नहीं है। सेनापति उसे पकड़ कर अपने साथ ले गए और उसे राजा के सामने उपस्थित किया। सेनापति ने राजा से कहा कि यह व्यक्ति राज्य का निवासी है और कर देने से मना कर रहा है। इस पर क्रोधित होकर राजा ने कहा कि इसे अगले दिन बुलाना। मैं इसे सजा सुनाऊंगा। आदमी बहुत गिड़गिड़ाया और कहने लगा महाराज मुझे माफ कर दीजिए। मेरे पास इतना धन नहीं है। मैं आप का कर चुकाने में असमर्थ हूं। मैं तो अपने और अपने परिवार का पेट पालने भर का भी धन नहीं कमा पाता हूं। मैं राज्य का कर कैसे चुका पाऊंगा।
तभी राज्य में एक साधु महाराज पधारे। उन्होंने देखा कि राजा अपने ही राज्य की जनता पर अत्याचार कर रहे हैं। साधु ने राजा से कहा कि आप ऐसा क्यों कर रहे हैं। साधु महाराज की बात सुनकर, राजा ने कहा कि अगर तुम भी ज्यादा सवाल जवाब करोगे तो मैं तुम्हें भी सजा सुना दूंगा। क्योंकि मैं इस देश का राजा हूं और मुझे अपनी प्रजा से कर वसूल करने का अधिकार है। मैं अत्यंत शक्तिशाली हूं और मैंने अपनी शक्ति के बल पर कई राज्य के राजाओं को पराजित कर उनके राज्य को अपने राज्य में मिला है। यह व्यक्ति हमारे राज्य में रहता है और हमारे राज्य की समस्त सुविधाओं का उपयोग करता है। इसलिए इसे कर तो देना ही होगा। इस पर साधू ने कहा कि अगर तुम सब कुछ जीत चुके हो तो मेरे एक सवाल का उतर दो। अगर तुमने सही-सही उत्तर दिया तो मैं समझ लूंगा कि तुम चक्रवर्ती सम्राट हो और तुम्हें अपने राज्य की जनता से कर वसूलने का अधिकार है।
साधु ने राजा से कहा कि महाराज आप हमारे साथ चलें। मैं आपको एक ऐसे स्थान पर ले चलूंगा। जहां बहुत अधिक सोने, चांदी और हीरे जवाहरात एकत्रित हैं। आप अपनी आवश्यकता अनुसार जितना चाहे उतना सोना चांदी वहां से ला सकते हैं। राजा बहुत लालची था। वह उस स्थान पर जाने के लिए तैयार हो गया। राजा का लालच देखकर साधु ने एक शर्त रखी। कहा महाराज वहां पर आपको अकेले ही जाना होगा। आप अपने साथ अपने सैनिकों को नहीं ले जा सकते। राजा ने साधु की शर्त स्वीकार कर ली और साधु के साथ जंगल की ओर चल दिया।
चलते-चलते शाम हो गई। राजा और साधु सघन जंगल के बीच पहुंच गए। अत्याधिक थकान के कारण राजा को भूख और प्यास लगने लगी। यहां घने जंगल में भूख और प्यास मिटाने की कोई सुविधा नहीं थी। घने जंगल के बीच राजा अपने राज्य को जाने का रास्ता भी भटक गया। राजा ने साधु से कहा, “मैं बहुत थक गया हूं और मुझे अत्यधिक भूख और प्यास सता रही है, मुझे पानी पिलवा दीजिए।” साधु ने राजा से कहा कि महाराज, अभी तो हम लोगों ने आधी दूरी भी तय नहीं की है।
राजा बोले महाराज इस वक्त मुझे धन नहीं भोजन चाहिए। यदि मुझे भोजन ना मिला तो मैं यहीं पर अपना दम तोड़ दूंगा। महात्मा बोले ठीक है महाराज मैं आपके भोजन की व्यवस्था करता हूं। कुछ समय के बाद साधु राजा के सामने एक व्यक्ति को लेकर उपस्थित हुआ। उसके पास थोड़ा सा भोजन और पानी था। साधु ने उस व्यक्ति से कहा, “हे महानुभाव, यह सज्जन आपके राजा हैं और इस समय भूख और प्यास से व्याकुल हैं। आप अपने हिस्से का खाना और पानी राजा को दे दीजिए, महान कृपा होगी।
व्यक्ति बोला कि यदि राजा अपनी सारी धन-संपत्ति मुझे देने का वादा करें तो मैं इस वक्त अपना भोजन और पानी इन्हें दे दूंगा। मरता क्या न करता राजा भूख और प्यास से बहुत अधिक व्याकुल था। राजा ने उसकी बात तुरंत मान ली और भोजन पानी ले लिया।
दूसरे दिन महल में आकर साधु ने राजा को समझाया। साधु ने कहा, “देखो राजन जिस प्रकार कल तुम अपनी भूख और प्यास के बदले पूरा राज्य देने के लिए तैयार हो गए थे, उसी प्रकार आपके राज्य की गरीब जनता भी अपने बच्चों के खाना पानी के लिए जी तोड़ मेहनत करती है। ऐसे में यदि वह राज्य का कर ना दे पाए तो उसे दंडित नहीं करना चाहिए। राजा को बात समझ में आ गई। उसने साधु का अत्यधिक आदर सत्कार कर विदा किया। और अपने घमंड को त्याग कर राज्य की जनता के सुख के लिए कार्य करना प्रारंभ कर दिया।
कहते हैं कि फलों से लदा पेड़ लचक जाता है। उसी प्रकार धन से संपन्न व्यक्ति को जरूरतमंद लोगों की अवश्य मदद करनी चाहिए।
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