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घर वापसी

लक्ष्मी कांत

कम्पनी से ऑप्शन फॉर्म आया हुआ था। कम्पनी जानना चाहती थी कि मुझे अभी और कम्पनी में बने रहना है या फिर वीज़ा फिनिश कर देश वापस लौटना है। मैं अभी एक्सटेंशन के लिए फॉर्म भर ही रहा था कि घर से मधु का वीडियो कॉल आ गया।
उसने याद दिलाया कि बीस दिन बाद बिट्टू का पांचवां जन्मदिन है, और मैं इंडिया आ रहा हूँ कि नहीं।
मैंने कहा, "यार मधु अट्ठारह लाख जमा हो गए हैं, छः महीने का एक्सटेंशन ले रहा हूँ बस बीस लाख हो जायें तो आकर वहीं कोई बिज़नेस सेट कर लूँगा, कितनी बार तो कहा है तुम्हें, पर तुम समझती ही नहीं।"
"हाँ मैं कुछ नहीं समझती, आप आ जाओ बस आपको पाँच साल से ऊपर हो गए गये हुये। बिट्टू पेट में तीन महीने का था तब गए थे। आज तक बच्चे ने अपने पापा का मुँह वीडीओ कॉल के अलावा देखा ही नहीं है। न आपने उसे छुआ भी है। ऐसे पैसे किस काम के?? चले आओ बस।" मधु झल्लाई।
"अरे यार! ये सब तुम लोगों के लिये ही तो कर रहा हूँ। बस छः महीने की तो बात है।" मैंने कोफ़्त से कहा।
मधु ने फोन बेटी मिष्टी को पकड़ा दिया और मुँह फुलाकर बैठ गई।
"पापा, आ जाओ न।" मिष्टि ने विनती की।
"आऊँगा बेटा बस छः महीने की तो बात है, आ जाऊँगा।" मैंने समझाने की कोशिश की।
"पापा मैं आपके ये छः महीने तो पिछले दो साल से सुन रही हूँ। आप हैं कि आने का नाम ही नहीं लेते। जब चाचू, मोनू को कंधे पर बैठा कर घूमते हैं, तो बिट्टू बहुत ललचाई नज़रों से देखता है। पापा आप लेट करते जाओगे तो एक दिन ऐसा आएगा, जब बिट्टू इतना बड़ा हो जाएगा कि आप बिट्टू को कंधे पर उठा भी न पाओगे। उसके मन की इच्छा भी तब तक खत्म हो जाएगी। ऐसा होने से पहले आ जाओ। और पापा क्या फर्क पड़ता है कि अट्ठारह लाख जमा हुए या बीस लाख? ये पैसे यहाँ भी जमा हो सकते हैं। हमें आप चाहिए पैसे नहीं।" तेरह साल की मिष्टि ने बहुत बड़ी बात कह दी थी। मधु के सुबकने की आवाज आ रही थी और मैंने कॉल काट दी।
मैंने कुर्सी की पुश्त पर गर्दन टिका दी, tv पर गाना चल रहा था "दिल ढूंढता है फिर वही, फुर्सत के रात दिन….."मेरी निगाहें और दिमाग वहीं पर जम गया। दिख रहा था कि कैसे संजीव कुमार, पेड़ के पीछे खड़े होकर अपने अतीत को देख रहा था। एक तरफ जवान संजीव कुमार, शर्मिला टैगोर के साथ हाथ में हाथ पकड़े चल रहा था, और एक तरफ बूढ़ा संजीव कुमार पेड़ के पीछे से अपना अतीत झाँक रहा था। मैं भी सोच में गुम हो गया था। मैं भी तो अपना वर्तमान अतीत बना रहा था। वो तो फ़िल्म थी जहाँ, जहां संजीव कुमार फ्लैश बैक में देख पा रहा था, पर असली जिंदगी में तो फ्लैश बैक में केवल यादें रहती हैं दिखाई कुछ नहीं देता।
मैंने tv से नजर हटाई तो टेबल पर साइड में रखा फोटो फ्रेम दिख गया जिसमें मधु, मिष्टि और बिट्टू की फोटो दिख रही थी। मैंने वहाँ से नज़र हटाई तो सामने लगे शीशे पर नजर पड़ गई। मेरी कनपटी पर सफ़ेद बाल नज़र आ रहे थे। मैंने आँखें बंद कर ली, और कुर्सी की पुश्त पे फिर से सर टिका दिया। मैंने सोचा तेरह साल की मिष्टि ने कितनी बड़ी बात कह दी थी। उन्हें पैसे नहीं मैं चाहिए था, और बिट्टू बड़ा हो जाएगा तो सच में मैं उसे कंधे पर नहीं बिठा पाऊँगा।
मैं झट से उठा और अपने लैपटॉप पर कम्पनी से आये ऑप्शन फॉर्म पर वीज़ा फिनिश की एंट्री कर दी। मैं जानता था, कल ये अप्रूव हो जाएगी और मैं घर लौट जाऊंगा। मैं सोने का अथक प्रयास कर रहा हूँ, मगर आँखों से नींद कोसों दूर है। बार-बार ये एहसास हो रहा है कि घर जाते ही बिट्टू को कंधे पर बिठाकर देर तक और दूर तक घुमाऊंगा। पहली बार अपने बच्चे को हाथ से छूकर महसूस करूँगा। रात है कि कट नहीं रही... और नींद है कि आ नहीं रही। बस एक मीठी सी खुशी का एहसास हो रहा है।

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