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घरेलू महिला

भूपेंद्र बघेल

मोहन आज फिर लता को उसकी औकात दिखा कर दफ्तर के लिये निकल गया और वो दिखाये भी क्यों ना, क्योंकि लता एक घरेलू महिला है। वो कोई ज्यादा पढ़ी लिखी लड़की नहीं। न ही वो कोई कामकाजी सफल महिला है। उसका काम सिर्फ कपड़े धोना, खाना पकाना, बिस्तर लगाना, घर की सफाई करना, बच्चों को अच्छी शिक्षा देना, घर के बड़े-बूढों का ध्यान रखना और घर में आये मेहमानों का स्वागत करना ही तो हैं। इन सब काम की क्या अहमियत? यह तो कोई नौकरानी भी कर सकती हैं, यह सब सोचकर लता ने अपने गालों से आँसुओं की बूंदों को साफ किया और फिर से अपने कामों मे जुट गई।
रोज की तरह मोहन का फोन आया कि वह देर से घर आयेगा, खाना बाहर ही खायेगा। लता समझ गई थी कि पियेगा भी बाहर। पहले तो लता रोज मोहन से इस बात के लिए लड़ती थी और वो यह कहकर फटकार देता है कि वो मेहनत करता है और कमाता हैं। वो जो चाहे करे पर अब तो जैसे वो थक चुकी थी। वह मोहन के मुँह ही नही लगना चाहती थी क्योंकि वह कई बार कह चुका था कि उसे इस घर की जरूरत है ना कि इस घर को उसकी जरूरत। वो जब चाहे इस घर को छोड़कर जा सकती हैं। लता यह सोचकर चुप हो जाती कि शायद मोहन सही कह रहा हैं वो जायेगी भी कहॉ? मायका तो बचपन से ही पराया होता है। अगर घर की बेटी चार दिन भी ज्यादा रूक ले तो आस पड़ोस वालो के कान खड़े हो जाते हैं, नाते रिश्तेदार चुटकियॉ लेना शुरू कर देते है और बात मॉ बाप की ईज्जत पर बन आती है यही सब सोचकर लता अपमान के घूंट पी जाती हैं।
अगले दिन लता की तबियत कुछ ठीक सी नहीं लग रही थी। उसने नापा तो उसे बुखार था। लता ने घर पर ही रखी दवा ले ली और जैसे तैसे नाश्ता और बच्चो का टिफ़िन लगा दिया और कमरे में जाकर लेट गई। मोहम यह कह कर चला गया कि डाक्टर को दिखा लेना।
शाम तक लता का बुखार बढ़ गया उसकी तबियत में जरा भी सुधार नही हुआ, उसने मोहन को फोन किया तो उसने कहा वो घर आते वक्त दवा लेता आयेगा।
मोहन ने लता के पास दवा रख दी और कहा ले लो। क्योंकि उसने दवा लाने का इतना महान काम जो किया। पत्नी ऐसा नही कर सकती वो दवा देगी और प्यार से उसके माथे पर हाथ भी फेरेगी।
उधर सासु मँ ने खाना बनाकर आज रात के लिऐ यह मोहर लगा दी कि वाकई में इस घर को लता की जरूरत नही। रात को लता ने खाना नही खाया। वो बैचेन होकर तड़प रही थी। उधर मोहन चैन की नींद सो रहा था। सोये भी क्यों न उसे अगले दिन काम पर जो जाना था, वो कमाता हैं, इस घर को उसकी बहुत आवश्यकता हैं।
अगले दिन मोहन दवा ले लेना कहकर चला गया और रात को डाक्टर के पास चलना, अपना महान फ़र्ज़ निभाकर चला गया। उधर सास ने भी बीमारी में हाथ पैर चलाने की नसीहत देकर महानता का उदाहरण दे दिया। शाम को लता की तबियत और बिगड़ गई, सास ने मोहन को फोन किया। उसने कहा वो अभी आता है, पर मोहन को यह कहे भी एक घण्टा हो गया। फिर मोहन को दोबारा फोन किया तब तक लता मौत के करीब पहुँच चुकी थी।
मोहन घर आकर उसे अस्पताल ले गया तब तक लता मर चुकी थी। अब लता को किसी की जरूरत नही थी, पर अब लता की सबको जरूरत थी।
आज लता की तेरहवीं हो चुकी थी, दिलासा देने वाले मेहमान सब जा चुके थे, अब मोहन को दफ्तर जल्दी नही जाना था, जाता भी कैसे अब उसे घर के बहुत से काम करने थे जो लता के होने पर उसे पता भी नही चलता था, आज उसे पता लगा इस घर को लता की कितनी जरूरत है। आज उसको अपने तौलिये, रूमाल, अपनी दफ्तर की फाईल यहॉ तक कि वो छोटी-छोटी चीज़े जिसका उसे आभास भी नही था, नही मिल रही थी। उसे पता भी नही था कि उसे लता की कितनी जरूरत हैं। आज लता के जाने के बाद घर, घर नही चिड़ियाघर नजर आता था। सास की दवाई और बच्चों को समय पर खाना नही मिल रहा था, मोहन को रात को अपना बिस्तर लगा नही मिलता था। आज मोहन का घर पर इन्तजार करने वाला कोई नही था। उसको किसी को बताने की आवश्यकता नही कि वो कहॉ है और कब आयेगा, क्योकि कोई पूछने वाला ही नही। आज मोहन को लता की बहुत जरूरत है। पर लता को यह साबित करने के लिए कि मेरी भी जरूरत है सबको...मौत को गले लगाना पड़ा। उसे अपनी अहमियत बताने के लिये इस दुनिया से विदा होना पड़ा। आज सबने मान लिया कि लता को इस घर की नही, इस घर को लता की ज्यादा जरूरत हैं।

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