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चैन से जीने दो

उर्मिला तिवारी

"तुम बिन मैं कुछ नहीं, तुम्हारा साथ हर मुश्किल को पार करने के लिए काफी है। तुम हो, तो मैं हूँ, वरना कुछ भी नहीं।"
पढ़ते पढ़ते शारदा जी ने कहा, "आपने वाकई बहुत अच्छा लिखा है"
सुनकर दीपक जी बस मुस्कुरा कर रह गए।
यह हैं दीपक जी और उनकी पत्नी शारदा जी। कभी दोनों सरकारी नौकरी में थे, पर आज दोनों रिटायर हो चुके हैं और अपने बड़े से घर में दोनों अकेले रहते हैं। यह घर उन्होंने अपने परिवार के लिए बनाया था। उनके परिवार में तीन बेटियां, दो बेटे थे।
धीरे-धीरे बच्चे बड़े हुए तो पढ़ाई पूरी होने के बाद एक-एक करके सब का विवाह कर दिया। बड़े बेटे की अमेरिका में नौकरी लगी तो वह अपने परिवार सहित वहां चला गया। और छोटा बेटा मुंबई में अपने परिवार के साथ शिफ्ट हो गया। बेटियों का ससुराल भी दूसरे शहर में था इसलिए दोनों यहां अकेले रहते थे।
बड़े बेटे ने अपने साथ पढ़ने वाली अंजलि से प्रेम विवाह किया था, पर अंजलि इस परिवार में कभी भी एडजस्ट नहीं कर पाई। उसे ऐसा लगता जैसे उसे बंदिशों में रखा जाता है। जिस कारण से आए दिन घर में झगड़े होने लगे। जिस कारण उनके बड़े बेटे ने बाहर नौकरी करना ही ठीक समझा और अमेरिका में जॉब प्लेसमेंट हुई तो उस नौकरी को उसने ना नहीं कहा। अब वह दो-तीन साल में एक बार मिलने आ जाता।
वहीं दीपक जी और शारदा जी ने अपने छोटे बेटे की शादी अपनी मर्जी से करवाई। यह सोच कर कि प्रेम विवाह सफल नहीं होते, लेकिन वहाँ भी किस्मत ने साथ नहीं दिया। छोटे बेटे की पत्नी अंजू को ऐसा लगता था कि सारी सेवा मैं ही क्यों करूं? घर की बड़ी बहू भी तो है! इसलिए आए दिन वह भी घर में झगड़ा करने लगी, जिस कारण से छोटा बेटा भी मुंबई शिफ्ट हो गया।
अब दीपक जी और शारदा जी अकेले रह गए। कुछ दिनों बाद शारदा जी की तबीयत बहुत ज्यादा बिगड़ गई। इस कारण से उनका पूरा परिवार वहां मौजूद था। तो दीपक जी ने अपने बेटों से कहा, "तुम्हारी माँ तुम्हें दिन रात याद करती रहती है। तुम लोग यहीं रुक जाओ। यही रह कर कोई नौकरी कर लो।"
सुनकर दोनों बेटे एक दूसरे की शक्ल देखने लगे और उनकी पत्नियों का मुंह बन गया।
अंजलि ने कहा, "हम इस तरह की किसी बंदिश में नहीं रहना चाहते। हमें खुलकर जीने की आदत है।"
"मैं अकेली ही सेवा करने के लिए थोड़ी ना हूं। भाभी तो अपने पति के साथ अमेरिका चली जाएगी। मैं अकेली ही यह क्या खटती रहूंगी।" छोटी बहू ने भी अपना राग अलापा।
"यहाँ कौन सी बंदिश है। तुम तुम्हारे मन मुताबिक कपड़े पहन सकती हो, घूम सकती हो, किसी चीज की मनाही तो नहीं है।" दीपक जी ने समझाना चाहा।
"हमसे आप लोगों की कोई सेवा नहीं होती। आप बड़ी बहू से पूछ लो" छोटी बहू ने कहा।
इस पर बड़ी बहू का मुंह बन गया और वह रूठ कर के अपने पीहर चली गई।
इस बात पर अच्छी खासी बहस हो गई। दोनों बेटे कहने लगे कि हमारी जिंदगी हैं हमें जीने दीजिए। क्यों हमें परेशान कर रहे हैं। आप लोगों ने तो अपनी जिंदगी जी ली, अब हमारी जिंदगी में क्यों दखलअंदाजी कर रहे हो। वैसे भी हमें पाल पोस कर कोई एहसान नहीं किया आपने। ये आपका फर्ज था, वही निभाया है। आपको चाहिए तो, और पैसों की जरूरत हो तो, हम वह देने को तैयार हैं पर हम यहां नहीं रह सकते।
दोनों की बातें सुनकर दीपक जी मौन हो गए अपने ही खून की इस तरह की चल रही जुबान को देखकर वो हैरान रह गए थे।
दूसरे दिन दोनों बेटे वहां से रवाना हो गए। बेटियां जरूर थोड़े दिन रुकी। हालांकि बेटियां हर दो-तीन महीने में आकर मिल जरूर जाती। पर फिर भी अकेलापन तो था ही। इस इस कारण धीरे-धीरे शारदा जी की तबियत खराब रहने लगी।
फिर एक दिन दीपक जी ने फैसला किया और शारदा जी से कहा, "बच्चों को हमारी जरूरत नहीं। वह अपनी जिंदगी जीना चाहते हैं तो उन्हें जीने दो। हम अपनी जिंदगी अपने आप जिएंगे। हमें अपनी जो इच्छाएं अपनी जिम्मेदारियों को पूरी करते हुए पूरी नहीं कर पाये, उन्हें अब हम पूरा करेंगे। बस इसमें मुझे तुम्हारा साथ चाहिए।"
शारदा जी ने मुस्कुराकर हां कहा।
शारदा जी और दीपक जी को मूवी देखने का बहुत शौक था, किंतु जिम्मेदारियों को चलते वे दोनों अपनी इच्छा मार लेते थे। पर आज सत्तर साल की उम्र में दीपक जी ने कार चलाना सीखी और अपनी नई कार में शारदा जी को बिठाकर मूवी देखने गए।
जब उनके बेटों को पता चला कि पापा ने नई कार खरीद ली तो उन लोगों ने कहा, "पापा क्यों बेवजह पैसे खर्च कर रहे हो? इस उम्र में कहां गाड़ी का शौक चढ़ा है आपको? क्या यह सब शोभा देता है?"
"बेटा, तुम लोगों की पढ़ाई लिखाई और परवरिश में बहुत पैसा खर्च कर दिया पर माफ करना उसका तो कोई रिटर्न भी नहीं है। पर चिंता मत करो। वह हम तुमसे मांग नहीं रहे। रही बात इस उम्र में नए शौक की, तो शौक तो पहले से ही था, पर हर बार हम अपनी इच्छाओं को दबा दिया करते थे, क्योकि पहले हमें तुम नजर आते थे।
और आखिरी और जरूरी बात। यह हमारी जिंदगी है, हमें चैन से जीने दो। बहुत इच्छाएँ मार ली अब तक, अब वक्त है तो उसे जीने दो"
दोनों बेटों की उसके आगे कुछ कहने की हिम्मत भी ना हुई।

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