संगीता अग्रवाल
"मिताली कहाँ हो तुम?" विनय ऑफिस से आते ही चिल्लाया।
"अरे क्यों गरम हो रहे हो, क्या हुआ बताओ तो?" मिताली रसोई से निकल पूछने लगी।
"मेरे बैग से 10 हजार रुपए क्यों निकाले तुमने? वो पैसे मैंने किसी को देने को रखे थे। मुझे कितना शर्मिंदा होना पड़ा तुम्हें पता भी है।" विनय फिर चिल्लाया।
"पर मैंने तो कोई पैसे नही लिए बल्कि मैं तो तुम्हारे बैग को हाथ भी नही लगाती कहीं रोहित ने तो नही लिए?" मिताली बोली।
"पागल हो क्या मेरा बेटा है वो उसे चोरी की क्या जरूरत है। ये काम जरूर माधव का है। माधव ओ माधव कहाँ है?" विनय ये बोल घरेलू सहायक को आवाज़ देने लगा।
"जी मालिक!" पचास साल के करीब का माधव आकर बोला उसकी आवाज़ सुन रोहित भी कमरे से बाहर आ गया।
"मालिक के बचे तूने मेरे बैग में से दस हजार रूपए क्यों चुराए?" विनय गुस्से में चीखा। विनय का चीखना सुन रोहित सकपका गया।
"नही मालिक मैंने पैसे नही लिए दस साल से यहां काम कर रहा हूँ। आज तक कभी ऐसा हुआ है क्या?" माधव दीन स्वर में बोला।
"जरूरी नही जो अब तक ना हुआ वो अब भी ना हो। मजबूरी इंसान से सब कराती है। वैसे भी तुझे पैसे की जरूरत थी और मैंने देने से इंकार कर दिया था। सच बता वरना पुलिस बुलाता हूँ।" विनय लगातार चिल्ला रहा था और माधव यही बोल रहा था। उसने पैसे नही लिए।
"पैसे मैंने लिए है पापा!" अचानक रोहित बोला।
"क्या? तुमने पर क्यों?" मिताली बोली।
"मम्मा मेरे दोस्त के पास खुद का फोन है। पर आपने बोला जब मैं 16 साल का होऊंगा तब मुझे फोन मिलेगा। बस इसलिए मैने वो पैसे ले लिए, जिससे मैं फोन ले सकूँ।" डरते-डरते रोहित बोला।
"तेरी ये मजाल अपने घर में चोरी करता है।" विनय ने उसे मारने को हाथ उठाया।
"ना ना मालिक, ये गलती मत करना आज रोहित बाबा ने सच बोला है। पर अगर आप मारोगे उसे तो भविष्य में वो कभी सच नही बोलेगा। आप इसे प्यार से समझाइये बच्चा है, समझ जायेगा।" माधव रोहित का बचाव करता बोला।
"काका मुझे माफ़ कर दीजिये। मेरे कारण आप पर चोरी का इल्जाम लगा, फिर भी आप मुझे बचा रहे हो।" रोहित माधव से हाथ जोड़ बोला।
"नही बेटा हमें तो इसकी मानो आदत सी है गरीब हैं ना इसलिए चोरी का इल्जाम हम लोगों पर ही लगता है। भले वो किसी ने भी की हो।" माधव दुखी स्वर में बोला।
"माधव, माफ़ तो तुम मुझे भी कर दो। तुमने सच कहा हम लोग बहुत आसानी से गरीब पर इल्जाम लगा देते हैं। जबकि अक्सर ऐसे मामलो में चोर घर का ही होता है।" विनय शर्मिंदा होते हुए बोला। पर तब तक माधव वहाँ से जा चुका था, हमेशा के लिए।
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