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ज़िन्दगी ख़ूबसूरत है।

सरला सिंह

कुछ साल पहले, मेरी एक सहेली ने सिर्फ 50 साल की उम्र पार की थी। लगभग 8 दिनों बाद वह एक बीमारी से पीड़ित हो गई थी और उसकी जल्दी ही मृत्यु हो गई।
ग्रुप में हमें एक शोक संदेश प्राप्त हुआ कि "दुख की बात है .. वह हमारे साथ नहीं रही।" दो महीने बाद मैंने उसके पति को फोन किया। ऐसे ही मुझे लगा कि वह बहुत परेशान होगा, क्योंकि ट्रैवल वाला जॉब था। अपनी मृत्यु तक मेरी सहेली सब कुछ देख लेती थी, घर, अपने बच्चों की शिक्षा, वृद्ध ससुराल वालों की देखभाल करना, उनकी बीमारी, रिश्तेदारों का प्रबंधन करना, सब कुछ, सब कुछ, सब कुछ।
वह कहती रहती थी, "मेरे घर को मेरे समय की जरूरत है, मेरे पति चाय काफ़ी भी नहीं बना पाते, मेरे परिवार को मुझसे हर चीज के लिए जरूरत है, लेकिन कोई भी मेरे द्वारा किए गए प्रयासों की परवाह नहीं करता है और न ही मेरी सराहना करता है। सब मेरी मेहनत को नोर्मल मान के चलते हैं।"
मैंने उसके पति को यह जानने के लिए फ़ोन किया कि क्या परिवार को किसी सहारे की जरूरत है। मुझे लगा कि उनके पति बहुत परेशान होंगे। अचानक से सारी ज़िम्मेदारियों को निभाना है, उम्र बढ़ने के साथ-साथ माता-पिता, बच्चे, अपनी नौकरी, इस पर अकेलापन कैसे होंगे बेचारे?
फोन कुछ समय के लिए बजा, नही उठाया। एक घंटे के बाद उन्होंने वापस कॉल किया। उसने माफी मांगी कि वह मेरे कॉल का जवाब नहीं दे पाए। क्यूँकि अपने क्लब में एक घंटे के लिए टेनिस खेलना शुरू किया था और दोस्तों से मिलना वग़ैरह भी। यह सुनिश्चित करने के लिए कि उनका समय ठीक से गुजर जाए।
यहां तक कि उन्होंने पुणे में स्थानांतरण करवा लिया। इसलिए अब ट्रैवल नही करना पड़ता। "घर पर सब ठीक है?" मैंने पूछा; उन्होंने जवाब दिया, एक रसोइया रख लिया है। थोड़ा और पेमेंट किया तो वह किराने का सामान और सब्ज़ी फल वग़ैरह भी ला देगा। उन्होंने अपने बूढ़े माता-पिता के लिए फ़ुल टाइम केयर-टेकर रख ली थी।
"ठीक चल रहा है, बच्चे भी ठीक हैं। जीवन धीरे-धीरे सामान्य स्थिति में लौट रहा है” उन्होंने कहा।
मैं मुश्किल से एक-दो वाक्य बोल पायी और हमारी बात पूरी हो गयी।
मेरी आंखों में आंसू आ गए। मेरी सहेली मेरे ख्यालों में आ रही थी। उसने अपनी सास की छोटी सी बीमारी के लिए हमारे स्कूल के जॉब को छोड़ दिया था। वो अपनी भतीजी की शादी में नही गयी क्योंकि उसको अपने घर में मरम्मत के काम की देखरेख करनी थी।
वह कई मजेदार पार्टियों और फिल्मों से चूक गई थी क्योंकि उसके बच्चों की परीक्षा थी और उसे खाना बनाना था। उसे अपने पति की जरूरतों का ख्याल रखना था।
उसने हमेशा कुछ प्रशंसा और कुछ पहचान की तलाश की थी। जो उसे कभी नहीं मिली।
आज मुझे यहां कुछ कहने का मन हो रहा है। यह दुनिया बड़ी निष्ठुर है। यह आपके जाने के बाद कुछ समय तक आपको याद रखती है और उसके बाद भुला देती है। यह सिर्फ हमारे दिमाग का भ्रम है कि हमारे बाद हमारे परिवार का क्या होगा।
मन का यह वहम हटा दो कि मैं अपरिहार्य हूं और मेरे बिना घर नहीं चलेगा।
अतः सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अपने आप के लिए समय निकालें। अपने दोस्तों के साथ संपर्क में रहें। बात करें, हंसें और आनंद लें। अपने शौक़ पूरे करो, अपने जुनून को जियो, अपनी जिंदगी को जिओ।
हर किसी को आपकी ज़रूरत है, लेकिन आपको भी अपनी देखभाल और प्यार की ज़रूरत है। हम सभी के पास जीने के लिए केवल एक ही जीवन है।

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