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जग का मेला

सत्येंद्र तिवारी


जग का मेला लगा रहेगा
लगा रहेगा आना-जाना
यही सत्य हमने पहचाना।
ठगे गए सब इस मेले में,
जाने कौन यहां ठगता है
सब को ठगने वाला अपना,
सच में बहुत सगा लगता है
चाहत बार-बार कहती है,
ठगने वाले रूप दिखाना
सब में रहकर क्यों अनजाना।
यही सत्य हमने,.........
है कच्चा धागा संबंधों का,
सपने जैसे अनुबंधों का
मायावी यह जादू-टोना,
तन-माटी सोंधी गंधों का
जगत में अनुरागी प्रकृति के,
अनुरागों का रूप सयाना
सीखा नव खिलवाड़ बनाना।
यही सत्य हमने..........
मात-पिता संतान सहोदर,
पंचतत्वों से मिली धरोहर-को,
केवल अभिनय करना है
बजे सांस की जब तक मउहर
जगत-रंगमंच पर पर्दा,
उसे उठाना उसे गिराना
छुपकर बदले रोज ठिकाना।
यही सत्य हमने..........

*****

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