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जादुई सांप की कहानी

एक गांव में एक ब्राह्मण रहता था। वह आसपास के गांव में भिक्षा मांगकर अपना और अपने परिवार का पेट पाला करता था। एक बार ब्राह्मण को लगने लगा की उसे बहुत कम भिक्षा मिल रही है जिससे उसके परिवार का गुजारा बहुत मुश्किल से हो रहा है। इसलिए उसने सोचा मुझे राजा से मदद लेनी चाहिए।
ब्राह्मण राजदरवार जाने के लिए घर से निकल पड़ा। जब वह जंगल में से गुजर रहा था तो उसे एक पेड़ के पास एक सांप दिखाई दिया।
सांप ब्राह्मण को प्रणाम करके बोला,
“हे ब्राह्मण महाराज, आज सुबह सुबह कहाँ जाने के लिए निकल पड़े?”
ब्राह्मण ने अपनी समस्या सांप को बताई,
“मैं राजा से सहायता लेने के लिए जा रहा हूँ।”
सांप ने कहा,
“मुझे पता है आप क्या समस्या लेकर जा रहे हो। तुम्हारे घर में इस समय बहुत गरीबी छाई हुई है इसलिए राजा से मदद लेने जा रहे हो।”
ब्राह्मण ने कहा,
“सांप आप तो सब जानते हो!”
सांप ने कहाँ,
“हाँ ब्राह्मण, मैं जादुई सांप हूँ और भविष्यवाणी कर सकता हूँ कि आगे क्या होने वाला है?”
ब्राह्मण ने कहा,
“कैसी भविष्यवाणी?”
सांप ने कहा,
“हे ब्राह्मण महाराज मैं तुम्हे एक भविष्यवाणी सुनाता हूँ तुम वह राजा को बता सकते हो। लेकिन मेरी यह शर्त है कि राजा से मिलने वाले धन से आधा तुम मुझे दोगे।”
ब्राह्मण ने शर्त मानली।
सांप ने कहा,
“राजा से कहना की इस साल अकाल पड़ेगा इसलिए प्रजा को बचाने के लिए जो भी उपाय करना हो कर लेना।”
ब्राह्मण ने सांप को धन्यवाद दिया और राजदरवार के लिए रवाना हो गया। अगले ही दिन वह राजदरवार में पहुँच गया।
ब्राह्मण ने सिपाही से कहा,
“राजा से कहो कि एक ब्राह्मण आया है जो भविष्यवाणी करता है।”
राजा ने ब्राह्मण को राजदरवार में बुलाकर पूछा,
“बताओ तुम भविष्य के बारे में क्या जानते हो?”
ब्राह्मण ने सांप द्वारा की गई भविष्यवाणी राजा को सुनाई। राजा ने भविष्यवाणी सुनी और कुछ धन देकर ब्राह्मण को विदा किया।
वापस लौटते हुए ब्राह्मण ने सोचा,”यदि सांप को आधा धन दिया तो मेरा धन जल्दी समाप्त हो जायेगा।” इसलिए ब्राह्मण रास्ता बदलकर अपने गांव चला गया। भविष्यवाणी के अनुसार बहुत बड़ा अकाल पड़ा।
लेकिन राजा ने पहले से ही जानकारी होने के कारन बहुत से इंतजाम कर लिए थे इसलिए राजा को कोई समस्या नहीं हुई। एक साल बीत गया। ब्राह्मण का धन धीरे-धीरे खत्म हो गया और ब्राह्मण फिरसे राजा से मदद मांगने के लिए चल दिया। रास्ते में उसे फिर वही सांप मिला।
अभिनन्दन करने के बाद सांप ने ब्राह्मण से कहा,
“आधा धन देने के शर्त पर मैं तुम्हे एक भविष्यवाणी सुनाऊँगा। तुम मेरी भविष्यवाणी राजा को बता सकते हो। राजा से कहना इस साल भयंकर युद्ध होगा इसलिए जो भी तैयारी करनी है कर लो।”
आधा धन देने का वादा कर सांप से विदा लेकर ब्राह्मण राजदरवार पहुँचा। राजा ने बहुत सम्मान के साथ ब्राह्मण का स्वागत किया और एक और भविष्यवाणी करने के लिए कहा।”
ब्राह्मण ने राजा से कहा,
“महाराज इस साल एक बहुत भयंकर युद्ध होने वाला है। आपको जो भी तैयारी करनी है अभी से करलो।”
इस बार राजा ने ब्राह्मण को पहले से भी अधिक धन देकर विदा किया। अब रास्ते में फिर ब्राह्मण ने सोचा यदि सांप मिला तो आधा धन मांगेगा। इतने सारे धन का आधामैं उसे क्यों दू? क्यों न सांप को लाठी से मार दिया जाए।
हाथ में लाठी लिए ब्राह्मण जब सांप के पास पहुँचा तो सांप खतरा देखकर बिल में जाने लगा। ब्राह्मण ने सांप के पीछे से लाठी से वार किया जिससे सांप की पूंछ कट गई। लेकिन सांप जीवित बच गया। सांप के भविष्यवाणी के अनुसार इस साल राजा के पड़ोसी राज्य से भयंकर युद्ध हुआ। लेकिन पहले से ही बहुत अच्छी तैयारी होने के कारन राजा युद्ध जीत गए।
दो साल में ब्राह्मण का धन धीरे-धीरे फिरसे खत्म हो गया और उसके सामने फिरसे घर का संकट शुरू हो गया। उसने एक बार फिरसे राजा से मदद मांगने की सोची।
एक दिन सुबह सुबह राजदरवार जाने के लिए नगर की और प्रस्थान किया। जंगल में पहुँचा तो ब्राह्मण सांप के आगे से नजर छुपाकर निकलने लगा।
तभी सांप ने कहा,
“हे ब्राह्मण महाराज, इस बार मिलकर नहीं जाओगे?”
ब्राह्मण कुछ न बोल सका और नजरे नीची करके खड़ा रहा।”
सांप ने कहा,
“राजा से कहना इस बार राज्य में धर्म की स्थापना होगी, सब अच्छे काम होंगे, राजा और प्रजा सब सुख से होंगे। ध्यान रखना जो भी धन मिले उसका आधा मुझे देकर जाना।”
ब्राह्मण ने आधा धन देने का वचन दिया और राजदरवार की और रवाना हो गया। राजदरवार पहुँचने पर ब्राह्मण का विशेष स्वागत किया गया। राजा ने पिछले दो भविष्यवाणी के लिए ब्राह्मण को बहुत बहुत धन्यवाद दिया और आने वाले समय के बारे में भी पूछा।
तो ब्राह्मण ने कहा,
“महाराज, इस बार राज्य में धर्म की स्थापना होगी। राजा तथा प्रजा सुख और चैन की जिंदगी बिताएंगे। सब लोक अच्छा सोचेंगे और अच्छे काम करेंगे।”
राजा ने ब्राह्मण को बहुत सारा धन देकर विदा किया। गांव वापस लौटते हुए ब्राह्मण ने सोचा, “जब राजा ने थोड़ा धन दिया तो वह एक साल में समाप्त हो गया। जब ज्यादा धन दिया तो वह दो साल में समाप्त हो गया। सांप से गद्दारी की वह अलग।
इस बार मैं सांप का सारा हिसाब कर दूंगा।” सांप के पास पहुँचकर ब्राह्मण ने सारा धन सांप के पास रख दिया और सांप से तीनो बार का धन लेने के लिए कहा।
सांप ने कहा,
“ब्राह्मण महाराज, जब अकाल पड़ा तो तुम रास्ता बदलकर निकल गए, जब युद्ध हुआ तो तुमने मेरी पूंछ काट दी जिससे मेरा बहुत मजाक उड़ाया गया। अब जब राज्य में धर्म की स्थापना हो गई है, मैंने भविष्यवाणी की थी की लोग अच्छे काम करेंगे तुम भी धर्म के रास्ते पर आ गए हो। हम जंगली जानबरों को धन की क्या जरुरत? यह सारा धन तुम ले जाओ। ख़ुशी से जीवन बिताओ और किसी के साथ कभी भी धोखा मत करो।”
सांप को धन्यवाद देकर ब्राह्मण अपने गांव आ गया। और उसने निर्णय लिया की अब कभी भी किसी को धोखा नहीं देगा।
लालच इंसान को भटका देता है तो कभी भी लालच और धोखाधड़ी न करें।
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