सुरेंद्र गुप्त सीकर
मेरे संग आगे-आगे जाती हुई लड़की
मेरे संग पीछे-पीछे आती हुई लड़की
रोती हुई रूठी और मनाती हुई लड़की
पल-पल मृदु मुस्काती हुई लड़की
कभी ये पतंग बना ऊंची उड़ जाए,
इंद्रधनुषी सतरंग दिखलाएं
बांसुरी सुरीली सात सुरों की सुनाएं
मीठे-मीठे बोल बोल मन को लुभाएं
झूठे-मूठे सपने दिखाती हुई लड़की
जाल फेंक मछली फंसती हुई लड़की
पल-पल मृदु मुस्काती हुई लड़की
गलियों में चौबारों में सड़कों के मोड़ पर
कभी तो उघाड़े कभी चुनरी को ओढ़ कर
कभी खिल-खिलाती मिली दोनों हाथ जोड़कर
कभी दूर जाती हुई दिखी मुझे मोड पर
लाली और बिंदिया सजती हुई लड़की
पाँओ में महावर लगाती हुई लड़की
पल-पल मृदु मुस्काती हुई लड़की
कभी ये डरी हुई कभी-कभी हेकड़ी दिखाए है
जग को ठगे है कभी खुद ही ठगाए है
कभी खुद नाचे कभी सबको नाचे है
कभी नई दुल्हनिया सी शर्माए है
कभी भाव कभी ताव खाती हुई लड़की
लाखों नाक नखरे दिखाती हुई लड़की
पल-पल मृदु मुस्काती हुई लड़की
लड़की यह कोई नहीं जिंदगी है लड़की
सुख-दुख, धूप-छाव, खुशी है ये लड़की
जिंदगी और मौत की सहेली है ये लड़की
एक अनुबुछ सी पहेली है ये लड़की
पालने में झूला झूल आती हुई लड़की
कंधों में सवार होकर जाती हुई लड़की
पल-पल मृदु मुस्काती हुई लड़की
जाल फेंक मछली फंसती हुई लड़की
पाँओ में महावर लगाती हुई लड़की
कभी भाव कभी पाव खाती हुई लड़की
पालने में झूला झूल आती हुई लड़की
कंधों में सवार होकर जाती हुई लड़की
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