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जिंदगी की ओर

कुसुम अग्रवाल


मास्टर जी को रिटायर हुए 2 वर्ष बीत चुके थे पर जैसा जोश रिटायरमेंट के समय था अब वह नहीं रहा क्योंकि कोई लक्ष्य ही नहीं रहा जीवन का। वही रोज की घिसी पिटी दिनचर्या। दोनों लड़के विदेश में सेटल हो गए थे। अब वे और उनकी पत्नी ही घर पर थे। मास्टर जी रोजाना सुबह टहलने जाया करते थे। आज मास्टरजी जैसे ही घूमने जाने को हुए पीछे से उनकी पत्नी की आवाज आई। अरे! आज बादल हो रहे हैं कहां जा रहे हो?
मास्टर जी बोले अभी ज्यादा नहीं है थोड़ी देर में घूम आऊंगा। लेकिन छाता लेते जाना और बारिश आ जाए तो रास्ते में कहीं रुक जाना मास्टर जी की पत्नी रुकमणी बोली। ठीक है मास्टर जी कहते हुए चल पड़े।
चलते-चलते थोड़ी दूर ही पहुंचे थे कि बारिश होने लगी तब मास्टर जी ने देखा कि सामने एक नई टी स्टॉल खुली है जिस पर एक छोटा सा लड़का चाय बना रहा था। बारिश के कारण मास्टर जी ने उस टी स्टॉल पर रुकना ही उचित समझा। उस स्टॉल पर चाय बनाने वाले बच्चे की लंबाई लगभग तीन साढे तीन फुट थी। वह दुबला पतला फटी सी बनियान पहने और कमर के नीचे तौलिया बांधे हुआ था। मास्टर जी ने बच्चे से उसका नाम पूछा तो उसने बताया मां बाप ने बड़े प्यार से मेरा नाम मनन रखा था लेकिन अब लोग मुझे छोटू नाम से बुलाते हैं।
मास्टर जी बोले तुम्हारे माता-पिता कहां रहते हैं छोटू। छोटू चुप रह गया और चाय बनाने लगा। मास्टर जी ने फिर पूछा तुमने तुम्हारे मां बाप के बारे में नहीं बताया। छोटू बोला क्या बताऊं साहब कुछ बताने को बचा ही नहीं। कोरोना ने पूरे परिवार को लील डाला वरना मेरा भी हंसता खेलता परिवार था। मेरे माता-पिता मजदूरी करते थे। कोरोना के चलते माता-पिता की मौत हो गई। अब मेरे परिवार में मैं और मेरी छोटी बहन ही रह गए हैं। इसलिए परिवार की जिम्मेदारी अब मुझ पर आ गई है। मास्टर जी बच्चे को देखने लगे। इतनी छोटी उम्र में इतनी बड़ी जिम्मेदारी, मास्टर जी ने आगे पूछा तुम्हारी छोटी बहन कहां है?
छोटू बोला वह 8 बरस की है और दूसरे के घरों में झाड़ू पोछा करने जाती है। उसके बाद यही चाय की दुकान पर आ जाती है मेरे पास।
मास्टर जी बच्चे को देखते रह गए। उनका मन भर आया पर बालक की आंखों में एक तेज था। जो मास्टर जी को उसकी ओर आकर्षित कर रहा था। मास्टरजी ने पूछा क्या तुम पहले पढ़ने जाते थे?
वह बोला जी बिल्कुल जाता था पर कोरोना के चलते.............. पर मैं ईश्वर को धन्यवाद देता हूं कि मेरी बहन के लिए मैं रह गया। वरना ना जाने क्या होता। मास्टर जी की आंखों में बालक के लिए आंसू छलक आए। छोटू चाय छानकर सब को पकड़ाने लगा। बारिश भी रुक चुकी थी, लेकिन मास्टर जी का मन वहां से जाने को नहीं हुआ।
मास्टर जी ने बच्चे से पूछा क्या अब भी तुम्हारा मन पढ़ने को करता है? बिल्कुल करता है लेकिन मैंने अपनी इच्छा को मन के कोने में दबा दिया क्योंकि अब ऐसा होना संभव नहीं है। मास्टर जी एकटक बालक को देखे जा रहे थे। उन्होंने बोला यदि तुम चाहो तो मैं तुम्हें पढ़ा सकता हूं और तुम्हारी बहन को भी पढ़ा दूंगा, तो क्या तुम पढ़ना पसंद करोगे?
छोटू की आंखों से आंसू बहने लगे। उसने मास्टर जी के पांव छू लिए वह बोला। 1 वर्ष बीत गया, मेरे मां-बाप को गए लेकिन आज तक किसी नाते रिश्तेदार तक ने प्यार से मुझसे बात नहीं की। आज आपकी इतनी स्नेह भरी बातें सुनकर मेरा मन भर आया।
मास्टर जी ने उसे गले लगा लिया और अगले दिन अपने घर का पता देकर रोज शाम को छोटू और उसकी बहन को आने को कहा। छोटू बहुत ही खुश हो गया और मास्टर जी को दिल से धन्यवाद देने लगा।
छोटू ने कहा मैं और मेरी बहन आपके पास पढ़ने जरूर आएंगे लेकिन आपको भी मेरी दुकान पर रोज आना पड़ेगा और मुझसे मेरे हाथ की बनी चाय पीनी पड़ेगी। साथ ही कभी पैसे देने की बात मत कीजिएगा।
मास्टर जी खुशी-खुशी मान गए और बालक के संघर्ष और स्वाभिमान की मन ही मन सराहना करते हुए अपने घर की ओर निकल पड़े। मास्टर जी आज बहुत प्रसन्न थे क्योंकि पूरे 2 वर्ष बाद आज उन्हें एक नया लक्ष्य जो मिल गया था।

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