डॉ. कृष्णा कांत श्रीवास्तव
सेठ बद्री प्रसाद जी अपने दोनो बेटों अनिल व सुनील को प्रतिदिन दो रुपये जेब खर्च का देते थे। उस समय साठ सत्तर के दशक में दो रुपये की अच्छी खासी कीमत होती थी। ऐसे समझ सकते है कि दूध उस समय एक रुपये लीटर, चाय 40-50 पैसे कप उपलब्ध हो जाता था। ढाबे में पूरे माह का दोनों समय का खाना 70-80 रुपये में खाया जा सकता था। ऐसे समय मे दो रुपये जेब खर्च मिलने का मतलब था कि अनिल व सुनील अपने को पूरा रईस ही समझते थे।
बच्चों में परिवार के प्रति एक जिम्मेदारी तथा बचत की आदत भी बने, बद्री प्रसाद जी ने एक नियम सा बना दिया कि माह के अंत में एक बार अनिल परिवार में सबको आइसक्रीम अपने जेब खर्च की बचत से खिलायेगा तो दूसरे माह सुनील। तीन चार माह तो यह क्रम चला, पर उसके बाद जब भी अनिल का नंबर आइसक्रीम खिलाने का आता तो वह कोई न कोई बहाना बना देता। कभी कह देता कि वह पैसे घर भूल आया है तो कभी अपनी तबियत खराब बताकर कतरा जाता। या बिल्कुल मजबूरी में अनिल को आइसक्रीम खिलानी ही पड़ जाती तो वह खुद नही खाता। इससे परिवार में लगने लगा कि अनिल की प्रवृत्ति कंजूसी व लालची निकल आयी है। पर इस बात को किसी ने भी अनिल के सामने उजागर नही किया।
परन्तु बद्री प्रसाद जी को यह बात कचोट रही थी कि घर में कोई कमी नही फिर उनका बेटा लोभ लालच का शिकार क्यूँ? वो विचार करने लगे कि अनिल की यह वृति कैसे छुड़वाई जाये? फिर बद्री प्रसाद जी के मन में विचार आया कि अनिल इन पैसों का आखिर करता क्या है?
उन्होंने अनिल पर निगाह रखनी प्रारम्भ कर दी। उन्होंने पाया कि आजकल अनिल एक साधारण से लड़के के साथ अधिक रहने लगा है। जानकारी प्राप्त करने पर ज्ञात हुआ कि वह लड़का महिपाल एक नितांत गरीब घर का है। कौतूहलवश बद्री प्रसाद जी ने महिपाल के परिवार की विस्तृत जानकारी हासिल की तो पता चला कि उसका परिवार महिपाल की पढ़ाई का खर्च उठाने में असमर्थ है, पर उसकी कक्षा का कोई लड़का उसकी सहायता कर रहा है, जिस कारण महिपाल अपनी पढ़ाई कर पा रहा है।
बद्रीनाथ जी समझ गये कि वह और कोई नही उनका बेटा अनिल ही है जो अपने जेब खर्च से अपने गरीब मित्र महिपाल की सहायता कर रहा है। आज उन्हें अपने बेटे अनिल पर गर्व की अनुभूति हो रही थी। बद्रीनाथ जी सोच रहे थे उनका बेटा भले ही उम्र में अभी बच्चा ही हो पर संस्कार में वो बहुत ऊंचा उठ गया है।
अपने छलके आँसुओ को संभालते बद्रीनाथ जी महिपाल के स्कूल की पूरे वर्ष की फीस जमा कराके घर लौटते हुए अपने बेटे अनिल के प्रति गर्व से फूले नही समा रहे थे।
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