डॉ. कृष्णा कांत श्रीवास्तव
एक जंगल में बंदरों का बड़ा झुंड था। उस जंगल में खाने पीने की कोई कमी नहीं थी इसलिए सारे बंदर बहुत आराम और संतुष्ट होकर रहते थे।
एक दिन एक वैज्ञानिक अपनी बेटी के साथ उसी जंगल में शोध करने के लिए आया। अपना तम्बू लगाने के बाद वैज्ञानिक पौधों के नमूने इकट्ठा करने के लिए बाहर निकला।
लेकिन लड़की तम्बू की सुंदरता को देखकर रुक गयी। उसने पहले ज़मीन पर एक पुराना कालीन रखा और उस पर एक बिस्तर बिछाया। तम्बू के बीच लालटेन लटकाई और उसके नीचे एक छोटी मेज़ और सफेद सेब से भरा कटोरा रख दिया।
वह सेब देखने में बहुत ताज़ा, खुबसूरत और बड़े लग रहे थे।
सारे बन्दर लालच से उस कृत्रिम सेब को पेड़ों पर बैठे देख रहे थे।
तम्बू के सामने जगह साफ करने के लिए लड़की बाहर निकली, तब एक बंदर ने तेज़ी से झपटा मारा और एक कृत्रिम सेब उठा लिया। तभी उसी समय लड़की की नज़र भी उस पर पड़ गयी, लड़की ने तुरंत बंदूक उठाकर निशाना लगाया और गोली दाग दिया, लेकिन सभी बंदर इतनी देर में वहां से भाग गए।
काफी देर के बाद सारे बन्दर रुक गए जब उन्होंने देखा कि अब उनका कोई पीछा नहीं कर रहा है।
चोर बंदर ने हाथ उठाकर सबको सेब दिखाया। सभी बंदर हैरत से और ललचाई नज़र से उस बंदर को देखने लगे कि उसे कितना अच्छा सेब मिला है। सभी इस कृत्रिम सेब को हाथ लगाने की कोशिश करने लगे।
चोर बंदर ने सबको फटकार कर ये कृत्रिम सेब लिया और एक पेड़ की सबसे ऊंची शाख पर जाकर सेब खाने के लिए मुंह में दबा दिया।
कृत्रिम सेब बेहद कड़े प्लास्टिक से बना था। बंदर के दांतों में चबाने से दर्द शुरू हो गया। बंदर ने दो तीन बार और कोशिश की लेकिन हर बार दर्द होने लगा।
उस दिन चोर बंदर ने पेड़ की उसी शाखा पर भूखा रहकर गुज़ारा। अगले दिन वह पेड़ से नीचे आया।
सभी बंदरों ने उसे सम्मान से देखा, क्योंकि उसके हाथ में वो कृत्रिम सेब मौजूद था। दूसरे बंदरों से मिलने वाला सम्मान को देखकर चोर बंदर ने सेब पर पकड़ मज़बूत बना ली।
अब दूसरे बंदर फलों की तलाश में निकले और एक पेड़ से दूसरे पेड़ तक कूद कर फल तोड़ तोड़कर खाने लगे।
चोर बंदर के एक हाथ में कृत्रिम सेब था, इसलिए वो पेड़ पर नहीं चढ़ सका। वो सेब को हाथ से नहीं छोड़ना चाहता था इसलिए वह दिन भर भूखा प्यासा रहा और यही सिलसिला आगे कुछ दिन तक चलता रहा।
हालांकि दूसरे बंदर उसके हाथ में कृत्रिम सेब देखकर उसका सम्मान करते लेकिन उसे खाने के लिए कुछ भी नहीं देते।
चोर बंदर भूख से इतना निढाल हो गया था कि अब उसे अपना आखिरी वक़्त नज़र आने लगा। उसने एक बार फिर उस सेब को खाने की कोशिश की लेकिन इस बार नतीजा अलग नहीं था। उसके दांत इस बार भी दर्द कर रहे थे।
चोर बंदर को आँखों के सामने पेड़ों से लटका हुआ फल दिखाई दे रहा था। लेकिन इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह इन पेड़ों पर चढ़ सके। धीरे-धीरे उसकी आँखें हमेशा के लिए बंद हो गई। जैसे ही उसकी जान निकली कृत्रिम सेब पर पकड़ ढीली होने से वो उसके हाथ से बाहर लुढ़क गया।
शाम को बाकी बंदर, मरे बंदर के पास आए, कुछ आंसू बहाये और उसके शरीर को पत्तों से ढक दिया। जब वो ये कर रहे थे तब एक और बंदर को एक कृत्रिम सेब मिला और उसने अपना हाथ ऊँचा कर के सभी बंदरो को सेब दिखाना शुरू कर दिया।
यह दुनिया भी इस प्लास्टिक के सेब की तरह है, इससे कुछ नहीं मिलता। जबकी इसे देखने वाले प्रेरित होते रहते हैं और दुनिया को हाथ में रखने का दावेदार आख़िर में ख़ाली हाथ इस दुनिया से चला जाता है। कोई और आकर उसकी दुनिया पर क़ब्ज़ा कर लेता है।
सार - "झूठा दिखावा इंसान को पहले थका देता है और फिर मार डालता है।"
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