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ठिठकी हुई धूप

वह बारजे पर आई तो उसकी नजर छज्जे पर ठिठक कर बैठे धूप के टुकड़े पर पड़ी। वह किसी भी पल फिसल जाने को आतुर था। ठीक उसके जीवन की खुशियों की तरह । वह लाख खुशियों को पकड़ना चाहती, पर वह तो बस रेत की तरह फिसल जाती और वह रीते घड़े सी बेजान रह जाती । जाने किस मिट्टी की बनी थी वह , कि बार-बार की ठोकर खाकर भी उसे तोड़ नहीं पाती थी। वह कमर कसकर फिर उठ खड़ी होती। इस आस के साथ की घड़ा फिर भरेगा, खुशियां फिर आएंगी, जीवन फिर मुसकुराएगा।
साधारण परिवार में जन्मी थी चांदनी । उसके जन्म पर खुशियां नहीं मनाई गई थीं.... बल्कि मां को खूब कोसा गया था। आखिर तीसरी बेटी पैदा करने का अपराध जो किया था उन्होंने। परंतु ममता की मारी राधा अपनी लाडली को कलेजे से लगाए सब की गाली सुनती रहती। वह सबकी आंखों में खटकती थी। वह तो भला हो सरकार का, जो लड़कियों की शिक्षा को निशुल्क कर दिया। उसी के सहारे और मां की जिद के चलते वह बारहवीं अच्छे अंको से पास हो गई। कई वर्षों बाद उस साल, छुट्टियों में बुआ जी घर आई थीं। और घर के कामों में दक्ष चांदनी के हाथों पर बुआ जी ऐसा मोहित हुईं कि उसे आगे की पढ़ाई कराने के बहाने अपने साथ लखनऊ शहर लेकर चली आईं। जब बुआ के घर की चक्की में वह पिसने लगी। तब बुआ के मन का राज़ समझ पाई। फिर उसने भी जिद पकड़ ली कि अगर एडमिशन नहीं कराएंगी तो वह वापस मां के पास गांव चली जाएगी। मन मार कर बुआ ने उसका नाम लिखवा दिया।
चांदनी के तो पंख ही लग गए। वह मुंह अंधेरे उठती घर का सारा काम, साफ सफाई, झाड़ू पोछा, बर्तन, नाश्ता बनाना, खाना बनाना सब करके फिर खुद नहा धोकर तैयार होकर पढ़ने चली जाती। बुआ जी और उनकी दोनों बेटियां खुश थीं। साथ ही खुश थी चांदनी भी।
सरलता से बहते उसके जीवन में अंगद कब और कैसे घुस आया वह जान ही नहीं पाई। बुआ जी के जेठ का लाडला बेटा था अंगद। घर में उसका बड़ा मान था। जाने कब वह चांदनी के भोले सौंदर्य पर रीझ गया। उस दिन बुआ जी की बड़ी बेटी पल्लवी का जन्मदिन था। अंगद अपनी मां के साथ आया हुआ था। शाम ढले जब केक काटने का समय हुआ तो जाने कैसे अंगद की मां को चांदनी का ख्याल हो आया। वह अचानक बोलीं, “अरे चांदनी कहां है?”
अंगद तीखे स्वर में बोला,”कहां क्या? सुबह से रसोई में ही तो है। “
“उसे बड़ी देर से देखा नहीं।“ वह पुनः बोलीं।
“अरे जीजी, वह बहुत अच्छा खाना बनाती है। उसी ने कहा, कि आज की दावत का पूरा खाना हम बना देंगे। दोनों दीदी को पार्लर भेज दीजिए। तैयार होकर आ जाएंगी …. इसीलिए….. “ बुआ जी जल्दी से बोलीं।
“अच्छा, पूरा खाना चांदनी ही बना रही है?” जेठानी ने आश्चर्य से पूछा।
“हां जीजी, जब से आई है इसके हाथ का स्वाद सबको ऐसा लग गया है कि किसी और का बनाया खाना अब हम सबको पसंद ही नहीं आता। और तो और खुद चांदनी को भी खाना बनाना बहुत अच्छा लगता है।“ बुआ जी ने बताया।
ठीक उसी समय अपने लंबे बालों को जूड़े की तरह लपेटते हुए चांदनी रसोईघर के बाहर आई।
“अरे बिटिया, इधर तो आ।” ताई जी ने स्नेह से पुकारा।
“जी , ताई जी।” कहती हुई पसीने से नहाई चांदनी आकर खड़ी हो गई।
“अरे लाडो, तू तो पूरी तरह से पसीना-पसीना हो गई है। जा, जाकर नहा ले और हां तू भी अच्छे से तैयार हो जा। वह दोनों तो सज धज कर आएंगी। तू भी किसी से कम थोड़े ही ना है। जा, जा कर तैयार हो जा।” जाने क्यों उन्हें आज चांदनी पर कुछ ज्यादा ही प्यार आ रहा था।
“हां-हां चांदनी, तू भी जल्दी से तैयार हो जा। वह नया वाला गुलाबी सूट पहन लेना।“ बुआ जी झट से बोली। शायद जेठानी को बताना चाहती थी कि नया सूट चांदनी को भी दिलाया गया है। पर सच तो यह था, कि वह सूट पल्लवी दीदी के लिए आया था, परंतु उन्हें पसंद नहीं आया और रागिनी दीदी उसमें फिट नहीं हो सकती थीं। तब मजबूरन वह सूट चांदनी को देना पड़ा था।
जैसे ही चांदनी चार कदम आगे गई कि बुआ जी की आवाज से ठिठक गई ।
"रसोई का काम सब निपट गया है न चांदनी?"
“ जी बुआ जी, सब हो गया है बस पूड़ी बनाना बाकी है। वह उसी समय गरम गरम निकाल देंगे।“ चांदनी पलट कर बोली।
नहाकर चांदनी कपड़े फैलाने छत पर चली आई थी। कपड़े फैलाकर वह अपने धुले हुए बाल तौलिया से झटक कर सुखाने लगी।
“ तुम्हारे बाल बहुत सुंदर है चांदनी “
हड़बड़ा कर चांदनी ने नजरें उठाई सामने अंगद खड़ा था। गठीली कद काठी वाला अंगद अपने घुंघराले काले बालों पर हाथ फेरता, खड़ा उसे एकटक देख रहा था।
“आ…… आ …. आप?”
“ हां चांदनी, मैं बहुत समय से कहना चाहता था। पर मौका नहीं मिल रहा था। आज जब मां भी तुम पर मोहित हो गईं, तो लगा अब मुझे अपने दिल की बात तुम्हें बता ही देनी चाहिए ।” अंगद बहुत ही ठहरी हुई आवाज में बोल रहा था।
“ मैं…… मैं कुछ समझी नहीं।“ चांदनी सहमी सी बोली।
“चांदनी, तुम्हें डरने की कोई जरूरत नहीं है। बस थोड़े दिनों की बात है। मेरी नौकरी लग जाने दो। मैं तुम्हारे सारे कष्ट दूर कर दूंगा। मैं बहुत समय से तुम से बहुत प्यार करता हूं ।“
“आ…… आप……. “ चांदनी कुछ बोल नहीं पाई।
अंगद आगे बढ़ा और उसे अपने आलिंगन में बांधकर उसके माथे पर एक गहरा चुंबन अंकित कर दिया। चांदनी बुरी तरह घबरा गई।
“ चांदनी, तुम मेरा प्यार हो बस इतना याद रखना।“ बोलकर और उसे स्तब्ध खड़ा छोड़कर अंगद जल्दी से नीचे चला गया।
कुछ पल बाद जब चांदनी संभली। तब उसे अपने जीवन में घटे इस अनमोल पल का एहसास हुआ। और वह स्वयं से ही शर्मा गई । अपने कमरे में जाते हुए उसकी नजरें स्वयं ही झुक-झुक जा रही थीं। एक नए एहसास से भरी, शीशे के सामने खड़ी चांदनी, आज बड़े ही चाव से तैयार हो रही थी। लिपस्टिक के साथ-साथ आज उसने आंखों में काजल भी लगाया था । उसकी बड़ी बड़ी आंखें कजरारी बनकर और भी खूबसूरत लगने लगी थीं। मोतियों के काम वाले गुलाबी सूट में चांदनी परी सी लग रही थी। जब चांदनी बाहर आई सब उसे देखते ही रह गए। और अंगद के मुंह से बरबस ही निकल पड़ा, “ तुम तो गजब ही ढ़ा रही हो चांदनी ।“ परंतु बोलकर अंगद भी झेप गया।
“सच कह रहे हो बेटा, चांदनी की सादगी में जो सौंदर्य है वह कोई पार्लर नहीं दे सकता।“ ताई जी ने बेटे की बात का समर्थन करते हुए भतीजियों की ओर देखा।
सबके जाने के बाद पल्लवी गुस्से से बिफर पड़ी, “ ताई जी को तो हम लोगों को जली कटी सुनाने के बहाने चाहिए होते हैं। जाने किस बात का घमंड है उन्हें ।“
रागिनी ने जोड़ा, “ ताई जी तो ऐसे बात कर रही थी, जैसे उन्होंने चांदनी को अंगद दादा के लिए बहू चुन लिया हो। “
बुआ जी तैश में बोली, “ चांदनी, अपने मन में कोई भ्रम मत पाल लेना । मैं जानती हूं अपनी जेठानी को । दहेज के बहुत लोभी लोग हैं। भैया भाभी उतना दहेज कभी नहीं दे पाएंगे। इन लोगों के चक्कर में मत पड़ना। तेरी जिंदगी बर्बाद हो जाएगी समझी?”
“जी, जी बुआ जी “चांदनी सहमी सहमी सी बोली। छत वाली घटना अब वह किसी को कैसे बताए।
अब अंगद जल्दी-जल्दी अपनी चाची के घर आने लगा था। बुआ जी की अनुभवी आंखें सब देख रही थी। अतः बुआ जी हर पल उन दोनों के बीच उपस्थित रहतीं । अंगद बस चाय या पानी लेते उसकी अंगुली भर छू लेता और दोनों सिहर उठते । शब्दों से तो नहीं, पर दोनों की आंखें एक दूसरे के प्यार को, एक दूसरे की आंखों में पढ़ती रहतीं। फिर एक दिन जैसे ही चांदनी कॉलेज पहुंची, गेट पर अंगद को देखकर ठिठक गई।
“ आप यहां?”
“आओ सामने चाय पीते हैं। “ कहता हुआ अंगद उसे रेस्त्रां में ले आया।
अंगद उसके ठीक सामने बैठा था और उसे एकटक निहार रहा था। वह घबराकर नीचे देखने लगी। तभी अंगद ने अपना हाथ मेज पर रखें उसके हाथ के ऊपर रख दिया। दोनों की नजरें मिली और दोनों मुसकुरा दिए। अब चांदनी का डर थोड़ा कम हो गया था।
“ चांदनी, मुझ पर भरोसा रखना। मैं तुम्हें कभी भी धोखा नहीं दूंगा ।“ अंगद बोला
“अंगद, मेरे माता पिता किसान हैं। गरीब हैं। बुआ जी के घर रहकर पढ़ाई करी है। कुछ भी ऐसा नहीं जो आपसे छुपा हो। फिर भी बताना चाहती हूं कि मेरे माता पिता दहेज में कुछ भी नहीं दे पाएंगे। सिवाय अपनी बिटिया के। ”
“ चांदनी, तुमने तो हम लोगों को बहुत घटिया समझ लिया। मुझे तुमसे प्यार है। तुम्हारे पिताजी के पैसों से नहीं। तुम्हें अगर भरोसा नहीं है, तो चलो हम अभी मंदिर में शादी कर लेते हैं।" अंगद के हाथ का दबाव उसकी हथेली पर बढ़ गया था।
“ मुझे माफ कर दीजिए अंगद, आपका दिल नहीं दुखाना चाहती थी। परंतु अपनी वास्तविक स्थिति बताना जरूर चाहती थी। मुझे आप पर भरोसा है। तभी तो आपके साथ यहां आई हूं। “ कहते हुए चांदनी ने अपना दूसरा हाथ अंगद के हाथ के ऊपर रख दिया। अंगद खिल उठा।
अब इस तरह मिलना उनकी रोज की दिनचर्या बन गया। अंगद ने उसे कई बार गोमती किनारे चलने को कहा, कभी पार्क में चलने को कहा, परंतु वह हमेशा रेस्तरां में ही मिलती रही। छत का एकांत उसे सदा याद रहा। अतः वह एकांत मैं मिलने से परहेज करती रही। धीरे-धीरे 6 महीने निकल गए और चांदनी का कॉलेज भी पूरा हो गया। साथ ही साथ अंगद की नौकरी लगने की सुखद खबर भी आई। ताई जी ढे़र सारी मिठाई लेकर आई। बेटा पुलिस में इंस्पेक्टर जो बन गया था। सब खुशी से फूले नहीं समा रहे थे। अंगद ट्रेनिंग पर चला गया। जाते समय मिलने भी नहीं आया। शायद समय ना मिला हो، पर चांदनी बहुत दुखी हुई। परन्तु कर भी क्या सकती थी। अतः चांदनी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी में लग गई । साथ ही एम ए में प्रवेश भी ले लिया । अंगद की बारह महीने की ट्रेनिंग थी।
अब घर में हर पल अंगद के लिए आने वाले रिश्तों की बात होती रहती। एक से एक सुंदर लड़कियां साथ में लाखों का दहेज। चांदनी सुनती और मन ही मन घबराती। ताई जी अब कम ही आती थीं। फूफा जी ने अपना पुराना मोबाइल चांदनी को दे दिया था । एक दिन हिम्मत कर चांदनी ने अंगद को फोन किया। अंगद ने चाचा जी का फोन समझ कर फोन तो उठा लिया पर चांदनी की आवाज सुनकर चौक गया और जल्दी से बोला, “ चांदनी, यहां बहुत व्यस्त हूं । लौटकर मिलता हूं । यहां अब फोन मत करना ।“ और उसका जवाब सुने बिना फोन काट दिया।
अपने कमरे में जाकर चांदनी फूट फूट कर रोई। जब आंसुओं संग सारा दर्द बह गया वह उठी और अपनी पुस्तकों के पास जाकर बोली, “ मैं पढ़ने आई थी यहां। अपने अम्मा-बाबूजी से दूर पर थोड़े समय के लिए भटक गई थी। अब मेरी आंख खुल गई है। मैं अंगद से बड़ा कंपटीशन पास करूंगी। तुम सब मेरा साथ देना। “
उसी पल से चांदनी ने घर के काम और पढ़ाई के बीच खुद को भुला दिया। परीक्षा का दिन भी आया और वह परीक्षा दे भी आई। उसके सभी पेपर अच्छे हुए थे। सलेक्शन हुआ फिर इंटरव्यू भी हो गया। प्रतियोगी परीक्षा तो प्रतियोगी परीक्षा ही है। इसलिए इसकी चर्चा किसी से नहीं की गई। वैसे भी उसकी खुशी में कौन खुश हो रहा था!!!
एक दिन अचानक ताई जी ढेर सारी मिठाई लेकर फिर आ गईं। खुशी उनके चेहरे पर चिपकी हुई थी। बुआ जी ने इंस्पेक्टर की मां का गर्मजोशी से स्वागत करा। दोनों भतीजी भी दौड़ी आईं।
“बधाई हो देवरानी जी, तुम्हारी बहू पसंद कर ली है। मुंह मीठा करो। “ चहक कर ताई जी बोलीं।
“ अरे आपको भी बधाई जीजी। इस खबर की तो हम बहुत दिनों से प्रतीक्षा कर रहे थे। घर की बड़ी बहू आने वाली है। हमारे लायक काम बताइएगा ।“ गले मिलकर बुआ जी ने खुशी जताई।
चांदनी को इस खबर का अंदाजा तो था। फिर भी जाने क्यों उसे लगा जैसे उसके पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई है। उसने कसकर कुर्सी को पकड़ लिया और धीरे से बोली, “बधाई ताई जी “ और तेजी से रसोई की ओर बढ़ गई।
अगले दिन बुआ जी अपनी दोनों बेटियों के साथ ताई जी की खरीदारी में मदद कराने चली गई। चांदनी खाना बना कर फूफा जी के लिए मेज पर लगा रही थी। तभी घंटी बजी दरवाजा खोला तो सामने अंगद खड़ा था। पहले से भी ज्यादा हैंडसम लग रहा था।
“ कैसी हो?”
“ बधाई अंगद !”
“ देखो चांदनी, तुमसे जरूरी बात करने आया हूं। मुझे मालूम है तुम इस समय अकेली हो ।“ बैठता हुआ अंगद बोला।
“ गलत अंगद, फूफा जी घर पर हैं बस खाने के लिए आने वाले हैं। कमरे में हैं।” निश्चिंत सी चांदनी बोली।
“ उनके बाहर आने से पहले हम जल्दी से बात कर लेते हैं। “ चाचा के कमरे की ओर देखकर अंगद बोला।
“ बोलो क्या कहना चाहते हो? अगले महीने तुम्हारी शादी है। ” चांदनी ने याद दिलाते हुए पूछा।
“ देखो, मैं तुमसे शादी तो नहीं कर सकता। चांदनी, पर मैंने तुमसे वादा किया था कि तुम्हें कोई कष्ट नहीं होने दूंगा। अभावों से तुम्हें दूर रखूंगा। तो वह वादा निभाने के लिए मैं आज भी तैयार हूं। मैं तुम्हारे लिए एक मकान खरीद लूंगा। उसमें तुम्हें रखूंगा और पत्नी का हर सुख दूंगा। तुम्हें कोई शिकायत नहीं होगी बोलो मंजूर है?"
सुनकर चांदनी जड़ हो गई । इस बेशर्मी के लिए क्या बोले, किन शब्दों में बोले, …....................
“ क्या हुआ बोलो ? इतना सोचने की क्या बात है?” अंगद ने पूछा।
“ अंगद, तुमने मुझे और अपने प्यार को इतनी गंदी गाली दी है कि अगर यह घर मेरा होता तो अभी तुम्हें धक्के मार कर निकाल देती। जानते हो इस रिश्ते को रखैल कहते हैं। तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझसे ऐसी घटिया बात करने की? आइंदा कभी मुझे अपना चेहरा मत दिखाना अंगद। "
अंगद तैश में आ गया, “जानती हो तुम एक पुलिस इंस्पेक्टर से बात कर रही हो।“
“ नहीं, मैं एक घटिया इंसान से बात कर रही हूं। जिसकी शक्ल भी अब मैं कभी नहीं देखना चाहती ।“ कहती हुई चांदनी फूफा जी को बुलाने चली गई।
अंगद की शादी हो गई थी। चांदनी ने शादी में जाने से साफ मना कर दिया था। चांदनी के अम्मा बाबूजी भी शादी में शामिल होने आए थे। बुआ जी के साथ वह सब लोग भी वही हैं। आज बहू भोज का बड़ा विशाल आयोजन किया गया है। कल सब वापस आ जाएंगे। चांदनी ने फैसला कर लिया है कि वह अम्मा बाबूजी के साथ गांव चली जाएगी। वहीं रहकर अगले साल की प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करेगी। इस निर्णय पर आकर चांदनी हल्का महसूस कर रही थी। तब सारा काम निपटा कर वह बाजे पर आई थी। तभी उसके मोबाइल की घंटी बज उठी।
“ हेलो”
“......................”
“ क्या!!!......... सच ?”
“............................” मोबाइल उसके हाथ में था और वह वहीं जमीन पर बैठ गई थी। उसकी आंखें गंगा यमुना बहा रही थीं।
फोन उसके छोटे भाई का था। जो शादी के घर से ही बोल रहा था। भाई के कहे शब्द शहद बनकर उसके कानों में गूंज रहे थे, “दीदी, आपका सलेक्शन आई.ए.एस. में हो गया है। हम सब तुरंत आपके पास आ रहे हैं।“
उसने छज्जे पर ठिठके धूप के टुकड़े की ओर देखा। जो अभी भी वहीं बैठा हुआ था। पर चांदनी को लगा यह धूप अब चांदनी बनकर उसके और उसके परिजनों के जीवन में फैल गई है।
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