रमाकांत शुक्ल
"उफ्फ...मोबाइल भी गया"
मैं मन ही मन बुदबुदाई। मूसलाधार बारिश में रोड पर घुटने तक पानी भर आया। मैं ऑफिस से आज इस कारण लेट भी हो गई। तीन सालों में ऐसा पहली बार हुआ है। पैदल ही सड़क पार करते समय फिसल गई और मोबाइल पानी में भीग कर खराब भी हो गया। ऑटो वाले कहीं दिख नहीं रहे हैं। दूसरे वाले रोड पर पानी कम लगता है। कुछ सोच उस तरफ बढ़ी। शायद उस रोड पर कोई ऑटो रिक्शा मिल जाए। एक तो अंधेरा और उसपर ये बारिश। डर भी लग रहा था। इस रोड को पार कर मैं दूसरी तरफ वाली रोड पर आई ही थी कि तभी चेहरे पर टार्च की रोशनी पड़ी। मैं किसी तरह हिम्मत कर के पास ही रोड किनारे एक शेड में पहुँची। रौशनी की दिशा से कुछ दो-तीन लोग आते दिखे। रात तो कोई ज्यादा नहीं पर इस छोटे शहर के हिसाब से ज्यादा ही है।
मां परेशान हो रही होगी। मैंने भगवान को मन ही मन पुकारा। कोई एक ऑटो भेज दें। पर दूर-दूर कोई रिक्शा नज़र नहीं आ रहा था। वे तीनों मेरी ही तरफ बढ़ते आ रहे थे। मेरा गला सूखता गया। अचानक से वे उसी शेड में आकर मेरे आस-पास घेर कर खड़े हो गए। अजीब नज़रों से देखते जा रहे थे। एक दूसरे से भद्दी बातें कर रहे थे और नशे में लग रहे थे। मैं आँख बंद कर भगवान को याद करने लग गई। पर्स में रखा नेलकटर को मैंने कस कर मुठी में पकड़ लिया। तभी दूर से आती एक स्कूटी वहां से गुजर रही थी। कुछ दूर आगे बढ़कर वापस जहां मैं थी वहीं रुकी। स्कूटी देख समझ आया किसी रेस्टुरेंट का डिलीवरी वाला है।
"मैडम! ऑटो या कोई रिक्शा वाला अब इस जगह नहीं रुकते, आपको आगे मोड़ पर मिलेंगे..आइये मैं आपको वहां तक छोड़ दूं।" तीनों उसे घूर रहे थे। मुझे और कुछ नहीं सूझा उस वक़्त। मैं जाकर स्कूटी के पीछे बैठ गई। डर अब भी लग रहा था। आगे मोड़ पर भी कोई ऑटो रिक्शा नहीं था। "आपको जाना कहा है?”
"जे ब्लॉक...सुभाष नगर...
उसने बिना कुछ बोले मुझे मेरे घर तक छोड़ दिया। इस भाई के लिए दिल से दुआएं निकल रही थीं। माँ घबराहट में मेरा बाहर ही इन्तजार कर रही थी। हमें छोड़ वो निकलने लगा। तो माँ ने जाते-जाते उससे पूछ लिया।
"तुम कौन हो बेटे?”
वो हेलमेट लगा ये कहता हुआ निकल गया। "मैं एक बेटी का बाप हूँ आँटी।”
अच्छाई की शुरुआत क्यों ना हम भी खुद से करें, अगर कभी कोई बहन बेटी या माँ सुनसान रास्ते पर दिख जाए तो उसे अवसर ना मानकर जिम्मेदारी समझ कर घर तक सुरक्षित छोङ आए।
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