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तमाचा

कृष्णकांत श्रीवास्तव

मेम साब कल मेरे बेटे का अन्नप्राशन है यदि आप मेरे कुटिया पर पैर रख देंगी तो झोपड़ पट्टी में मेरा सम्मान बढ़ जाएगा। काम की निरंतरता की मजबूरी और उत्सुकता वश नित्या ने हां हां आऊंगी ना लक्ष्मी कह दिया। नियत समय से विलंब नित्या लक्ष्मी के घर पहुंची तुरंत कुर्सी लाई गई नित्या का विशेष सम्मान किया जा रहा था बड़े ध्यान से नित्या वहां की गतिविधियां देख रही थी।
साफ-सुथरे घर में दरी पर पंक्तिबद्ध बैठ सब भोजन कर रहे थे भोजन करने के उपरांत सभी अपने-अपने थाली में पानी डालकर उसे धो धो कर पास में लगे पौधों में डाल रहे थे। उसके बाद ही थाली नीचे रखी जा रही थी। नित्या ने उत्सुकता वश लक्ष्मी से पूछा ऐसा करने का कोई रिवाज है क्या?
अरे नहीं मेम साब वो पानी की कमी हो रही है ना धरती का जल स्तर कम होता जा रहा है। तो हमारे गांव में पानी को बेकार नहीं बहाते लक्ष्मी के जवाब से नित्या को ऐसा लगा जैसे लक्ष्मी के जवाब ने उसके गालों पर एक जोरदार तमाचा जड़ दिया हो। उसे कुछ दिनों पहले की बातें याद आने लगी जब टंकी भर कर पानी गिर रहा था, तो लक्ष्मी ने सारे काम छोड़ दौड़कर मोटर का स्विच ऑफ किया था। तब नित्या ने कहा था, इतनी क्या आफत आ गयी थी जो बदहवास दौड़कर बटन बंद करने भागी। थोड़ा पानी ही तो गिर रहा था ना। कौन सा उसमें पैसा लग रहा था और लक्ष्मी द्वारा बात-बात पर नल बंद करने पर नित्या का गुस्सा होना, आज नित्या को लग रहा था। कागज की डिग्रियां तो है मेरे पास। बौद्धिक ज्ञान भी है, पर अमल करना शायद फितरत में नहीं। नित्या मन ही मन मुस्कुराई और अपने घर बुलाने और विचारों को धरातल पर क्रियान्वयन करने हेतु प्रोत्साहन करने के लिए लक्ष्मी का धन्यवाद किया।

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