हमें नहीं भाते जरा भी
लोग झूठे और मक्कार
यह गले लगा कर
पीठ पीछे करते हैं वार
ऐसे लोग खुद को बहुत
समझते हैं होशियार
ठगते रहते हैं सबको
बनकर उसके वफादार
इनके होते हैं मुख में राम
और रखते हैं बगल में छुरी
ऐसे लोगों का का क्या कहिए
इनकी तो होती ही है नियत बुरी
अपनी चिकनी चुपड़ी बातों से
सबको ठगते रहते हैं जनाब
ये सोचते हैं इनकी तरह
नहीं है कोई चालाक
एक भी मौका नहीं छोड़ते
यह करने को घात
इसे लगता है नहीं समझ पा रहा
है कोई भी इनकी चाल
मगर इन्हें नहीं पता यहां
सब बैठे हैं उस्ताद
बोलते नही है मगर,
देखते हैं तमाशा बैठकर कि
कौन कहां तक गिर सकता है यार।
******
Comments