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तराजू

लक्ष्मी कुमावत

"देखो वर्मा जी की बहू कितनी समझदार है। इसे कहते हैं एक आदर्श बहू। इसे कहते हैं माता-पिता के संस्कार। अपनी सास ननद की कितनी सेवा करती है। सारे घर का काम कितनी तेजी से करती है और एक मेरी बहू है जिससे कोई काम ठीक से नहीं होता।"
'हां, जॉब वाली बहू हैं देखो। और तुम्हारी बहू को देखो कुछ नहीं करती'
अम्मा जी और ननदरानी सुबह से ही ताने मारने में लगी हुई थी और आशा यह सोच रही थी कि आखिरकार मेरी सेवा में कहाँ कमी रह गई। हमेशा दूसरों की बहुओं का ही पलड़ा हमसे भारी क्यों होता है? आस-पड़ोस में शादी क्या होती है, अम्मा जी के तेवर ही बदल जाते हैं। दूसरों की बहू में आदर्श बहू नजर आने लग जाती है और खुद की बहुओं में हमेशा कमियां नजर आती है।
आशा अम्माजी की बड़ी बहू है। अम्मा जी कहने को तो पैसठ साल की है, लेकिन आस-पड़ोस के लोग उन्हें इसी नाम से पुकारते हैं। काफी पहले ही उनके पति इस दुनिया से सिधार चुके हैं। उनके दो बेटे हैं बड़ा बेटा रमेश और बहू आशा, छोटा बेटा सुरेश उसकी पत्नी अनीता और एक बेटी मधु हैं, जिसकी शादी हो चुकी है। लेकिन अम्मा जी की मेहरबानी से ससुराल से ज्यादा अपने पीहर में नजर आती है। दो प्यारे-प्यारे पोते हैं।
अम्मा जी को अपने बच्चे सर्वगुण संपन्न और बहुएँ कामचोर नजर आती हैं। उनकी इसी आदत के चलते अनीता तो अपने पति के साथ दूसरे शहर में रहती है। कभी-कभी किसी तीज त्यौहार पर आना होता है, तो इस कान से सुनकर उस कान से निकाल कर चली जाती है। लेकिन सास ननद की बातों को भुगतना तो आशा को पड़ता है।
आशा की शादी को सात साल हो चुके हैं लेकिन उसके बावजूद भी आदर्श बहू बनते बनते वह अपनी पहचान कहां खो गई, उसे खुद ही नहीं पता। शादी से पहले जॉब करती थी लेकिन शादी के बाद अम्मा जी ने दस बहाने करके जॉब छुड़वा दी कि बाद में ज्वाइन कर लेना। जो जॉब छोड़ी, आज तक दोबारा ज्वाइन नहीं कर पाई। घर के कामों से ही फुर्सत नहीं मिलती।
अम्मा जी के भाई के घर में शादी थी, तो वापस आने के बाद उनकी नई बहू के भी अम्मा जी ने खूब तारीफ के पुल बांधे।
"देखो, जॉब करने वाली बहू है। घर और जॉब दोनों संभालती है और एक हमारी को देखो कुछ नहीं कर पाती। मेरे ही पल्ले ऐसी बहुए क्यों पड़ी"
ननद भी क्या कम थी। उसने भी आग में घी डालने का काम किया।
'अरे मां तू तो रहने दे। जब बैठे-बैठे सब कुछ खाने को मिल रहा है तो कोई क्यों काम करें।
एक बार तो मन में आया कि जवाब दे दो कि आप भी पीहर में क्यों पड़े हो अपने ससुराल में जाकर काम क्यों नहीं करते? तो पता चले कि कौन कामचोर है? पता नहीं दो दिन के अंदर नई बहू ऐसा क्या काम कर देती है जो उनकी सेवा चाकरी दिख जाती है। पर फिर ये सोच कर चुप रह गई कि चिकने घड़े पर असर ही कितना होता है।
पर हैरानी के बात ये थी कि रमेश भी वहीं बैठा था लेकिन कुछ बोल नहीं रहा।
लेकिन जब अम्माजी और ननद का बड़बड़ाना यूं ही चालू रहा तो आशा ने सारे काम जहां के तहां छोड़े और जाकर अपने कमरे में लेट गई। यह देखकर अम्मा जी और ननद रानी दोनों एक बार तो चुप हुई।
उसके बाद रमेश को कहा, 'जाकर देख, महारानी को क्या हुआ है?'
आशा को अंदर सब कुछ सुनाई दे रहा था उसने वहीं से आवाज लगाकर कहा, 'अम्मा, कामचोर बहू काम नहीं करती। अपने आप कर लो अपने घर का काम।
'शर्म नहीं आती जो बात का बतंगड़ बना रही है। मैं तो इसलिए कहती हूं कि कम से कम दो बातें ढंग की सुनेगी तो तेरी ही जिंदगी सुधरेगी।'
'मैं कहाँ बतंगड़ बना रही हूं। मैं तो आप ही लोगों की बात पर अमल कर रही हूं। एक बात बताइए मुझे कहां से लाते हो आप आदर्श बहू का तराजू? और उस तराजू में हमेशा पलड़ा आपकी बहू का है क्यों हल्का होता है?'
'सात साल हो गए आदर्श बहू बनते-बनते, पर आज तक तो बन नहीं पाई। कुछ और ही बनकर रह गई मैं। मैंने आप लोगों के लिए जॉब तक छोड़ा, अपना सुकून छोड़ कर के आप लोगों को खुश करने में लगी रही, लेकिन कभी आदर्श बहू नहीं बन पाई। अब मुझे समझ में आ गया ये आदर्श वादर्श कुछ नहीं होता है। क्योंकि अगर आप आदर्श बहू होने का मतलब जानती ना, तो पहले अपनी बेटी को बनाती।'
यह सब सुनकर के अम्मा जी और ननदरानी दोनों चुपचाप रह गई। पर आज आशा ने एक बात जरूर सीखी कि कुछ लोगों की आदत होती है उनको आप का त्याग कभी नजर नहीं आता।
जिंदगी में अगर आप ऐसे लोगों को खुश करने के लिए अपना सब कुछ खोते हो तो आप बेवकूफी कर रहे हो।

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