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तर्पण

महेश कुमार केशरी

विवेक की मौत ठंड लगने की वजह से हो गयी थी। दाह -संस्कार से घर लौटकर आते हुए भी तन्मय ने एक बार वही सवाल अपने दादा गोपी बाबू के सामने दोहराया था। जिसे बार - बार गोपी बाबू टाल जाना चाह रहा थें।
वो कैसे जबाब देते? अभी तो वे, अपने इकलौते बेटे की मौत के सदमे से उबर भी नहीं पाये थें। अपने बेटे की लाश को कँधा देना हर बाप के लिये दुनिया का सबसे मुश्किल काम होता है। गोपी बाबू के कँठ भींगने लगते हैं। जब कोई विवेक की बात करता है।
करीब सप्ताह भर पहले भी घर की सफाई के वक्त उसने वही सवाल दुहराया था - "दादा, आप घर की सफाई क्यों करवा रहें हैं? उस दिन भी आप लोगों ने पापा के मरने के बाद पूरे घर को धुलवाया था। पंडित जी से पूछा , तो उन्होंने कहा कि मरने के बाद मरे हुए आदमी के कारण घर अपवित्र हो जाता है। इसलिये हम घर की साफ- सफाई करते हैं। उसे धोते हैं।"
पूरे घर में चारों तरफ पेंट की गंध फैली हुई थी।
तन्मय के कार चलाते हुए हाथ अचानक से तब रूक गये। जब उसने गोपी बाबू को अपना सिर मुँड़वाते हुए देखा। हैरत से ताकते हुए उसने अपने दादा गोपी बाबू से पूछा - "दादा आप सिर क्यों मुँड़वा रहें हैं?"
गोपी बाबू पीढ़े पर अधबैठे और झुके हुए ही बोले - "बेटा, ऐसे ही।"
"ऐसे ही कोई काम नहीं होता बताईये ना?" तन्मय जिद करते हुए बोला।
इस बार गोपी बाबू बेबस हो गये। फिर वे बोले - "बेटा जब हमारा कोई अपना गुजर जाता है। तो उसको हम अपनी सबसे प्यारी चीज अर्पित कर देते हैं। ये हमारा उस व्यक्ति के प्रति हमारी निष्ठा का सूचक होता है। हमारे यहाँ के संस्कार में इसे तर्पण कहते हैं। इस मामले में हमारे बाल हमारी सबसे प्यारी चीजों में से एक होते हैं। इसलिये हम अपने बाल मुँडवाकर अपने पूर्वजों से उऋण होते हैं।उनको सम्मान देते हैं। उनसे ये वादा भी करतें हैं , कि उसके मरने के बाद उसके बचे हुए कामों को हम पूरा करेंगें। बालों का मुँडन उस मृतक व्यक्ति के प्रति हमारा शोक भी होता है।"
तन्मय ने गोपी बाबू से फिर पूछा - "कैसा शोक दादा? एक तरफ हम छुआ- छूत और बीमारियों के डर से अपना बाल मुँडवा लेते हैं और, शोक का नाम देते हैं। ये हमारा आडंबर नहीं है तो क्या है? पापा के मरने के बाद हम अपने घर को धुलवा रहे हैं। उस पर पुताई करवा रहें हैं। जैसे, पापा मरने के बाद हमारे लिये अछूत हो गयें हों। जीते जी उन्होंने इस घर के लियेऔर हमारे लिये कितना कुछ किया। मैनें एक बार कहा। और वो मेरे लिये लैपटॉप ले आये। मम्मी के लिये स्कूटी खरीदी। ये घर बनाया। सारी ज़िंदगी मेहनत करते रहे। और मरने के बाद हमारे लिये अछूत हो गये। कितने मतलबी हैं, हम लोग! जहाँ उन्हे लिटाया गया उस जगह को पानी से धोया गया। घर के ऊपर चूना, वर्निश पेंट - पुचारा हो रहा है। आपके - हमारे बालों का तर्पण हो रहा है। छि: कितनी खराब है ये दुनिया!" तन्मय के चेहरे पर हिकारत के भाव उभर आये थें।
गोपी बाबू का कँठ अपने पोते की बातें सुनकर रूँधने लगा था। वो सच ही तो कह रहा था।
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