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तिनके का सहारा

मनीषा गुप्ता

सेठ रामलाल जी की पत्नी का एक लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया था, अब वह इतनी बड़ी कोठी में अकेले रहते थे। बेटा विदेश में नौकरी करता था इसलिए बेटे बहु कभी-कभी ही मिलने आते थे। पत्नी विमला जी के जाने के बाद अब सेठ रामलाल जी बिल्कुल अकेले पड़ गए थे वह धीरे-धीरे अवसाद का शिकार हो रहे थे उन्हें लग रहा था उनके जीवन में कुछ नहीं बचा।
बेटा बहू दिन में एक बार उनका समाचार जानने के लिए वीडियो कॉल अवश्य कर लेते थे। रामलाल जी के घर में मालती नाम की महिला साफ-सफाई का काम करती थी घर में कोई न होने कारण वह अपने एक वर्षीय बेटे को भी अपने साथ ही काम पर ले जाती थी।
रामलाल जी ने जब एक दिन उस बच्चे को देखा तो उनके चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कुराहट आ गई, अब रामलाल जी को रोज उसे बच्चे का इंतजार रहता और वह दोनों खूब मजे में खेलते थे।
रामलाल जी को उम्र की इस पड़ाव में वह बच्चा तिनके का सहारा लग रहा था, उस बच्चों के साथ खेल कर उन्हें ऐसा लगता जैसे वह अपने बेटे के बचपन को दोबारा जी रहे हो। वह बच्चा भी बा.. बा... की आवाज निकाल कर उनकी गोदी में बड़े प्यार से चढ़ जाता ।
सेठ रामलाल ने बच्चे के लालन-पालन की अच्छी व्यवस्था कर दी। उसे अच्छे स्कूल में भर्ती करवा दिया। बच्चे और रामलाल के बीच उभरते प्यार को देखकर मालती भी खुशी से अपना जीवन व्यतीत करने लगी। मालती अब दोहरे उत्साह के साथ सेठ रामलाल की सेवा करती।
सेठ रामलाल जी अब अपना जीवन दुबारा जीने लगे थे। बच्चे के प्यार और मालती की सेवा से खुश होकर सेठ ने दोनों के रहने की व्यवस्था भी अपनी कोठी में ही करवा दी। इस प्रकार उस बालक ने सेठ रामलाल के जीवन जीने में 'तिनके' का काम किया था।

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