top of page

तृप्त हो जाती

अशोक कुमार बाजपेई


बचपन में मां कहती थी
मघा के बरसे मां के परसे
धरती तृप्त हो जाती है
और पुत्र की भूख भी।
तब मां माघ नक्षत्र भादव मास में
बेटों को बिठाकर
खीर पूरी खिलाती थी
बेटों को सरपोट सरपोट खाते देख
मां बलि बलि जाती थी
तृप्त हो जाती थी।

तब कई दिन लगातार पानी बरसने से
ताल तलैया खेत सब भर जाते थे
नदी बलखाती उफनाती थी
तब धरती की प्यास बुझ जाती थी।

अब मघा में, न धरती तृप्त होती है ना भूख
क्योंकि मघा नक्षत्र में अब दिखती है धूप,
और आज की मम्मी ये जानती या नहीं जानती?
मघा के बरसे अम्मा के परसे का मतलब क्या होता।।

********

0 views0 comments

Recent Posts

See All

Comments


bottom of page