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दंड का अधिकारी

मुकेश ‘नादान’


नरेंद्र की प्रारंभिक शिक्षा घर पर रहते हुए ही एक निजी अध्यापक के दूबारा शुरू हुई। कुछ समय बाद उनका दाखिला मेट्रोपोलिटन इंस्टीट्यूट' में करवा दिया गया। इस स्कूल में आकर भी नरेंद्र की चंचलता में कोई कमी न आई। वह पहले की तरह ही उद्‌डं, निर्भीक और चंचल बना रहा। एक दिन एक अध्यापक कक्षा में पढ़ा रहे थे और नरेंद्र अपने कुछ साथियों के साथ गप्पें लड़ा रहा था। यह देखकर अध्यापक को क्रोध आ गया।
उन्होंने नरेंद्र की टोली में से एक-एक छात्र को खड़ा करके उसी विषय का प्रश्न पूछा, जो वे पढ़ा रहे थे। सभी छात्रों का ध्यान तो नरेंद्र की बातों की ओर था, फिर भला वे अध्यापक के प्रश्न का उत्तर कैसे दे पाते।
सबसे बाद में अध्यापक ने नरेंद्र को खड़ा करके उससे भी वही प्रश्न पूछा। नरेंद्र ने बिना किसी हिचकिचाहट के अध्यापक के प्रश्न का सही-सही उत्तर दे दिया। अध्यापक नरेंद्र का सही उत्तर पाकर बड़े प्रसन्‍न हुए। उन्होंने उसे बैठने का आदेश दिया।
अध्यापक द्वारा बैठने के लिए कहने पर भी नरेंद्र नीचे न बैठा तो अध्यापक बोले, “नरेंद्र, तुम्हारा उत्तर बिलकुल ठीक है। मैंने तुम्हें बैठने के लिए कहा है, खड़ा होकर दंड पाने के लिए नहीं।”
“सर, मेरा उत्तर ठीक है, यह तो मैं भी जानता हूँ, किंतु फिर भी मैं दंड पाने का अधिकारी हूँ।” नरेंद्र ने गंभीरता से कहा।
“क्यों? ” नरेंद्र की बात सुनकर अध्यापक ने हैरानी से पूछा।
“क्योंकि सर, गप्पें तो मैं ही सुना रहा था। शेष सब तो सुन ही रहे थे।”
नरेंद्र की बात सुनकर अध्यापक को बड़ा आश्चर्य हुआ। वे उसकी निर्भीकता और सत्यवादिता से बड़े प्रसन्‍न हुए। उसके पास आकर पीठ थपथपाते हुए बोले, “नरेंद्र, तुम्हारे बारे में मैं आज भविष्यवाणी करता हूँ कि तुम एक दिन निश्चय ही भारत के महान्‌ व्यक्ति बनोगे।"
अध्यापक की भविष्यवाणी का नरेंद्र पर यह प्रभाव पड़ा कि इसके बाद नरेंद्र ने स्कूल में शरारत करना छोड़ दिया।
अब उन्हें अपने उत्तरदायित्व का बोध हो गया था। वे इस बात के लिए गंभीर हो गए थे कि उसकी उद्‌डंताओं के कारण कोई यह न कह दे कि यही वह उद्‌डीं छात्र है, जिसके महान्‌ होने की अध्यापक ने भविष्यवाणी की है।

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