डॉ. कृष्णकांत श्रीवास्तव
"अम्मा ! मैं सुषमा और डॉली के साथ मॉल जा रहा हूँ। तुम घर का ख्याल रखना।
"ठीक है बेटा ! तुम जाओ। वैसे भी मेरे पैर में दर्द हो रहा है। मैं मॉल में नहीं जाना चाहती। तुम लोग जाओ।
"दादी, आपको भी मॉल चलना पड़ेगा" 10 साल की पोती डॉली बोली।
"तुम्हारी दादी मॉल में सीढियां नहीं चढ़ सकती। उन्हें स्वचालित सीढ़ियों पर चढ़ना भी नहीं आता। और क्योंकि वहाँ कोई मंदिर नहीं है, इसलिए दादी की मॉल जाने में कोई रूचि नहीं है। वो सिर्फ मंदिर जाने में रूचि रखती हैं।" बहू सुषमा अपनी बेटी डॉली से बोली।
इस बात से दादी सहमत हो गई, पर उनकी पोती डॉली जिद पर अड़ गई कि वो भी मॉल नहीं जाएगी अगर दादी नहीं चली। यद्यपि दादी कह चुकी थीं कि उनकी मॉल जाने में रूचि नहीं है, तथापि डॉली ने जिद नहीं छोड़ी।
अंत में 10 साल की पोती के सामने दादी की नहीं चली और वो भी साथ जाने को तैयार हो गई, जिस पर पोती डॉली बहुत खुश हो गई।
पिता ने सबको तैयार हों जाने को कहा। इससे पहले कि मम्मी पापा तैयार होते, सबसे बुजुर्ग दादी और सबसे छोटी पोती तैयार हो गए।
पोती दादी को बालकनी में ले गई और पोती ने एक फिट की दूरी से दो लकीर चॉक से बना दी।
पोती ने दादी से कहा कि ये एक गेम है और आपको एक पक्षी की एक्टिंग करनी है।
आपको एक पैर इन दो लाइन्स के बीच में रखना है और दूसरा पैर 3 इंच ऊपर उठाना है।
ये क्या है बेटी? दादी ने पूछा! ये बर्ड गेम है। मैं आपको सिखाती हूँ।
जब तक पापा कार लाये, तब तक दादी पोती ने काफी देर ये गेम खेला।
वो मॉल पहुँचे और जैसे ही वो स्वचालित सीढ़ियों के पास पहुँचे, मम्मी पापा परेशान हो गए कि दादी कैसे स्वचालित सीढ़ियों में चलेंगी।
पर मम्मी पापा आश्चर्यचकित रह गए जब उन्होंने देखा कि दादी आराम से स्वचालित सीढ़ियों में सीढ़ियां चढ़ रही थी और बल्कि पोती दादी स्वचालित सीढ़ियों में बार बार ऊपर नीचे जाकर खूब मज़े ले रहे थे। (दरअसल पोती ने दादी से कह दिया था कि यहाँ पर दादी को वही बर्ड गेम खेलना है। दादी ने अपना दाया पैर उठाना है और एक चलती हुई सीढी पर रखना है और फिर बाया पैर 3 इंच उठाकर चलती हुई अगली सीढ़ी पर रखना है।)
इस तरह दादी आसानी से स्वचालित सीढ़ियों पर चढ़ पा रही थी और दादी पोती खूब बार स्वचालित सीढ़ियों में ऊपर नीचे जाकर मज़े भी ले रही थीं।
उसके बाद वो पिक्चर हॉल गए जहाँ अंदर ठंडा था। तो पोती ने चेहरे पर एक शरारतपूर्ण मुस्कान के साथ अपने बैग से एक शाल निकालकर दादी को उढ़ा दिया जिसकी वो पहले से तैयारी के साथ आई थी।
चलचित्र के बाद सब रेस्टारेंट में खाना खाने गए। बेटे ने अपनी माँ (डॉली की दादी) से पूछा कि आपके लिए कौन सा व्यंजन मँगवाना है।
पर डॉली ने पापा के हाथ से व्यंजन सूची झपटकर जबरन अपनी दादी के हाथ में दे दिया कि आपको पढ़ना आता है, आप ही पढ़ कर निर्णय लीजिये कि क्या खाना मँगवाना है। दादी ने मुस्कुराते हुए व्यंजनों की सूची देखी और अंततः बता ही दिया कि उन्हें क्या मँगवाना है।
खाने के बाद दादी और पोती ने विडियो गेम खेले जो घर में वो पहले ही खेलते थे।
घर के लिए निकलने के पहले दादी वॉशरूम गई। तो उनकी अनुपस्थिति का फायदा उठा कर पापा ने बेटी से पूछ लिया कि तुम्हे दादी के बारे में इतना कैसे पता है जो बेटा होते हुए मुझे पता नहीं है?
तपाक से जवाब आया कि पापा, जब आप छोटे से थे तो आपको घर में नहीं छोड़ते थे और आपको घर से बाहर ले जाने के पहले आपकी माँ कितनी तैयारी करती थीं? दूध की बोतलें, डायपर, आपके कपड़े, खाने पीने का समान?
आप क्यों सोचते हैं कि आपकी माँ को सिर्फ मंदिर जाने में रुचि है। उनकी भी वही साधारण इच्छाएं होती हैं कि मॉल में जाएं, सबके साथ खूब मज़ा करे, खाएं पियें, पर बुजुर्गों को लगता है कि वो साथ जाकर आपके मज़े को किरकिरा करेंगे, इसलिए वो खुद पीछे हट जाते हैं और अपने दिल की बात ज़ुबा पर नहीं ला पाते।
पिता का मुँह खुला का खुला रह गया। हालांकि वो खुश थे कि उनकी 10 साल की बिटिया ने उन्हें कितना नया और सुंदर पाठ पढ़ाया।
आजकल के बुजुर्ग होते माता-पिता को भी आप नये उम्र के नए बने माता-पिता रूपी बच्चों से यही उम्मीद है। आप सभी एक परिवार हैं। तो परिवार के बुजुर्ग होते माता पिता को भी अपने सभी प्रयोजनों में शामिल करें। यकीन कीजिये, आपके साथ जा कर, आपके अनुसार घूम–फिर कर, अपने मन का खा कर उन्हें वाकई अच्छा लगेगा। बुजुर्ग हो रहे हैं, इसका कत्तई मतलब यह नहीं कि उनकी इच्छाएं नहीं रही। बस संकोच उन्हें रोक देता है। और आप समझते हैं कि वे बुजुर्ग हैं तो उनकी रूचि सिर्फ पूजा–पाठ और मंदिरों तक सीमित है।
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