मनीष कुमार ‘शुक्ल'
बादल गरजे बिजली चमकी,
अब केवल बरसात है बाकी।
मेरे हिस्से सुबह नहीं है,
एक यही बस रात है बाकी।
एकटक तुझ को देख रही थी,
और इसी में शाम हो गई।
जो कहना था कह न पायी,
कितनी सारी बात है बाकी।
दिन तो जैसे बन के पखेरू,
इक लम्हे में दूर हो गया।
धड़कन-धड़कन दिल में मेरे,
प्यार तेरा नासूर हो गया।
महफ़िल हो या तन्हाई हो,
तू ही तू महसूस हो मुझ को।
हर पल तेरी सोच में रहना,
अब मेरा दस्तूर हो गया।
जब तक यह संसार है क़ायम,
तू मेरा संसार रहेगा।
जो भी मेरे हक़ की दुआ है,
तू उस का हक़दार रहेगा।
तेरे बिना सब तीज अधूरे,
जप-तप पूजा-पाठ अधूरी।
तब हर इक त्यौहार मनेगा,
जब तू मेरे पास रहेगा।
अब आना तो ऐसे आना,
लौट के फिर न वापस जाना।
एक तुझे खोने का डर है,
और नहीं कुछ भी है पाना।
बैरी नींद हुयी है मेरी,
चैन न मुझ को इक पल आये।
तू जो नहीं तो फूल भी काँटे,
सुख न देता सेज-बिछौना।
हँसते चेहरे मुझे चिढ़ाते,
बैठ अकेले रोना होगा।
ख़ून के आँसू बहा-बहा कर,
दिल के दाग़ को धोना होगा।
बस इतनी दरकार है तुझ से,
और नहीं कुछ चाहत मेरी।
मेरा महल-दुमहला सब कुछ,
तेरे दिल का कोना होगा।
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