पूत सपूत हुआ है उसकी,
लगी नौकरी दिल्ली में,
अब घर कम आता ज़्यादातर,
रहता है वह दिल्ली में।
अम्मा बाबू नें देखी थी,
सुन्दर और सुशील बहू,
पूत व्याह कर लाया बीवी,
रहती है जो दिल्ली में।
बहू का दिल ना लगा गाँव में,
रहती थी बेचैन यहाँ,
देह तो उसकी रही गाँव में,
दिल रहता था दिल्ली में।
अम्मा बाबू जी ने चाहा,
बहू यहीं पर रह जाये,
बहू की ज़िद से हार पूत,
ले आया उसको दिल्ली में।
पूत सपूत बने इस खातिर,
सब तकलीफ उठाया था,
पेट काटकर अपना उसको,
पढ़ने भेजा दिल्ली में।
गाँव की खेती और गृहस्थी,
बूढ़े कन्धे झेल रहे,
बेटा बहू मंगाकर पिज्जा,
करें नाश्ता दिल्ली में।
बारिश में टूटे छप्पर से,
गाँव में पानी टपक रहा,
बेटा बहू फ्लैट में बैठे,
चाय पी रहे दिल्ली में।
मजदूरी करता बेटा और,
बहू सम्भाले घर सारा,
मंगरू अब आराम कर रहा,
नहीं पढ़ाया दिल्ली में।
पूत सपूत वही जो,
सुख-दुख में मां-बाप के साथ रहे,
वह सपूत कैसे कहलाये,
रहता है जो दिल्ली में।
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