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देवी-दर्शन

विभा गुप्ता

"गायत्री, मेरी बात मान ले, तू अपने अखिल की दूसरी शादी कर दे। पोते को गोद में खिलाने का तेरा सपना पूरा हो जायेगा।" पड़ोसिन विमला ने कहा तो गायत्री जी ने उनकी सलाह को गाँठ मार ली।
गायत्री जी के दो बच्चे थें। बड़ा बेटा अखिल बैंक में नौकरी करता था। बेटी के विवाह के बाद उन्होंने एक सुशील लड़की आरती के साथ बेटे का भी विवाह कर दिया। आरती को पहली संतान बेटी हुई तो गायत्री जी ने दूसरी संतान में बेटा होने की उम्मीद रखी। लेकिन दो साल बाद जब आरती ने पुत्री को जन्म दिया तो गायत्री जी की उम्मीदों पर पानी फिर गया। सहेलियों-रिश्तेदारों के मुँह से अपने पोतों की गाथाएँ सुनतीं तो उन्हें बहुत दुख होता था। उन्होंने अपनी व्यथा अपनी पड़ोसिन विमला को सुनाई तो उसने उन्हें अखिल के दूसरे विवाह की सलाह दे डाली।
नवरात्रि से दो दिन पहले गायत्री जी ने बेटे से कहा कि बहुत दिनों से बच्चे अपने नाना-नानी से नहीं मिले हैं इसलिए कुछ दिनों के लिये बहू को अपने मायके छोड़ आओ। बेटे ने कहा कि लेकिन माँ, नवरात्रि आ रही है, तुम अकेले सब कैसे..।"
"सब कर लूँगी बेटा, बहू को भी तो अपने माता-पिता से मिल लेना चाहिए।" माँ के इतने मीठे बोल सुनकर अखिल भी बहुत खुश हुआ कि मेरी माँ कितनी अच्छी है, बहू का कितना ख्याल रखती है। शाम की गाड़ी से वह पत्नी को मायके पहुँचा आया। गायत्री जी खुश थी कि नवरात्रि पूजा की समाप्ति बाद वह दूसरी बहू लाने की तैयारी शुरु कर देंगी।
माँ दुर्गा के चार पूजा के बाद गायत्री जी ने महाअष्टमी के दिन होने वाले कन्या-पूजन के लिये कन्याओं की खोज करनी शुरु कर दी। सबको पहले से ही बताने लगी कि अष्टमी के रोज अपनी बेटी-पोती को ठीक समय पर हमारे घर भेज देना। सात कन्याएँ तो उन्हें मिल गईं लेकिन बहुत प्रयास के बाद भी बची हुई दो की पूर्ति नहीं हो पा रही थी। इसी चिंता में एक रात सपने में उन्होंने देवी माँ से शिकायत कर डाली, "माँ, मैं तो आपकी भक्ति में दिन-रात डूबी रहती हूँ। फिर इस बार आने में आप देरी क्यों कर रहीं है। पिछले दो दिनों से मैं भूखी-प्यासी दरवाज़े-दरवाज़े जाकर आपकी पूर्ण-पूजा के लिये कन्याएँ ढ़ूँढ रहीं हूँ और आप है कि पता नहीं, सब कन्याएँ को आपने कहाँ गायब कर दिया है।"
उनकी शिकायत सुनकर देवी माँ भी क्रोधित हो उठीं, "मैं तो तेरे सामने ही थी लेकिन तूने मेरी कदर नहीं की। मुझे अपने से दूर करके अब मुझे खोज रही हो। इतनी अपमानित होने के बाद तो मैं अब कभी नहीं आऊँगी।" कहते हुए देवी माँ अंतर्ध्यान होने लगी तो गायत्री जी ने उनके पैर पकड़ लिये, "मेरे पास, अपमानित, मैं समझी नहीं माँ लेकिन आप मुझे छोड़कर कहीं नहीं जाइये मैं...आप कहीं...।" कहते हुए वो रोने लगीं।
"दादी, मेरा पैर तो छोड़ो, दादी!" बड़ी पोती की आवाज़ सुनकर उनकी नींद खुल गई। उन्होंने नींद में देवी माँ के चरण समझकर अपनी पोती के पैर पकड़ लिये थे। सच तो है.., असली देवी तो उनके सामने ही थी। पोती का पैर छोड़ते हुए उन्होंने आश्चर्य से पूछा, "तुम यहाँ कैसे?"
"वो माँ कल आप विमला काकी से कह रहीं थी ना कि कन्या-पूजन के लिये दो कन्यायें कम पड़ रहीं हैं तो मैं सबको वापस ले आया।" अखिल मुस्कुराते हुए बोला।
"बहुत अच्छा किया बेटा। घर में हो देवी-दर्शन तो बाहर जाने की क्या ज़रुरत है।" मुस्कुराते हुए उन्होंने अपनी दोनों पोतियों को सीने से लगा लिया और मन ही मन शक्ति-रूपा जगतजननी को धन्यवाद दिया।

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