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देश का कर्ज

प्रवीण केट

समर्थ :- प्रज्ञा प्लीज! मुझे मेरा काम करने दो, मुझे परेशान मत करो। ऐसी फालतू बाते सुनने के लिए मेरे पास तुम्हारे जैसा फालतू वक्त नहीं है।
प्रज्ञा :- समर्थ आजकल मेरे लिए तुम्हारे पास टाइम ही नहीं रहता और तुम्हें मेरी सभी बातें फालतू और गलत ही लगती है। तुम्हारी नजरों में मैं इतनी ही बुरी थी तो तुमने मुझे प्रपोज करके शादी क्यों की?
समर्थ :- हां भूल हो गई मुझसे लेकिन अब क्या फायदा यह सब बोल के? हुई भूल अब निभानी तो पड़ेगी ही ना जिंदगी भर!
समर्थ के ऐसे शब्द सुनकर प्रज्ञा की आंखों में आंसू आ गए।
प्रज्ञा :- ठीक है तो फिर तुम्हें मेरे होने से इतनी ही तकलीफ होती है तो मुझे लगता है कि हम अलग हो जाते हैं।
दोनों की यह बातें चालू थी। तब अनु का कॉल प्रज्ञा के मोबाइल पर आया। अनु समर्थ और प्रज्ञा दोनों की कॉमन फ्रेंड थी। प्रज्ञा अनु का कॉल उठाती है लेकिन अनु कॉल पर रो रही थी।
प्रज्ञा :- अरे बोल ना कुछ, क्या हुआ? आंटी की तबीयत अच्छी नहीं है क्या?
अनु :- मां की तबीयत अच्छी है प्रज्ञा।
ऐसा बोल कर अनु फिर से फूट फुटकर रोने लगी।
प्रज्ञा :- अनु तूम पहले रोना बंद करो और मुझे ठीक से बताओ आखिर क्या बात है? मुझे अभी डर लग रहा है, अनु जल्दी बताओ क्या हुआ?
अनु :- प्रज्ञा..... प्रज्ञा  राहुल....
प्रज्ञा :- क्या हुआ राहुल को?
अनु :- प्रज्ञा कल रात को कश्मीर में आतंकवादियों के साथ गोलीबारी में राहुल को 4 गोली लगने से राहुल शहीद हो गये।
अभी अभी फोन आया उनकी बॉडी विमान से ला रहे हैं। यह सुनकर प्रज्ञा की पैरों तले जमीन खिसक गई।
प्रज्ञा :- अनु.... अनु हम दोनों अभी आते हैं तुम्हारे पास, तू संभाल खुद को और आंटी को भी। हम पहचते हैं जल्द से जल्द उधर। ऐसा बोलकर प्रज्ञा फोन रख देती है और समर्थ को राहुल और आतंकवादीयौ में हुई फायरिंग और राहुल के शहीद होने की बात बताती हैं। समर्थ भी उसकी बातें सुनकर सुन्न हो गया। लेकिन तुरंत वह दोनों अनु के घर जाने के लिए रवाना हुए।
अनु के घर पहुंचते ही दरवाजे में ही अनु प्रज्ञा के गले लग कर रोने लगी।
अनु :- प्रज्ञा कल सुबह ही तो हम तीनों ने उनसे बात की थी। वीडियो कॉल पर वो कह रहे थे कि छुट्टी सेक्शन हो गई है और अगले सप्ताह वो घर आ रहे हैं। यह बातें बोलकर वह कितने खुश थे और रात को अचानक......... ऐसे हो गया!
प्रज्ञा :- संभाल खुद को। तुम्हें तकलीफ होगी प्लीज संभाल खुद को तू अपनी हिम्मत खो देगी तो आंटी को कौन संभालेगा?
अनु :- अब मैं क्या करूं खुद को संभाल कर! मेरे जीने की वजह ही मुझसे दूर चली गई। अब किसके लिए जिऊ मैं? बस 6 महीने ही हुए हैं हमारी शादी को और शादी होते ही 15 दिन में वह ड्यूटी पर निकल गए। एक दूसरे को समझने के लिए भी वक्त नहीं मिला प्रज्ञा। इतने सपने देखे थे हम दोनों ने। हमारे बच्चे के, नए घर के, एक दूसरे के लिए बहुत सारी बातों के सपने देखे थे। अब सारे सपने अधूरे रह गए। हमें वक्त नहीं मिला प्रज्ञा..... वक्त ही नहीं मिला।
थोड़ी देर में राहुल की बॉडी तिरंगे में लपेटकर घर पर आई। शासकीय इंतजाम में राहुल का अंतिम संस्कार हुआ। सभी विधि खत्म होने पर समर्थ और प्रज्ञा अपने घर वापस देर रात तक पहुंचे।
प्रज्ञा :- समर्थ तुम खाना खाने वाले हो क्या? मुझे तो भूख नहीं है।
समर्थ :- नहीं चाय बनाओ बहुत सिर दर्द हो रहा है, कुछ समझ में नहीं आ रहा। प्रज्ञा दोनों के लिए चाय बना कर ले आती है। चाय पीने के लिए दोनों शांति से सोफे पर बैठते हैं।
समर्थ:- सॉरी प्रज्ञा मैं सुबह तुम पर बहुत चिल्लाया। अरे क्या करें work-from-home होकर भी इतना प्रेशर होता है। और इस वजह से मैं इतना चिड़चिड़ा हो जाता हूं कि उसका गुस्सा तुम पर निकलता है। आई एम सो सॉरी प्रज्ञा!
प्रज्ञा:- समर्थ तुम सॉरी मत बोलो। मैं भी गलत थी, मैंने भी ज्यादा ही बोल दिया था कि हमें अलग हो जाना चाहिए। मुझे ऐसा नहीं बोलना चाहिए था।
समर्थ :- प्रज्ञा तुम्हारा गुस्सा भी सही है। मैं तुम्हें वक्त दे पाऊं इतनी सी तो तुम्हारी इच्छा होती है।
प्रज्ञा :- हां लेकिन मैंने भी तुम्हें समझना चाहिए था।
समर्थ :- तुम्हारे काम का प्रेशर ना समझते हुए मैं अपना ही गुस्सा तुम पर निकाल रही थी।
समर्थ :- इट्स ओके प्रज्ञा हम दोनों ही अपनी-अपनी जगह सही थे। बस हम दोनों एक दूसरे को समझ नहीं पाए।
प्रज्ञा :- समर्थ, अनु के वह शब्द अभी भी मेरे कानों में गूंज रहे हैं। हमें वक्त ही नहीं मिला प्रज्ञा। हम हमें मिला हुआ वक्त को कितना ग्रांटेड लेते हैं ना?
समर्थ :- सच में प्रज्ञा हमें जैसे एक दूसरे के साथ रहने के लिए वक्त मिलता है। वैसे हर किसी को नहीं मिलता। वह टाइम मिले इसके लिए बहुत लोग कितने प्रयास करते हैं। लेकिन कोई परिवार की जिम्मेदारी में तो कोई देश के प्रति जिम्मेदारी को निभाने में व्यस्त रहता है। और हम इस मिले हुए वक्त में क्या करते हैं। एक दूसरे की गलती निकालने की कोशिश करते रहते हैं।
प्रज्ञा :- सच में समर्थ, अनु और राहुल की जिंदगी देखकर समझ में आता है कि हम कितने सुखी और खुश हैं। लेकिन हमें उसकी कीमत ही नहीं पता। हम हमारे जिंदगी में छोटे-छोटे दुख में उलझें रहते हैं।
समर्थ:- हमारा देश सुखी और प्यार से रहे इसके लिए हमारे देश के जवान अपने परिवार को छोड़कर देश की सीमा पर अपनी जान की परवाह ना कर के हमारे लिए लड़ाई करता है। तभी हम यहां पर जाति, धर्म, पैसा, प्रेम, वक्त, ऐसी छोटी बातों पर एक दूसरे से झगड़ा करते हैं।
प्रज्ञा :- हां, चलो फिर आज से हम एक दूसरे की भावनाओं की कदर करेंगे और प्यार का सम्मान करेंगे एक दूसरे को समझने की कोशिश करेंगे।
समर्थ :- हां और हम ये सुनिश्चित करेंगे की हमारे सुख और खुशी के लिए जो जवान सीमा पर लड़ते है, जो शहीद होते हैं उन्हें और उनके परिवार को सुख के कुछ पल दे सके। हम से जितनी छोटी देश सेवा हो सके उतनी करें और देश का कर्ज चुका सके।

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