रमाकांत शुक्ल
एक नाव बीच नदी में डूब गई। शिकायत राजा तक आई। राजा के दरबार में पेशी हुई। राजा ने नाविक से पूछा – नाव कैसे डूबी?
राजा : क्या नाव में छेद था?
नाविक – नहीं महाराज, नाव बिल्कुल दुरुस्त थी!
राजा – क्या तुमने सवारी अधिक बिठाई?
नाविक – नहीं महाराज, सवारी नाव की क्षमतानुसार ही थी और न जाने कितनी बार मैंने उससे अधिक सवारी बिठाकर भी नाव पार लगाई है।
राजा – आँधी, तूफान जैसी कोई प्राकृतिक आपदा तो नहीं थी न?
नाविक – मौसम सुहाना तथा नदी भी बिल्कुल शान्त थी महाराज।
राजा – कहीं मदिरा पान तो नहीं किया था तुमने?
नाविक – नहीं महाराज, आप चाहें तो इन लोगों से पूछ कर संतुष्ट हो सकते हैं। यह लोग भी मेरे साथ तैरकर जीवित लौटे हैं।
महाराज – फिर, क्या चूक हुई? कैसे हुई इतनी बड़ी दुर्घटना?
नाविक – महाराज, नाव हौले-हौले, बिना हिलकोरे लिये नदी में चल रही थी। तभी नाव में बैठे एक आदमी ने नाव के भीतर ही थूक दिया। मैंने पतवार रोक के उसका विरोध किया और पूछा कि भाई "तुमने नाव के भीतर क्यों थूका?" उसने उपहास में कहा – "क्या मेरे नाव में थूकने से ये नाव डूब जायेगी?"
मैंने कहा – "नाव तो नहीं डूबेगी लेकिन तुम्हारे इस निकृष्ट कार्य से हमें घिन आ रही है, बताओ, जो नाव तुमको अपने सीने पर बिठाकर इस पार से उस पार ले जा रही है तुम उसी में क्यों थूक रहे हो?
राजा – फिर?
नाविक – महाराज मेरी इतनी बात पर वो तुनक गया, बोला, पैसा देते हैं नदी पार करने के। कोई एहसान नहीं कर रहे तुम और तुम्हारी नाव।
राजा (विस्मय के साथ) – पैसा देने का क्या मतलब, नाव में थूकेगा क्या? अच्छा, फिर क्या हुआ?
नाविक – महाराज वो मुझसे झगड़ा करने लगा।
राजा – नाव में बैठे और लोग क्या कर रहे थे? क्या उन लोगों ने उसका विरोध नहीं किया?
नाविक – हाँ, नाव के बहुत से लोग मेरे साथ उसका विरोध करने लगे।
राजा – तब तो उसका मनोबल टूटा होगा, उसको अपनी गलती का एहसास हुआ होगा?
नाविक – ऐसा नहीं था महाराज, नाव में कुछ लोग ऐसे भी थे जो उसके साथ उसके पक्ष में खड़े हो गये। नाव के भीतर ही दो खेमे बँट गये, बीच मझधार में ही यात्री आपस में उलझ पड़े।
राजा – चलती नाव में ही मारपीट, तुमने उन्हें समझाया तथा रोका नहीं?
नाविक – रोका महाराज, हाथ जोड़कर विनती भी की। मैंने कहा – नाव इस वक्त अपने नाजुक दौर में है। इस वक्त नाव में तनिक भी हलचल हम सबकी जान का खतरा बन जायेगी। लेकिन वो नहीं माने, सब एक दूसरे पर टूट पड़े तथा नाव ने बीच गहरी धारा में ही संतुलन खो दिया महाराज...औऱ अंततः नाव डूब गई।
इस दौर में भी कुछ लोग देश की नाव में थूक रहे हैं। अनुरोध है कि धैर्य बनाये रखें ताकि नाव के संतुलन खोने से बाकी लोग न मारे जाएं। याद रखें... देशहित सर्वोपरी है।
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