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नई-पड़ोसन

मंजू यादव 'किरण'

अभी छ: महीने पहले मेरे पड़ोस में शर्मा परिवार नया-नया रहने आया है। उनका भरा-पूरा परिवार है। यानी कि वो खुद, उनकी धर्मपत्नी, दो बेटे, दो बहुएं और दोनों के दो-दो बच्चे। एक उनकी बेटी भी है जिसकी शादी उन्होंने कर दी थी। वो अपनी ससुराल में रहती है। मेरी अभी तक उन लोगों से मुलाकात नहीं हो पायी है। जिस दिन वो लोग आये थे उसके दो-तीन दिन बाद ही शर्मा जी की धर्मपत्नी मेरे पास किसी कामवाली बाई के लिए मिलने आईं जरूर थीं, लेकिन बाहर दरवाजे से ही बात करके चलीं गईं थीं। मैंने उनको चाय-पानी के लिए लाना चाहा, परंतु वो बोली फिर कभी फुर्सत से आऊंगी।
अपनी कामवाली बाई को मैंने अगले दिन ही उनके घर भेज दिया था। इसके बाद आज छः महीने हो गए हैं, फिर कभी हमारी मुलाकात उनसे नहीं हुई। मैं भी घर के कामों में इस कदर उलझी हुई थी कि उनसे मिलने का मौका नहीं मिला। एक महीने पहले मेरे बेटे का जन्मदिन था, तब मैंने पड़ोसी होने के नाते उनको भी अपने यहां बुलाया था। वो मेरे घर आकर मुझसे बहुत प्रभावित हुईं। इस प्रकार मेरा और उनका आपस में आना-जाना शुरू हुआ। अब तो बेतकल्लुफ़ कभी भी हमारे घर में आ धमकती थीं।
मुझसे उम्र में भी थोड़ी बड़ी थीं। मैं भी उनकी बातों में हां में हां मिला दिया करती थी। मैं उनकी उम्र का लिहाज़ कर जाया करती थी, पर आज तो हद हो गई। आज वो हमारे यहां दनदनाती हुई आईं। हमारी कामवाली बाई अनिता उस समय हमारे घर में काम कर रही थी। बस वो सीधे तौर पर मुझसे कहने लगीं, "देखो अनीता तुम्हारे यहां कितनी सफाई से काम करती है। तुम्हारी डाइनिंग चेयर्स की पायों की परछाईं साफ-साफ फर्श पर पड़ रही है। फर्श भी तुम्हारा शीशे की तरह चमक रहा है। मेरे यहां तो इतना गंदा पोछा लगाती है कि पैरों के निशान भी नहीं मिटते हैं।"
अनीता को यह सुनकर गुस्सा तो बहुत आया, वो कुछ बोलने वाली थी कि मैंने उसको इशारे से कुछ भी बोलने को मना कर दिया। मैंने अपनी नई पड़ोसन भाभीजी को समझाना चाहा कि जब ये पोछा लगाती है, तब हम लोग भी ध्यान रखते हैं। जब तक पोछा सूख नहीं जाता तब तक कोशिश करते हैं कि फर्श पर कोई भी न चले। वर्ना फर्श पर पैरों के निशान बन जायेंगे। इतना सुनते ही वो मुझ पर ही बरस पड़ीं और गुस्से में कहने लगीं, "जब ये पोछा हमारे यहां लगाती है तो हम लोग कौन सा तब डांस करते हैं, ये तुम्हारे यहां काम ही अच्छा करती है, मेरे यहां काम क्या करती है लगता है जैसे बला टाल रही हो। पोछा तो ऐसा लगाती है जैसे कुत्ते ने अपनी गीली दुम फर्श पर फेर दी हो, कभी मेरे घर में आकर देखो कितना गंदा पोंछा लगाती है।"
उस समय मुझे उनकी बात करने का लहजा जरा भी पसंद नहीं आया मैं सोचने लगी ये तो वही बात हुई, "उसकी साड़ी मेरी साड़ी से ज्यादा सफ़ेद क्यों है।"
इसमें मुझे उनकी बातों में इर्ष्याभाव की अनुभूति हुई, इतनी छोटी उनकी सोच थी मुझे ये जानकर बहुत आश्चर्य हुआ, "कि मेरी साड़ी उनकी साड़ी से ज्यादा सफ़ेद क्यों है।"
ऐसा सोच कर वो न जाने कब से टेंशन में थीं। आज उन्होंने अपना सारा गुबार मेरे ऊपर ही उतार दिया। हां एक बात मैं आप लोगों को और बताऊं हमारी कामवाली बाई अनीता ने उसी दिन से उनका काम भी छोड़ दिया। मैंने अनीता से कहा भी तू उनका काम मत छोड़, थोड़ा और सफाई से उनका काम कर दिया कर।
वो कहने लगी, "मेरे कारण उन्होंने आपको आपके घर आकर ही सत्तर बातें सुना दीं।" अब मैं उनके यहां काम नहीं कर पाऊंगी, बल्कि हंस कर बोली, "दीदी, अब उनकी साड़ी और पीली हो जाने दो।"
यदि आप संबंधों को बनाए रखना चाहते हैं, तो अपने शब्दों पर नियंत्रण आवश्य रखिए।

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