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नकल का अंजाम

डॉ. कृष्णा कांत श्रीवास्तव

एक पहाड़ की ऊंची चोटी पर एक गरुड़ रहता था। उसी पहाड़ की तलहटी में एक विशाल वृक्ष था, जिस पर एक कौआ अपना घोंसला बनाकर रहता था। तलहटी में आस-पास के गांवों में रहने वाले पशु पालकों की भेड़-बकरियां चरने आया करती थीं।
जब उनके साथ उनके मेमने भी होते तो गरुड़ प्राय: उन्हें अपना शिकार बना लेता था। चूंकि गरुड़ विशाल पक्षी होता है और उसकी शक्ति अधिक होती है, इसलिए वह ऐसा आसानी से कर लेता था।
कौआ प्राय: यह दृश्य देखता था कि जैसे ही कोई मेमना नजर आया कि गरुड़ अपनी चोटी से उड़ान भरता और तलहटी में जाकर मेमने को झपट्टा मारकर सहज ही उठा लेता।
फिर बड़े आराम से अपने घोंसले में जाकर उसे आहार बनाता। कौआ रोज यह देखता और रोमांचित होता। रोज देख-देखकर एक दिन कौए को भी जोश आ गया। उसने सोचा कि यदि गरुड़ ऐसा पराक्रम कर सकता है तो मैं क्यों नहीं कर सकता?
आज मैं भी ऐसा ही करूंगा। वह तलहटी पर चौकन्ना होकर निगाह रखने लगा। कुछ देर बाद कौए ने एक मेमने को तलहटी में घास खाते हुए देखा।
उसने भी गरुड़ की ही तरह हवा में जोरदार उड़ान भरी और आसमान में जितना ऊपर तक जा सकता था, उड़ता चला गया। फिर तेजी से नीचे आकर गरुड़ की भांति झपट्टा मारने की कोशिश की।
किंतु इतनी ऊंचाई से हवा में गोता लगाने का अभ्यास न होने के कारण वह मेमने तक पहुंचने की बजाए एक चट्टान से जा टकराया। उसका सिर फूट गया, चोंच टूट गई और कुछ ही देर में उसकी मृत्यु हो गई।
सार : अपनी स्थिति और क्षमता पर विचार किए बिना किसी की नकल करने के विपरीत परिणाम भुगतने पड़ते हैं। इसलिए सदैव अपनी मौलिकता में रहें और विवेकयुक्त अनुकरण करें।

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