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नगर वधू का उद्धार

शीतला प्रसाद द्विवेदी

 

एक वैश्या थी। उसके मन में विचार आया कि मेरा कल्याण कैसे हो? अपने कल्याण के लिए वह साधुओं के पास गई, उन्होंने कहा कि तुम साधुओं का संग करो, साधु त्यागी होते हैं, इसलिए उनकी सेवा करो तो कल्याण होगा।
फिर वह ब्राह्मणों के पास गई तो, उन्होंने कहा कि साधु तो बनावटी हैं, पर हम जन्म से ब्राह्मण हैं। ब्राह्मण सबका गुरु होता है। अतः तुम ब्राह्मणों की सेवा करोगी तो कल्याण होगा।
इसके बाद वह सन्यासियों के पास गई तो उन्होंने कहा कि सन्यासी सब वर्णों का गुरु होता है। इसलिए उनकी सेवा करने से कल्याण होगा। फिर वह वैरागियों के पास गई तो उन्होंने कहा कि वैरागी सबसे तेज होता है अतः उनकी सेवा करो तो कल्याण होगा।
फिर वह अलग-अलग संप्रदायों के गुरुओं के पास गई तो, उन्होंने कहा कि हम सबसे ऊंचे हैं शेष सब पाखंडी हैं। तुम हमारी चेली बन जाओ। हमारे से मंत्र ले लो तब हम वह बात बताएँगे जिससे तुम्हारा कल्याण हो जाएगा।
इस प्रकार वह वेश्या जहाँ भी गई, वही उसको, अपने-अपने वर्ण, आश्रम, मत, संप्रदाय आदि का पक्षपात दिखाई दिया। यह देखकर उसके मन में आया कि अब तत्व समझ में आ गया, युक्ति हाथ लग गई, साधु कहते हैं कि साधुओं को पूजो, ब्राह्मण कहते हैं कि ब्राह्मणों को पूजो, तो हम क्यों न वेश्याओं को पूजें? ऐसा सोचकर उसने वेश्या भोज करने का विचार किया। उसने सब वेश्याओं को निमंत्रण दिया, निश्चित समय पर सब वेश्याएं वहाँ आने लगीं।
उस गांव के बाहर एक विरक्त त्यागी सन्त रहते थे। उन्होंने देखा तो विचार किया कि आज क्या बात है? जब उनको मालूम हुआ कि आज वेश्या भोज हो रहा है। तो वह वेश्या को क्रियात्मक शिक्षा देने के लिए वहाँ पहुँच गए।
रसोई बन रही थी, रसोई बनाने वाले ने पके हुए चावल का पानी नाली में गिराया। वैश्या अपनी छत पर खड़ी होकर जिधर देख रही थी उधर बाबाजी बैठ गए और उस मांड से हाथ धोने लगे। वैश्या ने देखा तो बोली कि बाबा जी, यह क्या कर रहे हो? बाबाजी ने कहा कि तू अन्धी है क्या? तेरे को दिखाई नहीं देता, मैं तो अपने हाथ धो रहा हूँ।
वैश्या ने बाबाजी को ऐसा करने से रोका तो वे माने नहीं। वेश्या उतरकर नीचे आई और बोली कि बाबा जी, यह चावलों का पानी है, इससे तो हाथ और मैले होंगे। आप साफ पानी से हाथ धोओ। बाबा जी ने कहा कि अगर इससे हाथ मैले हो जाएँगे तो क्या वैश्याऐं ज्यादा साफ, निर्मल, हैं? जिससे इनकी सेवा से कल्याण हो जाएगा? हाथ मैले पानी से साफ होते हैं या साफ पानी से? यह सुनकर वेश्या को होश आया कि बाबा जी बात तो ठीक कहते हैं। तो फिर बाबा कल्याण कैसे होगा?
बाबा जी बोले, "जिस सन्त में किसी भी मत, संप्रदाय आदि का पक्षपात, आग्रह न हो, जिसके आचरण शुद्ध हो। जिसके भीतर एक ही भाव हो कि, जीव का कल्याण कैसे हो। जिसमें किसी प्रकार की कामना ना हो, वह सन्त चाहे स्त्री हो या पुरुष, साधु हो या ब्राह्मण, किसी भी वर्ण, आश्रम, संप्रदाय, आदि का क्यों न हो, उस सन्त का संग करो, उनकी बातें सुनो, तो कल्याण होगा।"
तात्पर्य यह हुआ कि जहाँ स्वार्थ और अभिमान होगा, भोग और संग्रह की इच्छा होगी। वहाँ आसुरी संपत्ति आएगी ही। जहाँ आसुरी संपत्ति आएगी वहाँ शांति नहीं रहेगी, प्रत्युत अशांति होगी, संघर्ष होगा, पतन होगा।
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