सत्येंद्र तिवारी
स्वतंत्र हो गए हैं हम स्वतंत्र हो गए,
खुदगर्ज मकसद का प्रजातंत्र हो गए।
हर गांव की डगर-डगर शहरों की हर गली
माता-पिता बहन थीं बेटियां थी हर कली
बदल गए हैं त्याग तपस्या के सारे अर्थ,
मूल्यों के लिए जो जिए वह संत खो गए।
हर कदम पर उर्वरा षड्यंत्र हो गए,
स्वतंत्र हो गए हैं हम............
इंसान तुलते हैं अब वादों के बांट से
अपने हितों को साधते धर्मों में बांट के
जन-गण शकुंतला सा बाट जोहता रहे,
संसद के राजमहल में दुष्यंत खो गए।
नेतृत्व के हितों का महामंत्र हो गए,
स्वतंत्र हो गए हैं हम.............
देखो जिधर नजर में है केवल धुआं धुआं
आतंक हर कदमों पर बनता मौत का कुआं
घिरते जा रहे नव मेघा दहशतों के अब,
सभी को गोवर्धन थे वह अनंत खोगए।
दलदलो के कीचड़ का कुतंत्र हो गए,
स्वतंत्र हो गए हैं हम..............
बापू और गोडसे की रूह एक हो गई
पर खाईयां वतन में अब अनेक हो गई
बिस्मिल, भगत, आजाद अब अशफाक नहीं है,
चोरों के लिए मात्र हम तो पंथ हो गए।
गाड़ों में, तूती का नाद -यंत्र हो गए,
स्वतंत्र हो गए हैं हम,..............
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