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नजरिया

डॉ. कृष्णा कांत श्रीवास्तव

एक गाँव में अशोक कुमार नाम का कुम्हार रहता था। माँ – बाबा बचपन में ही गुजर गये थे अतः अशोक कुमार कुंवारा ही था। माँ – बाबा की मौत से उसके नाजुक ह्रदय को ऐसा आघात हुआ कि वह दिन–रात गुमसुम रहने लगा। गाँव वालों ने उसे बहुत समझाया किन्तु उसे समझ नहीं आया।
फिर एक दिन वह गाँव से दूर एक पहाड़ी पर झोपड़ी बनाकर रहने लगा। किन्तु जीने के लिए अर्थोपार्जन तो करना ही था। कुछ दिन तक तो वह सदमे से निकल ही नहीं पाया किन्तु एक दिन उसे एक बाबा मिले। बाबा ने जब जाना कि वह पहाड़ी पर अकेला रहता है तथा उसके माता–पिता नहीं रहे तो वह भी उसके साथ रहने लगे। बाबा और कुम्हार की जोड़ी खूब जमी। बाबा ने धीरज बंधाया कि आना–जाना तो संसार का नियम है, बेटा! उसे इतना दुखी नहीं होना चाहिए तथा अपने नये जीवन की शुरुआत करना चाहिए। बाबा ने उसे याद दिलाया कि अपने पिता की शिक्षाओं का अनुसरण करें। कुमार को बात समझ में आ गई।
उसने पिता के सिखाएं अनुसार कुमार ने मिट्टी के घड़े बनाना शुरू कर दिया। जब सभी घड़े बनकर तैयार हो गये तो वह उन्हें पकाने के लिए जंगल से लकड़ी लेने गया। जंगल से जब वह लकड़ी लेकर आ रहा था तो उसे प्यास लगी। लेकिन जंगल में पानी कहाँ मिलता। उसने एक पेड़ पर चढकर चारों और अपनी नज़रे दौड़ाई तो ज्ञात हुआ कि दूर एक सरोवर है।
वह पेड़ से उतरकर लकड़ियों का गट्ठर अपने सिर पर रखकर सरोवर की ओर चल दिया। थोड़ी देर बाद जब वह वहाँ पहुंचा तो उसने देखा कि कुछ स्त्रियाँ सरोवर में जल क्रीड़ा कर रही थी। जैसे ही उन्होंने कुमार को देखा, उन्होंने उससे तुरंत पानी पीकर चले जाने का आग्रह किया। कुमार ने पानी पिया और चल दिया। किन्तु भीगे वस्त्रों में स्त्री के रूप सौन्दर्य का दर्शन, साथ ही यौवन की मादकता को देख कुमार का मन बार–बार उन्हें देखने को मचलने लगा। वह चाहता था कि वह उनसे मित्रता करें किन्तु अपरिचितों से बातचीत आरम्भ कैसे करें इसका उसे कोई ज्ञान नहीं था। और वैसे भी स्त्रियों ने उसे वहाँ से चले जाने को कहा था। इसलिए ललचाते हुए भी कुमार लाचार होकर चल दिया।
"यौवन, यौवन को आकर्षित करता है। अतः बुद्धिमान मनुष्य को चाहिए कि सावधान रहे।"
घर पहुँचकर उसने आसमान की ओर देखा तो बादल घिर रहे थे अतः उसने लकड़ियों को काटकर घड़ों को उसपर जमाया। किन्तु इस समय भी उसके मानस पटल पर सरोवर वाला वही दृश्य नाच रहा था। अतः वह उन्हीं ख्यालों में खोया हुआ सो गया। उसे नींद इतनी गहरी आई कि बाहर हवाएं चलने का उसे कुछ भी आभास नहीं हुआ। कुछ देर बाद वर्षा आरम्भ हो गयी। उसके घड़े तथा लकड़ियाँ सभी बाहर ही पड़े थे अतः सभी घड़े टूट गये और लकड़ियाँ गीली हो गई।
जब संध्या को बारिश थमने के बाद बाबा गाँव से आये तो देखा सभी घड़े टूट चुके हैं और लकड़ियाँ गीली हो चुकी हैं और कुमार अन्दर झोपड़ी में चैन की नींद ले रहा था। आंखे बंद चेहरे की मुस्कान को देख बाबा को उसकी मुर्खता पर हंसी आई। बाबा की हंसी सुनकर उसकी आंखे खुली तो उठकर भागा। लेकिन अब वह क्या कर सकता था। बारिश सब बर्बाद करके जा चुकी थी। उसे खुद पर बहुत गुस्सा आया अतः पास में पड़े एक पत्थर पर हाथ पीटकर वह अपना गुस्सा निकालने लगा।
इतने में बाबा बोले – “कुमार! जहाँ तक मैं जानता हूँ तुम दिन में कभी नहीं सोते, फिर आज ऐसा क्या हो गया जो तुम्हें दिन में इतनी गहरी नींद आई कि बारिश आकर चली गई फिर भी नहीं उठे।” तो कुम्हार ने बाबा को सरोवर वाली पूरी घटना कह सुनाई।
यह सुनकर बाबा बोले – “बेटा! स्त्री के जिस रूप की तुम आकांक्षा रखते हो उसके दर्शन मात्र से तुम्हारा यह हाल है तो यदि वह तुम्हें मिल गई तो फिर क्या होगा? अंदाजा लगा सकते हो। स्त्री को जिस रूप में तुमने देखा वस्तुतः वह एक विकार है। स्त्री के दैवीय दर्शन को अपने मानस में स्थापित करों तो वह तुम्हारे लिए अर्धांगिनी भी होगी और लाभकारी भी।”
अब कुमार को समझ में आ गया था कि स्त्री को उसके देखने का नजरिया गलत था। अब वह सबको पवित्र दृष्टि से देखने लगा। कुछ दिनों बाद उसके कहने से बाबा ने एक स्त्री के घर वालों से बात की और उसका विवाह हो गया। अब भी वह बाबा की शिक्षा को नहीं भुला था। स्त्री का सम्मान उसके लिए सर्वोच्च था।
यदि इसी तरह प्रत्येक व्यक्ति स्त्री को समझने लगे तो समाज कितना सुन्दर हो। सभी नारियों का भी सम्मान हो और सभी पुरुषों को भी अपने चरित्र पर गर्व हो। ऐसी कल्पना मात्र से ही मन प्रसन्न हो उठता है। आओ सब मिलकर संकल्प ले।
"नारी का सम्मान हो, अपना देश महान हो।

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