मुक्ता शर्मा
पालते हैं जिद सभी बेकार की।
बस यही तो है वजह तक़रार की
जब से ऑंगन में लगी दीवार है।
रौशनी आती नहीं उस पार की।
बस अभी तो हम किनारे से लगे।
बात मत छेड़ो अभी मंझधार की।
दिल की बातों को हमेशा मानकर।
जिंदगी की राह क्यों दुश्वार की।
फुर्सतें किसको हैं इतनी देखिए।
खैरियत जो पूछ लें बीमार की।
सब इमारत के कंगूरे देखते।
ईंट कब किसको दिखी आधार की।
लड़कियां अव्वल हैं हर मैदान में।
आजकल सुर्खी है ये अख़बार की।
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