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नयी कोपल

सविता पाटील


कभी किसी में अपना ही
अक्स दिख जाता है।
जो तुम्हारे जैसा ही सोचता है।
तुम्हारे जैसा ही किसी
वृतांत को देखता है, समझता है।
फिर एक आभास होता है।
भीड़ में किसी के साथ होने का
हाथों में किसी के हाथ होने का।
जो अपरिचित है, पर परिचित लगता है।
अनदेखा है पर देखा लगता है।
यह भाव मन को सुहाता है।
अब न ये विचार सूखे पत्तों से झड़ जायेंगे।
और न ये वृक्ष ठूंठा रह जायेगा।
बल्कि नयी कोंपलें फूटेंगी।
नदी‌ सूखी न रहेगी।
नयी धाराएं जुड़ती जायेंगी।

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