मीनू कपूर
"अरे, अरे, चाय ठंडी हो जाएगी, कितनी देर शक्कर मिलाओगी? आजकल तुम्हें क्या हो गया है सुधा, हर समय उदास और खोई खोई। बात क्या है आखिर?" रतन जी पत्नी को लगातर चाय के कप में चम्मच हिलाते देख पूछ बैठे।
अरे, कह कर एकदम से सम्भल गयी सुधा और चाय का कप पति की ओर बढ़ा दिया। दोनों चाय पीते हुए इधर-उधर की हल्की-फुल्की बातेँ करते रहे।
मौका देख कर सुधा पूछ बैठी, "सुनिए, अंबि का कोई फोन आया आपके पास?”
मेरे पास, नहीं तो। फोन तो वह तुम्हें ही करती है न। बात नहीं हुई क्या उससे?
नहीं, हुई तो थी, सुबह को जरा देर।
तब?
"अरे, ये लड़की भी न, जब से ब्याह के गयी, दो पल सुकून से बात ही नहीं करती मुझसे। पग फेरे को भी उड़ी उड़ी आयी। जल्दी जाना था। फ्लाइट का टाइम हो रहा था, घूमने जा रहे थे दोनों और अब वापस आकर भी।
कुछ पूछो तो बस, सब ठीक है मम्मी, यहाँ सब बहुत अच्छे हैं। एक ही राग अलापा करती है। कुछ अपनी कहे कुछ मेरी सुने, पर नहीं। शादी को दस दिन भी नहीं हुआ और एकदम बदल गयी है ये लड़की।"
सुधा के मन का गुबार उसकी बातों और आँखों से छलका जा रहा था।
तो ये बात है। मैं भी कहूँ, बेगम साहिबा आजकल उदास क्यूँ रहती हैं। कहते हुए रतन जी उठ कर पत्नी के पास चले आए।
देखो सुधा, तुमने 25 वर्ष बेटी को पाला, पढ़ाया लिखाया, अब तक हर बात में वह तुम्हें ही पूछती थी, तुम्हारा सोचना स्वाभाविक है। पर अब, वह एक नये परिवेश में पहुंची है, नयी दुनिया में, नए लोगों के बीच। अब उसे अपने बात व्यवहार से उन्हें अपना बनाना है, उनके तौर-तरीके सीखने हैं। अब तुम हर समय, हर बात में उसकी परवाह करना छोड़ दो। उसका नया परिवार सम्हाल लेगा उसे, अपना लेगी वह उन्हें और वो उसे।
कहते कहते थोड़ा रुके रतन जी, फिर बोले "ये जो नया पौधा लगाया है न तुमने। देखो ये भी जड़ पकड रहा है नये गमले में धीरे-धीरे। अब अगर तुम इसे रोज हिलाती, छेड़ती रहोगी तो य़ह कैसे पनपेगा?”
ऐसे ही अंबि को भी थोड़ा समय दो। नए परिवेश में खुद को समायोजित करने के लिए। वक्त बे वक्त दखल देना बंद करो उसकी नयी जिन्दगी में। "कहते हुए उन्होंने स्नेह से गाल थप थपा दिए सुधा के। सुधा ने हल्के से आंखे मूंद ली अपनी।
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