के. कामेश्वरी
कालिंदी अपनी बेटी दीपा की शादी एक ऐसे घर में करती है, जहाँ तीन लड़कियों के बीच एक ही लड़का है। वे बहुत ही पैसे वाले थे और उनके घर में माता-पिता तीन बहुत ही खूबसूरत लड़कियाँ और लड़का वरुण था। यही उनका परिवार था।
वरुण बहुत ही बड़ा वकील था। कालिंदी ने सोचा लड़कियाँ तो शादी करके चली जाएँगी तो परिवार में सिर्फ़ माता-पिता वरुण और बेटी दीपा ही रहेंगे। मेरी बेटी ही उस घर की मालकिन बन जाएगी।
इसलिए उसने लड़की का ब्याह वरुण से करा दिया था। वरुण की शादी होने के एक साल के अंतराल में ही दीपा की बड़ी ननद सुनंदा की शादी हो गई थी। सुनंदा की ही शादी में दूसरी ननद अलका के लिए रिश्ता तय हो गया था। इस तरह दीपा की शादी के तीन साल में तीनों नन्दों की शादियाँ भी हो गई थी। वे सब भाभी को बहुत मानती थी।
सास ससुर भी सोचते थे कि बहू के शुभ कदम घर में पड़ते ही तीनों लड़कियों की शादियाँ हो गई हैं। उन्होंने बहू को ही घर की सारी ज़िम्मेदारियाँ सौंप दी थी। इन सबको देख कालिंदी बहुत खुश हो गई थी।
उनकी ख़ुशियों को शायद किसी की नज़र लग गई थी। दूसरी ननद अलका को जब पता चलता था कि उसके पति का चरित्र अच्छा नहीं है साथ ही वह सडिस्ट है तो वह अपने ससुराल और पति को छोड़कर वापस मायके चली आई। वह पढ़ी लिखी तो थी ही इसलिए नौकरी करने लगी थी। वरुण वकील था तो उसने जीजा पर गृह हिंसा का केस दर्ज कर दिया था।
कालिंदी ने जब यह सुना तो उसको यह पसंद नहीं आया। उसने फ़ोन पर ही दीपा को नसीहत दे डाली कि अपनी ननद को घर से बाहर भेज दे या फिर तू अपने पति के साथ अलग घर में रहने के लिए चली जा। दीपा जब से शादी करके आई है उसने ससुराल वालों की अच्छाई ही देखी थी। उसकी ननदें भी बहुत अच्छी थीं। इसलिए उसे माँ की यह बात अच्छी नहीं लगी।
उसका जी खट्टा हो गया था वह सोचने लगी कि माँ ने ऐसे कैसे सोच लिया कि मैं कभी ऐसा करूँगी। बचपन से वह और उसकी बहन परिवार के लिए तरसती रही। शादी के बाद उसे परिवार का प्यार मिला है जिसे वह माँ की बातें सुनकर खोना नहीं चाहती थी। उसने माँ से कहा कि— माँ आपकी ग़लत नसीहत ने मेरा मेरा दिल दुखाया है। मैं आपकी कोई भी बात नहीं सुनना चाहती हूँ।
आपने अपने ससुराल में यही भूल की थी। आपके कारण ही पापा की मृत्यु हो गई थी। आज मैं और सीमा बिना बाप के मामा के घर में पल कर बड़े हुए हैं। आप पापा को लेकर अलग घर नहीं बसाती तो आज पापा जीवित रहते। यह तो हमारी क़िस्मत समझिए कि मामा मामी अच्छे थे। उन्होंने हमें पढ़ाया लिखाया और आपको नौकरी भी दिलाई।
आज मुझे इतना प्यार करने वाला ससुराल मिला है तो प्लीज़ आप मेरे घर के मामले में दख़लंदाज़ी मत कीजिए मैं अपने परिवार के साथ बहुत खुश हूँ। उसकी इन बातों को ससुर ने सुन लिया था। उन्हें बहुत ही गर्व हुआ कि उनकी बहू के इतने उच्च विचार हैं।
कालिंदी ने तब से दीपा के ससुराल वालों के बारे में उससे बात करना बंद कर दिया था। उसे मालूम हो गया था कि यह मेरी बात मानने वाली नहीं है। इस तरह से दीपा ने अपनी समझदारी से काम लिया और अपने परिवार को बचा लिया था।
मजे की बात यह है कि जिस घर से कालिंदी ने बेटी को दूर करना चाहा अंत तक उसी दामाद और उनके परिवार ने उसका साथ दिया था।
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