रमाशंकर पांडे
ससुराल से दुखी होने के कारण छः महीने मायके रहने के बाद आज बेटी ससुराल जा रही थी। पिछले हफ्ते पिता ने कहा था, हम बूढ़े हो गए है अब। तुम्हारी लड़ाई नहीं लड़ सकते। कान खोल कर सुन लो, अपना घर बचाओ और बसाओ, जैसे एक औरत बनाती है घर।
बेटी ने पिता की यह चेतावनी भी वैसे ही मान ली थी जैसे उसने हर चेतावनियां सीखते समझते हुए लड़कपन से जवानी तक मानी। क्या पहने, क्यों पहने, बाल कैसे बांधे, कैसे उठे, बैठे, हंसे सब पिता के बोलने से पहले पिता की आँखों से ही पढ़ती रही और उसी अनुरूप ढलती रही।
आज पिता को कह कर बताना पड़ा कि - बेटी अपने बच्चे के साथ अपने घर जाओ। इसका मतलब, यह आजतक की सबसे बड़ी चेतावनी है।
वह नजरें झुकाए धीमी रुंधी आवाज में इतना ही बोल पायी, जी पापा।
माँ ने बेटी की आँखों में झाँका, वहां शून्य था। एक ही क्षण में बेटी कितनी सहजता से भाव बदल गई, माँ हैरान थी। लड़की की कितने स्तरों पर कैसी-कैसी ट्रेनिंग करता है यह समाज। माँ सोच रही थी।
माँ ने पिता की आँखों में झाँका। वहां अजीब सी विरक्ति फैली हुई थी।
माँ, का कलेजा अंदर से फटना चाह रहा था कि एक औरत कैसे बनाती है घर, यातना, बलिदान और गुलामी माँ सोचती रही।
सुबह पिता दामाद जी से बात कर रहे थे कि स्टेशन पर हमारी बेटी पहुँच जायेगी बेटा, आप उसे जैसा चाहो वैसा रखो आप उसे स्टेशन से रिसीव करने आ जाना बस।
बेटी ने दामाद से बात करते पिता को देखा तो अंदर से रो पड़ी। फिर बोली पिताजी मुझे आप कुछ पैसे और सिलाई मशीन दे दीजिए।
पिता आज उसे छोड़ने ससुराल तक नहीं आ सके। घर से ही जरुरी नसीहतें देकर बेटी को विदा किया। भाई और माँ स्टेशन तक छोड़ने आए और बोली - बेटा "जा ससुराल" हां लेकिन हिम्मत मत हारना, तू कमजोर नहीं है ईश्वर तेरी रक्षा करेंगे।
मां बेटी को ट्रेन में बैठा वह नीचे उतरी और वही स्टेशन पर एक बेंच पर बैठ गयी। वह बेटे के सामने रोना नहीं चाहती थी। लेकिन बरबस फुट पड़ी रुलाई को वह रोक नहीं सकी। बेटी ने माँ को खिड़की में से देखा। ट्रेन चल पड़ी थी। बेटी ट्रेन से उतर कर वापिस आ जाना चाहती थी। लेकिन उसके सर पर अब नसीहतों की और भारी गठरी लदी थी। वह उस गठरी को छोड़कर उतर नहीं सकती थी।
सारे रास्ते वह आंसुओ के सैलाब को पोछ कर मजबूत बन रही थी कि अपनी लड़ाई स्वयं लडूंगी, अब स्वयं मुझे पैरों पर खड़े होकर, मेरे बच्चे को अच्छी शिक्षा और संस्कार देकर के इस संसार को दिखा दूंगी कि नारी कमजोर नहीं है......नहीं है.......
ससुराल आकर उसने ट्यूशन का और सिलाई का काम शुरू किया आज वह और उसके बच्चे बहुत ही मजबूत स्थिति में हैं वे दूसरों के लिए प्रेरणा बन गई।
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