पूजा मनोज अग्रवाल
बात आज से करीब पच्चीस साल पहले की है, जब मेरी उम्र लगभग सत्रह साल रही होगी। मुझे अपनी नानी के यहां जाने को बहुत चाव रहता था, क्योंकि वहां हम सब मौसेरे और ममेरे भाई-बहनों का जमघट लगा रहता था।
हमारे मामा जी के चार बच्चे थे, उनकी बड़ी बेटी का नाम मीनू था, वे हम सब भाई बहनों में सबसे बड़ी थी। मीनू दीदी हर सिलाई कढ़ाई और खाना बनाना जैसी हर चीज में एक्सपर्ट थी। तरह-तरह के अचार और व्यंजन बनाना उन्हें बखूबी आता था। और वे हम सब छोटे बहन भाइयों को बहुत प्यार से नई-नई चीजे बना कर खिलाती थी। हमारी एक फरमाइश के पीछे दीदी घंटों किचन में बिताया करती। पूरी गर्मियों की छुट्टियां मीनू दीदी का सिर्फ यही रूटीन रहता था।
हम सभी बच्चे नानी के घर पूरा दिन मौज मस्ती करते। तंबोला, लूडो, आंख मिचोनी और राजा, मंत्री, चोर सिपाही जैसे जाने कौन-कौन से गेम खेला करते थे। हर शाम मीनू दीदी नानी के हाथों से तोड़ी हुई मैदा की नमकीन सेवियां बनाया करती थी, जो हम सब बच्चे जन्म जन्मांतर से भूखों की तरह खा जाते थे।
और हमारे प्यारे मामा जी हम सब बच्चों के लिए रोज शाम को हमारी मनचाही आइसक्रीम मंगाया करते थे, और हम सभी भाई-बहन देर रात तक बातें करते हुए बहुत मजे करते थे।
एक बार मीनू दीदी ने गृहशोभा मैगजीन से देखकर गट्टे की सब्जी की रेसिपी बनाई। गट्टे की सब्जी हम पंजाबियों के यहां रूटीन में नहीं बनती तो यह सब्जी दीदी ने पहली बार ही ट्राई की थी। अब पहली बार बनाई थी, तो दीदी के बनाए हुए गट्टे बहुत टाइट बन गए। मामा जी के बड़े बेटे आशु भैया ने कटोरी में गट्टे को तोड़ने के लिए ज्यों ही चम्मच से उसे काटने की कोशिश की, तभी उसमें से एक गट्टा उछलकर मेरे मुंह पर आ गिरा। सब्जी की छींटे यहां वहां मेरे मुंह और कपड़ों पर लग गए थे। बस तो फिर क्या था सभी बहन भाइयों ने खूब जमकर ठहाके लगाए और मेरा सब्जी से सना हुआ चेहरा देखकर मेरी खूब खिल्ली उड़ाई।
घर में भारी भीड़ के चलते हमारी नानी और मामी कभी दिन में दो पल को भी आराम न कर पाती थी। और ना ही वे हम बच्चों की दिनभर की शरारतों से परेशान हुआ करती थीं।
एक भयंकर एक्सीडेंट की वजह से हमारी प्यारी मीनू दीदी तो अब हमारे बीच नहीं हैं, परंतु वह आज भी हमें बहुत याद आती हैं, उनकी वह सारी बातें, उनकी यादें आंखों के सामने चल चित्र की भांति चल जाती हैं।
आजकल गर्मी की छुट्टियां और उस समय की गर्मी की छुट्टियों में जमीन आसमान का फर्क है। आज बच्चे अपनी ही नानी के घर जाने से कतराने लगे हैं। वे अपने घर, और अपने मोबाइल, लैपटॉप की ही दुनिया तक सीमित रह गए हैं।
और हम उस पीढ़ी के लोग, उन दिनों को याद कर सोचते हैं, काश!! वह गर्मी की छुट्टियां फिर वापस आ जाए, काश ,,,,!! हमारी मीनू दीदी एक बार फिर इस दुनिया में अपने बहन भाइयों के बीच अपने बच्चों के पास वापस लौट आएं।
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