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निर्णय

श्रृंगारिका माथुर

गांव में जगजीवन के पोते का आज मुंडन था। उसी की दावत चल रही थी। उन्होंने नाचने गाने वालों को भी बुलाया था। एक लड़की बहुत ही सुंदर डांस कर रही थी।
तभी उस लड़की ने महसूस किया कि कोई उसको पकड़ने के लिए आगे बढ़ा, वह नृत्य करते-करते दूर हो गई। थोड़ी देर बाद फिर से किसी ने उसे पकड़ना चाहा इस बार उसको धक्का देते समय उसका संतुलन बिगड़ गया और वह भी गिर गई। अभी वह उठ ही रही थी कि तभी एक लंबा चौड़ा नशे में डूबा आदमी उसके पास आया और जब तक वह कुछ समझ पाती उस आदमी ने अपने दोनों हाथों से उसे उठा लिया और अपने सर के बराबर ऊपर उठा कर नीचे पटक दिया उस लड़की की चीख निकल गई उसका सर फट गया था। सब लोग उस लड़की को उठाने के लिए दौड़े। उसके बाद भी वह उसी की तरफ दोबारा बढ़ने लगा कुछ लोगों ने उसको रोक लिया ।
यह सब सुजाता देख रही थी उसका खून खौलने लगा, गुस्से के कारण उसका चेहरा तमतमा गया। उसकी मुट्ठी कस गईं। वह पल भर में दौड़कर स्टेज के ऊपर आ गई और आते ही उस आदमी की शर्ट के कॉलर को खींचकर उसके चेहरे पर थप्पड़ थप्पड़ मारना शुरू कर दिया, जब तक कोई समझ पाता उस आदमी के चेहरे पर अनगिनत बौछार कर चुकी थी। उसको ऐसा करते देखकर उसके भाई और उसकी मां उसके पास दौड़कर आए, उसको वहाँ से बाहर की तरफ खींचने लगे, और चिल्लाने लगे - तुम यह क्या कर रही हो? तुमको पता है वह सब नशे में हैं?
वो नाचने आई है। उसका अपना मामला है, इसके साथ के लोग सब समझा लेते। तुमको यहां नही आना चाहिए। सभ्य घरों की लड़कियां बिना वजह किसी से नही भिड़ती।
ऐसी बातें सुनकर सुजाता खामोश होने के बजाय शेरनी की तरह दहाड़ उठी, उसने कहा- "यह काम आप सबको करना चाहिए था जो मैंने किया। लड़की नाचने आई थी किसी के हाथ का खिलौना नही थी। इसके साथ इतना बुरा व्यवहार उस आदमी ने किया और सब देखते रहे और आप कहते हैं सभ्य लड़कियां ऐसा नहीं करती, तो क्या करती है? किसी लड़की की इज्जत अपने सामने लूटता हुआ देखता रहे। उसके साथ कोई भी बुरा व्यवहार करके चला जाए, सब खामोश रहें, क्या यही सभ्य समाज है?
फिर वह उस लड़की के पास आई। उसके सर पर काफी चोट आ गई थी। सुजाता उसके पास गई उससे बोली- क्यों करती हो यह सब? उसको देखते ही लड़की धीरे से उठकर सुजाता से लिपट कर जोर-जोर से रोने लगी। उसके रोने में इतना दर्द था जो वहां उपस्थित सभी लोगों के कलेजे को चीर रहा था। वह रोते-रोते बोली - "दीदी मैं नाचने का काम करती हूं, लेकिन कोई गंदा काम नहीं करती हूं। नाचना मेरी मजबूरी है। मेरी मां बहुत बीमार है, मेरे घर में मेरा छोटा भाई है। मैं इतनी पढ़ी-लिखी भी नहीं हूं कि मुझे कहीं नौकरी मिल सके। घरों में झाड़ू पोछा का काम करती थी। वहां पर भी मैं सुरक्षित नहीं रह पाई थी। मेरी दोस्त ने मुझे यह काम बताया और मुझे लगा इसमें तो कोई गलत काम नहीं है तब से मैं नाचने का काम कर रही थी।"
उसकी बात सुनकर सुजाता का दिल भर आया था उसकी आंखें नम हो गई थी। सुजाता पुलिस में भर्ती के लिए तैयारी कर रही थी और आज भर्ती होने से पहले ही उसने उस काम को कर दिया जो शायद पुलिस वाले को यह काम करने से पहले दस बार सोचना पड़ता। उसने उस लड़की के आंसू पोछते हुए कहा- "जानती हूं, इस समाज में एक अकेली लड़की के लिए बाहर निकलना कितना मुश्किल है। आज भी हमारा समाज इतनी उन्नति करने के बाद भी लड़की के मामले में कहीं ना कहीं पीछे है। आज भी लड़की आजादी से अपना काम नहीं कर सकती। हर वक्त हर जगह कोई ना कोई ऐसा दानव खड़ा रहता है। इसी वजह से लड़की अपने आप को सुरक्षित महसूस नहीं कर पा रही।"
तभी वह आदमी अपने दो साथियों के सहारे उठ कर वहां तक आया और एक भद्दी सी गाली देते हुए बोला - "तुझे मैं देख लूंगा।"
उसकी तरफ खा जाने वाली आंखों से घूरते हुए सुजाता बोली- "पहले खुद को देख, खुद अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो पा रहा। अपनी बहन और बेटी के समान लड़की के साथ इतना बुरा व्यवहार करता है। शर्म आनी चाहिए। पहले खुद को देख फिर किसी और को देखना। इतना बोलते बोलते ही सुजाता ने पुलिस का नंबर डायल कर दिया।
फिर सुजाता सब की तरफ मुखातिब होते हुए बोली- यह कैसा समाज है जो एक लड़की की रक्षा नहीं कर सकता। इतने सारे लोग थे। सब सिर्फ तमाशा देखते रहे और नशे में डूबे एक इंसान के रूप में जानवर ने अपनी हैवानियत दिखाते हुए एक लड़की को उठाकर फेंक दिया। एक खिलौने की तरह, एक सामान की तरह।" अभी सुजाता इतना ही बोल पाई थी भीड़ में पीछे से एक आवाज आई- "ऐसा काम ही क्यों करती है? ऐसा काम करेगी तो कुछ भी हो सकता है। सुजाता फिरकी की तरह उस आवाज की दिशा की तरफ घूम गई और दहाड़ कर बोली अगर तुम्हारी भी ऐसी ही मजबूरी हो तो, इसकी जगह तुम्हारी बहन बेटी होती तब। ऐसे ही लोग हैं जो समाज में ऐसे गंदे लोगों को बढावा देते हैं।"
तभी पुलिस की गाड़ी के सायरन की आवाज सुनते ही वो लोग भागने लगे लेकिन पुलिस ने दौड़ कर पकड़ लिया। नाचने वाली लड़की सुजाता की तरफ कृतज्ञतापूर्ण नजरों से देख रही थी। उसके चेहरे को देख कर लग रहा था कि उसने समाज की ऐसी गंदगी से डटकर मुकाबला करने का निर्णय ले लिया था।

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