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निर्मला

रमाकांत चतुर्वेदी

भाईयों ने दूसरी शादी की राय दी मगर उन्हेानें तीन बच्चों का हवाला देकर इंकार कर दिया। उनके लिए तीन बच्चों की परवरिश ही जिंदगी का मकसद था। संयुक्त परिवार था इसलिए उनका लालन पालन करने में उन्हें परेशानी नहीं हुयी।
बाद में जब भाईयों में आपसी मनमुटाव हुआ तब हरिवंश बाबू उसी शहर में दूसरा मकान बनवाकर रहने लगे। तब सबसे बडा बेटा शिवम् बीए में नीतीश इंटर और सबसे छोटा आयुष्मान मैट्रिक में था। बच्चें समझदार हो चुके थें इसलिए वे निश्चिंत होकर अपना अध्यापन का काम करते रहे। वे शहर के ही एक सरकारी प्रायमरी स्कूल में अध्यापक थे।
बिन घरनी घर भूत का डेरा। ऐसा ही उनके घर की शक्ल था। इसलिए जब शिवम् बीए के आखरी साल में था तभी उन्होंने उसकी शादी कर दी। ससुराल में कदम रखते ही निर्मला ने घर को ऐसे संभाला मानेा काफी समय से रह रही हेा। सबको समय से खाना नाश्ता देना। उसके बाद घर की साफ सफाई। शाम जब हरिवंश बाबू घर आते तो उन्हें सब कुछ अपनी जगह पर साफ सुथरा मिलता। यह देखकर सभी खुश थे।
नीतीश ने जब बीए करने के बाद आईएएस की तैयारी के लिए दिल्ली जाने का प्लान बनाया तब कोंचिग के लिए रूपयों की जरूरत आन पडी। हरिवंश बाबू का हाथ पहले से ही तंग था। मकान के लिए काफी रूपया बैंक से लेान ले रखा था। वही शिवम् की आमदनी टयूशन पर निर्भर थी। वह अब भी सरकारी नौकरी के लिए कोशिश कर रहा था। तब निर्मला ने अपनी मुंहदिखाई के रखें रूपयों को नीतीश को देने का मन बनाया।
‘‘ये तुम क्या कर रही हो? सगुन के रूपयें दे रही हो?‘‘शिवम् से रहा न गया।
‘‘रूपये तो आते जाते रहेगे। अभी नीतीश के कैरियर को देखना है। कौन सी मेरी उम्र भागे जा रही है। आपकी सरकारी नौकरी लग जाएगी तब मैं अपनी सारी ख्वाहिशें पूरी कर लूंगी।’’निर्मला के तर्क के आगे शिवम् की एक न चली।

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