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नीली चिड़िया

अंकिता शाम्भवी


कई बार तुम्हें पढ़ते हुए
मैं ख़यालों के समंदर में
डूबने-उतराने लगती हूँ
जब बिल्कुल डूबने को होती हूँ—
तुम्हारी कविताएँ
मुझे कसकर थाम लेती हैं
और तट पर लाकर
छोड़ नहीं जातीं,
बल्कि मेरे साथ ही
वहीं बैठ जाती हैं।
वे मुझे क़िस्से सुनाती हैं
उस नीली चिड़िया के
जो तुम्हारे दिल में छुपकर
बैठी हुई थी
जिसे तुम इस डर से
बाहर नहीं आने देते
कि वह तुम्हारी रचनाओं को
नुक़सान न पहुँचा दे,
काम न बिगाड़ दे
जिस पर तुम व्हिस्की उँड़ेल दिया करते
और तमाम वेश्याएँ,
तमाम साक़ी,
तमाम किराने के दुकान-मालिक
ये नहीं जान पाते
कि वह नीली चिड़िया
तुम्हारे दिल के कोटर में
न जाने कब से बंद है
तुमने सचमुच उस प्यारी नीली चिड़िया पर
बहुत ज़ुल्म किया
वह हौले-हौले गाती रही कुछ
जिसे सिर्फ़
तुमने सुना,
तुमने ही समझा,
उसे मरने नहीं दिया
और तुम दोनों
यूँ ही साथ सोते रहे
उसने तुम्हारे सब राज़ छुपा रखे थे
तुम नहीं चाहते थे इस दुनिया में
कोई भी किसी से
नफ़रत करे
फिर भी लोगों ने
नफ़रत की
तुम्हारी शक्ल से,
मेरी शक्ल से,
हम सबकी शक्ल से,
क्योंकि उन्हें अपनी शक्ल
से भी प्यार नहीं था!
तुम जानते थे
इस दुनिया में अमीर ख़ुश नहीं
न ही वंचित
यहाँ कोई किसी से
प्यार नहीं करता
पर तुम्हारे मस्तिष्क ने तुम्हें
पल भर भी
चैन नहीं लेने दिया
तुम बेचैन हो उठते
रातें जागकर बिताते
और देर तक टाइपराइटर
पर उँगलियाँ टिपटिपाते
तुम्हारी कविताओं में
वेश्याएँ थीं, जिनसे तुमने प्रेम की उम्मीद की
दलाल थे,
कवि थे,
प्रकाशक थे,
उनकी माँएँ, पत्नियाँ, दोस्त, भाई सब थे
जिनसे तुमने कभी कोई उम्मीद नहीं की
सभी ने तुम्हें निराश किया
सभी को तुमने धिक्कारा
अपनी कविताओं में उन्हें बार-बार लताड़ा
तुम्हारी उँगलियों और टाइपराइटर के बीच
ईमान का रिश्ता था।
तुम्हें दुनिया की सबसे मामूली चीज़ें
पसंद आईं
और मामूली लोगों से प्यार हुआ,
किसी गली में शराब के नशे में
झूमता हुआ ठठेरा,
पहली बार परीक्षा में बैठा एक लड़का,
किसी बाड़ के किनारे
अपने घोड़े का नेतृत्व करता खिलाड़ी,
अपनी आख़िरी कॉल पर लगा हुआ साक़ी,
कोई महिला वेटर जो रेस्तराँ में
कॉफ़ी परोस रही है,
किसी उजाड़ घर की दहलीज़ पर
सोया हुआ नशेड़ी,
एक सूखी हड्डी चबाता हुआ कुत्ता,
किसी सर्कस के तम्बू में
गोज़ करता हाथी,
रास्ते में शाम छह बजे लगी हुई जमघट,
या फिर,
किसी डाकिये का फूहड़ मज़ाक़
ये मामूली लोग अपनी आख़िरी साँस तक
तुम्हारी कविताओं में ज़िंदा रहे;
पर वेश्याओं ने तुम्हें कभी प्यार नहीं किया,
और संपादकों ने तुम्हारी रचनाएँ वापिस कर दीं।
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