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पंगा बड़ा महंगा

मीनाक्षी सिंह

कल विवेक एक शादी समारोह में गया। वो एक चेयर लेकर बैठ गया और आतें ज़ाते लोगों को देखने लगा। तभी उसकी नजर सामने बैठे एक आदमी पर गयी ज़िसे घेरकर चार पांच लोग खड़े हुए थे। बाकी सब चुप थे बस वहीं आदमी बोला जा रहा था। विवेक उत्सुकतावश अपना टाइम पास करने वहीं थोड़ी दूर जाकर खड़ा हो गया। विवेक ने उस आदमी को गौर से देखा। वो काफी महंगा नीले रंग का कोट, चमकती हुई बहुत ही क्लासी पैंट, गले में टाई लगाये हुए था। हाथों में शायद 7 उंगुलियों में उसने सोने की अंगूठी पहन रखी होगी। गले में भैंस के गले में ज़ितनी मोटी रस्सी बांधी ज़ाती हैँ शायद उस से थोड़ा ही उन्नीस बीस का फर्क रहा होगा, सोने की चेन पहन रखी थी। उन महाशय ने पैरों में चमकते हुए शानदार चमड़े के भूरे रंग के जूते, वो भी ब्रांडेड ही रहे होंगे। जब सब कुछ ब्रांडेड था तो  उम्र भी उसकी यहीं कोई 40-45 साल के बीच रही होगी।
ये सब तो सही पर वो आदमी अपने आस पास खड़े किसी भी आदमी को बोलने का मौका नहीं दे रहा था। विवेक ने ध्यान लगाकर सुना। वो बोलने में लगा था, क्या शर्मा जी अभी भी वहीं 10 साल पुरानी फटफटिया पर चल रहे हो, अब तो चार पहिया गाड़ी निकाल लो। जब टैं बोल जाओगे तब गाड़ी के मजे लोगे क्या? देखो कैसी मस्त चमकती हैँ मेरी फोरच्यूनर? ठाठ से ज़ियो, लीचड़पना नहीं छोड़ोगे तुम भी।
शर्मा जी बहुत देर से उनकी बड़बोली बातें सुन रहे थे। मुंह में भरी तंबाकू को अपने सफारी सूट को बचाते हुए थूक रुमाल से मुंह पोंछते हुए बोले, “हां तो गुड्डन का कह रहे, लीचड़ ...?”
हां तो क्या गलत कह दिया... हो ही तुम लीचड़ ....
हां तो सुनो गुड्डन, बहुत सोचे ना बोले, पर तुम सुनना चाह रहे हो बे हम लीचड़ ही सही। पर तुम्हारे जैसे कर्जदार ना, कल ही वो कल्लो बनिया कह रहा कि गुड्डन तो महा बेशर्म आदमी हैँ शर्मा जी... चार महीने से सामान जा रहा उसके घर, पैसा देने का नाम नहीं। 50000 रूपये हो गए पूरे, अब नहीं दूँगा एक चवन्नी का सामान भी उसे। वो तो उसके बाप दादा का सोचकर दे देता हूँ कि वो बड़े भले मानुष थे। इतना बना गए पेट काट के इस गुड्डन के लिए, पर ये तो सब बर्बाद करें डाल रहा। हर एक पर उधारी चढ़ी हैँ इसकी। फोरच्यूनर की चाभी तो ऐसे घुमाता हैँ जैसे इसकी ही हो।
अब तो गुड्डन महाशय के चेहरे का रंग उड़ने लगा, कि इसे भी पता चल गया कि फोरच्यूनर मेरी नहीं। 
हां तो सुनो सभी जनों, य़े फोरच्यूनर इनकी ना हैँ। इनके जीजा फौज में हैँ वो रहते बाहर। तो एक साल से ये ही ले आयें कि देखभाल करता रहूँगा। नई नई निकाली थी जीजा ने तो खुद का ही नाम रख दिये। ये जो अंगूठी चमका रहे हमारी आँखों के सामने ये सब ससुराल की हैँ। कभी किसी साले की शादी में कभी किसी में बटोर लाते हैँ। कोट पैंट की भी बताऊँ का बे गुड्डन, कनपटी पे एक झापड़ लगाये का....।
अरे तुम तो दिल पर ले गए शर्मा जी, हम तो ऐसे ही हंसी मजाक कर लेते हैँ तुमसे। तुमसे नहीं करेंगे मजाक तो किससे करेंगे, गुड्डन की सारी हेकड़ी निकल गयी।
आस पास खड़े आदमी जो इतनी देर से यह सोचकर गुड्डन की बकवास बातें भी ध्यान लगाके सुन रहे थे जैसे प्रदीप मिश्रा जी का प्रवचन चल रहा हो। सब एक एककर वहां से खिसक लिए...
गुड्डन भी जो इतनी देर से भाभी श्री के दस फ़ोन आने पर भी वहां से जाने का नाम नहीं ले रहे थे... चुपचाप निकल लिए।
विवेक जो कि सारा माजरा देख रहा था खुद की हंसी न रोक पाया।
हां तो कनपुरियों से पंगा बड़ा महंगा पड़ता हैँ।

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