नरेंद्र कुमार
रितिक एक बहुत समझदार और सुलझे विचारों की लड़की थी। सभी लोगों उसे बेहद पसंद करते थे। कुछ समय के पश्चात उसका विवाह हो गया। कई मीठे सपने संजोकर ससुराल में आई। वहां पर तो कोई भी उसकी योग्यता को समझने वाला था ही नहीं। वह अपनी ओर से सबके लिए बहुत अच्छा करती और अच्छा व्यवहार रखना चाहती थी। लेकिन वहां पर एक औरत की नहीं बल्कि एक मशीन की जरूरत थी, जो लगातार काम करती रहे। जब तक सबके लिए करती रही तब तक सब कुछ ठीक था। पति परिवार का भक्त था उसे पत्नी के दुख, बीमारी से कोई मतलब नहीं था। हर बात पर गलती निकालना और अपमानित करना बस इसी में वह अपनी शान समझता था।
धीरे-धीरे रितिका का मन उन लोगों के व्यवहार से दुखी होने लगा। अपने माता-पिता के दिए हुए संस्कारों के कारण वह सब कुछ निभाते चली जा रही थी। लेकिन मन भीतर से टूटता जा रहा था, क्योंकि वह किसी से कुछ कह नहीं पाती थी। शरीर से भी कमजोर होती जा रही थी। लेकिन किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता था। उसकी बीमारी भी सबको एक बहाना लगती थी। रितिका को अपने गुण और पढ़ाई सब बेकार लगने लगी थी। वह घुटन भरी जिंदगी जी रही थी। दिखाने के लिए सब कुछ करना पड़ता था लेकिन वास्तव में उसका अस्तित्व खत्म होता जा रहा था।
वह सही भी होती तो उसे गलत साबित किया जाता। जहां पर सारे इंसान एक से हो उनके बीच में एक सरल इंसान का अस्तित्व दब जाता है। उसका कोई अस्तित्व नहीं रह जाता यही हाल रितिका का था। बड़ा ही दुख होता था उसे देखकर। ऐसा लगता था मानो वह सिर्फ अपनी गृहस्थी को बचाने के लिए जी रही है। बाकी सारी इच्छाएं और अरमान उसके मर चुके हैं। रितिका जैसी कई लड़कियां हैं जो अपनी जिंदगी परिवार को बचाने के लिए जीती हैं या फिर अपने बच्चों के लिए जीती हैं। भीतर से कोई खुशी ना होने के बाद भी वह मुस्कुराती हैं और सब कुछ करती हैं। लेकिन ऐसे घुटन भरी जिंदगी से क्या फायदा। दिखाने के लिए मंदिर भी जाते हैं, देवी की पूजा भी करते हैं, घर में भी पूजा की जाती है, लेकिन घर में जब औरतें घुटन भरी जिंदगी जी रही हो तो इस पूजा का कोई महत्व नहीं है।
जो घर औरत की इज्जत नहीं कर सकता उसे घर के लोगों को औरत की बेइज्जती करने का भी कोई अधिकार नहीं है। जिस दिन रितिका जैसी धैर्यवान समझदार लड़की के सब्र का बांध टूट जाएगा उस दिन घर में एक सैलाब आ जाएगा। जो पूरे परिवार को डुबा देगा और फिर कुछ नहीं बचेगा सिवाय पछतावे के। रितिका जैसी होनहार लड़की ने बेवकूफों से बहस करने की बजाय चुप रहना ही अपनी जिंदगी के लिए बेहतर समझा। उसकी मुस्कुराहट के पीछे के आंसू को पढ़ना बहुत मुश्किल था। कठोर दिल के लोगों को कोई बात वैसे भी समझ में नहीं आती है। यही हाल उसके घर का भी था। सबका अपना स्वार्थ सिद्ध हो जाए बस और किसी चीज से मतलब नहीं था। माता-पिता ने अपनी बेटियों का विवाह बहुत सोच समझकर करना चाहिए। जिससे की बाद में पछताना न पड़े।
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